"देश मेरा" - मेरी नज़रों से
(नोट: मैं अपनी राय 'बेबाकी' से रखने वाला हूँ, ऍम सॉरी इफ आई विल हर्ट योर 'सो कॉल्ड' एथिक्स.. सो बैक ऑफ...)
"भारत" ये सिर्फ न एक देश का नाम है, यहाँ बसती है 1 अरब से ऊपर जिंदगियां, चहकती हैं हँसियाँ,
गूंजती है किलकारियां, उड़ान भरते है सपने, खिलते हैं संस्कार और यहाँ है ढेर सारा प्यार.
एनफ यार!! कुछ बोरिंग लग रहा है राईट..?? हाँ, मुझे भी.
आज, 26 जनवरी की सुबह से लिखने के बारे में सोच रहा हूँ अपने देश के बारे में. क्या लिखूं, क्या नहीं..
बस इसी उधेड़बुन में लगा था. और आज शाम (26 जनवरी को), लैपटॉप खोल के बैठा हूँ लिखने. पता नहीं कब कम्पलीट कर पाउँगा.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहने का गौरव प्राप्त है हम भारतीय को.आप जानते ही होगे हमारे मूलभूत अधिकारों के बारे में.
न्याय, आजादी, समानता और भाई-चारा ये हमारे सविंधान के मूल तत्व है.
मैं आपको आज सच्चाई बताना चाहता हूँ देश के हालात के बारे में. हो सकता है की कुछ एक मुझसे सहमत न हो.
और ये जरुरी भी नहीं है. कुछ स्टैट्स (stats) के ज़रिये मैं अपनी बात रखता हूँ.
(स्रोत : जनगणना रिपोर्ट, विश्व बैंक रिपोर्ट , इन्टरनेट और हिंदुस्तान समाचार पत्र )
1950-60 से आज तक देश की गरीबी में 80% की कमी आई है. सच्चाई कितनी है इस बात में
मुझे नहीं पता, जैसा मैंने देखा है, पढ़ा है, सुना है आई डोंट थिंक सो.
अकोर्डिंग टू मी गरीब, और गरीब हो गया है. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की रिपोर्ट से पता चला की आज भी ऐसे लोग
मौजूद है, जिनको घास की रोटी खा कर गुजर बसर करना पड़ रहा है. सोच के देखिये उस रोटी का स्वाद कैसा रहा होगा.
अभी कुछ दिन पहले ही एक भिखारी का घर आग की चपेट में आ गया था.. अब आप सोच रहे होंगे की भिखारी के घर में
आग लगी है, तो ज्यादा कुछ माल की हानि नहीं हुई होगी. लेकिन आश्चर्य की बात ये है की आग बुझाने के बाद उस भिखारी
के घर में कुछ कट्टों में रूपए भरे हुए थे जो अब अधजली अवस्था में थे.. ये ऐसा देश है जहाँ भिखारियां भी करोड़पति है.
जरा सी चोट लगी नहीं, दो चार हड्डी टूटी नही की लोग भीख मांग के जीना बेहतर समझते हैं. सेल्फ रिस्पेक्ट कहाँ है भारत में आज..??
"क्या भारत कभी फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा..?" इस सवाल के जवाब में इंदिरा गाँधी ने कहा-
"नहीं, क्यूँकि यहाँ के लोग को सहारे की बड़ी जरुरत पड़ती है. लोग खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं होना चाहते. कोई हमेशा चाहिए
उनको जो उन्हें सहारा देता रहे."
जैसे किसी बड़ी ईमारत में उसकी नींव की अहमियत होती है, कुछ वैसा ही किसी देश में उनके नेता की जगह होती है.
हमारे देश में यही कमी है, यहाँ कोई नेता (या ज्यादातर नेता) देश की भलाई के लिए काम नहीं करता. वो यही सोचता है की पहले खुद
का तो बैंक बैलेंस बनाऊ, फिर सोचूंगा देश को बनाने की. और वो सोच हमेशा "सोच" ही रह जाती है. उदहारण के लिए-
बिहार के एक जाने पहचाने नेता हैं- लालू जी. काफी नाम है उनका. मोस्टली चारा घोटाला के कारण. उनके सुपत्र के पास, जो की न तो
ज्यादा शिक्षित (शायद 8वीं या 9वीं) है, और न ही कोई रोजगार या व्यवसाय में है, लेकिन हैरानी की बात ये है, उन्होंने इस विधान सभा के
चुनाव में जो घोषणा पत्र में खुलासे किये, वो शायद ही आपको नार्मल लगे, कि उनके पास 20 लाख की बाइक और करोड़ो की चल-अचल सम्पति है.
मैं ये नि कहता की वो सो कॉल्ड "असहिष्णुता" बढ़ी है देश में, या ना मैं ऐसा मानता हूँ, बल्कि मेरा ये कहना है की इसमें जरा भी
बदलाव नही आया है, चाहे वो विपक्ष की सरकार हो या वर्तमान सरकार. स्थिति जस की तस है.
देश की जनता अभी भी जात-पात की राजनीति से ऊपर नहीं उठी है. कहीं भी अगर दलित या अल्पसंख्यक के साथ कुछ
भी अनहोनी घटित होता है, नेता लोग पहुँच जाते है, राजनीति करने. मोस्टली विपक्ष के. और ये बात तो वर्षों से चली आ रही है.
क्या कांग्रेस क्या भाजपा. सब एक ही थाली के चट्टे- बट्टे है.. और अगर वही अल्पसंख्यक समूह कुछ गलत कर देश को नुकशान
पहुंचाए तो कोई कुछ नहीं कहता, सब की आँखे बंद, मुंह पर चुप्पी. हुंह.. "राजनीति"!!
वैसे आज कल के मसीहा के नाम तो आप जानते ही होंगे, मैं अक्सर अपने पोस्ट में उनका जिक्र करता रहता हूँ. #पप्पू #मफ़लर_मैन
नहीं ऐसा भी नहीं देश के सभी नेता एक जैसे ही है, पा कहते है, कि देश को नए आसमान की सैर कराने वाला बंदा था
पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी. उन्हें ही शायद आधुनिक भारत का जनक माना जाता है. लेकिन अगर मुझे मेरे काल
में यान मेरे जनरेशन में जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है वो है "मोदी जी". एक नयी उम्मीद जगाई है इसने, इस सोये भारत में.
नहीं, मैं अँधा भक्त नहीं हूँ, क्यूंकि मैं उनकी बुराई भी करता हूँ जब मुझे लगता है की उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.
वर्तमान राजनीति में "अंधों में कान्हा राजा जैसा" है उसका हाल..
और वर्तमान राजनीति में जिसने मुझे सबसे ज्यादा निराश किया है वो है "केजरीवाल". बहुत उमीदें थी इससे. लेकिन अब ये भी
वोट बैंक की राजनीति करने लगा है. उदहारण के लिए- जब उनसे पठानकोट हमले के बारे में पुछा गया- वो बोले, "मैं दिल्ली का
मुख्यमंत्री हूँ और मुझे अपना पूरा ध्यान दिल्ली पे ही लगाना चाहिए." लेकिन जब ये दलित छात्र "रोहित" की आत्महत्या में पहुंचे
तब शायद ये भूल गए की , वो तब दिल्ली के बाहर में ही थे. क्या करें राजनीति क्या नहीं कराती. जब आपको दिल्ली की जनता ने पूर्ण
बहुमत से जिताया, तब आपको ये वोट बैंक की राजनीति करने की क्या जरुरत..??
यहाँ मौत को भी जाति, धर्म,समुदाय और वोट बैंक के चश्में के साथ देखा जाता है. और हमारे पप्पू के बारे में क्या कहूँ..??
बेचारा अभी भी बच्चा ही है.. छोटा भीम और डोरेमोन की उम्र में क्या करना पड़ रहा है बेचारे को. उसको रहन देते है.. :D
और ऊपर से इन राज नेताओं के बयान तो आग में छोंका लगाने का काम करते है. कुछ भी बोल देते हैं. बिना कुछ सोचे-समझे.
इन बड़-बोले नेताओं का बड़ा योगदान था भाजपा की बिहार में हार का. सबसे ज्यादा चिढ़ मुझे इन कट्टर नेताओं से होती है.
चाहे किसी भी धर्म के हो. ये ही होते है, भीड़ को भड़काने वाले. यहाँ के राजनीति में सिस्टम हो न हो, सिस्टम में राजनीति जरूर मिल जायेगी.
एनफ राजनीति की बाते.. राईट..??
मूविंग अहेड देश में साक्षरता (वर्तमान-74.4%) 6 गुना, 1947 के मुकाबले में बढ़ी है. सुन के अच्छा लगता है. लेकिन अभी भी
लोगों की सोच अनपढ़ जैसी है. लाइक "पढ़े-लिखे-गंवार". क्या आपको नहीं महसूस होता.?? मुख्यत: महिलाओं को लेकर अभी भी छोटे
शहर में काफी गलत धारणा रहती है. वो बस जैसे सोचते है जैसे ये कोई "उपभोग" की वस्तु है. ऐसी वस्तु जिसमें ऊपर वाले ने
गलती से जान भी दे दी है.
और हमारे देश के लोग कितने साक्षर है, इसका प्रमाण तो आपको देश के सभी पब्लिक टॉयलेट की दीवारों पर लिखे सन्देशों में मिल जायेगा.
और वहां की दीवारों पर भी, जहाँ लिखा रहता है- "यहाँ थूकना या पेशाब करना सख्त मना है.."
यहाँ आज भी पुरुष को वर्जिन लड़की ही चाहिए. खुद जरुर मुंह मारते फिरते रहेंगे.
लेकिन लड़की चाहिए तो "वर्जिन". यही सोच है "पढ़े-लिखे-गंवारों" जैसी. उनको किसी की जूठन नहीं खानी. देश को यही सोच
डूबाएगी. लडकियों को यहाँ जज करने वाले आसानी से मिल जायेंगे. यहाँ कोई लड़की अगर कोंडम खरीदने जाती है, तो लोगों को
ये राय बनाने में बिल्कुल देर नहीं लगती की ये जरुर देह व्यापार में लिप्त होगी. दैट्स टिपिकल इंडियन मेंटालिटी. हुह..
गुस्सा आता है जब ऐसे लोगों को सुनता हूँ, देखता हूँ , बस यही ख्याल आता है मन में..
"कितनी दूर आ लिए हम,
सफ़र बचा है मीलों का
थकना नहीं है.
आएगा एक दिन
जब हम होंगे वहां
कदमों तले होगा जहां.." (#MJ_की_कीपैड_से)
सुना तो आपने भी होगा- "फिल्में समाज का आईना होती है"
देश में बढ़ रहे रेप का एक बड़ा कारण मैं देश में बन रही फिल्में को भी मानता हूँ. हर पुराने (70-90 के) दुसरे मूवी में आपको
रेप सीन्स मिल जायेंगे. हालाँकि अभी नयी बॉलीवुड फिल्में में इनकी गिरवाट जरुर आई है. ध्यान दीजिये मैं पर्टिकुलर 'रेप सीन्स'
की बात कर रहा हूँ. और साउथ इंडिया की तो हर दूसरी मूवी में आपको ये मिल जायेगा. आई ऍम वेरी फोंड ऑफ़ वाचिंग मूवीज.
अभी तक हॉलीवुड की मैंने लगभग 1000 से ज्यादा मूवीज देख ही ली होगी, बट व्हाट आई वाना टेल यू इज उन 1000 पिक्चरों में
सिर्फ एक ही मूवी मुझे ध्यान है, और आई कैन सेय, ऍम प्रीटी श्योर जिसमें रेप सीन्स पिक्चराइजड हो.
हालांकि उनमें लव मेकिंग सीन्स की कमी नहीं होती. बट देयर इज ह्यूज डिफ्फ्रेंस बिटवीन 'रेप' एंड 'मेकिंग लव'. अगर आप समझ सकें अंतर.
बहुत बड़ा होव्वा बन रखा है ये शब्द 'सेक्स' हमारे सोसाइटी में. जानना तो सब चाहते है, लेकिन बात कोई नहीं करना चाहता. विशेष कर लड़कों
के लिए जिनकी उम्र कम होती है. मुझे लगता है की सरकार को भी सेक्स एजुकेशन को लागू करना चाहिए. लोगों को बात करनी चाहिए.
लाइक यू क्नो वेस्टर्न कन्ट्रीज . कितने फ्रैंक होते है लोग वहां के. देयर इज नो बिग डील हैविंग सेक्स और टॉकिंग अबाउट दोज स्टफ.
जस्ट फॉर अ एक्जाम्प्ल, आई वाज वाचिंग अ मूवी नेम्ड 'वाइल्ड' स्टार्रर Reese Witherspoon, वेयर अ गर्ल गोज आउट फॉर
ट्रैकिंग,अलोन. येह यू हर्ड मी..!! अलोन..!! देयर शी मेट टू गाईज/ टोटली स्ट्रेंजर्स. एंड देन, दे लेट हर गो. विथ आउट हार्मिंग हर. और यू कैन सेय विथआउट
रेपिंग हर. एंड देट्स अ बायोग्राफी, देट मीन्स देट्स अ एक्चुअल स्टोरी और इन्सिडेंट्स.
सो, लेट्स जस्ट थिंक/इमेजिन देट गर्ल रोमिंग अराउंड इन जंगल ऑफ़ इंडिया. 'आल अलोन'. एंड देयर, शी मेट्स टू स्ट्रेंजर्स/ईंडियन स्ट्रेंजर्स.
नाउ यू कैन गेस , व्हाट विल हैपन नेक्सट. गनीमत हो की वो जिंदा बच आये वापस. सो देट्स इंडिया बेबी. करेक्ट इफ आई ऍम रोंग.
यूट्यूब पे क्राइम पेट्रोल का एक एपिसोड देखने लायक है- 'राख' सर्च कीजियेगा. पता चल जायेगा क्या सोच है इस 74.4% साक्षर भारत में कुछ एक की.
हमारी हिंदी की टीचर कहा करती थी - "अगर किसी देश को खत्म करना है, तो सबसे पहले उसकी संस्कृति या सभ्यता को खत्म करो."
और हमारी संस्कृति का ही ये असर है. जहाँ 'लड़की' से ही सवाल किया जाता है. क्यों? कौन? कब? कहा? कैसे?
बस ये ही कहा गया है, 'औरत लक्ष्मी के सामान है'. लक्ष्मी यानी देवी. बस कहने की बात है ये, संस्कृति,सभ्यता एंड आल देट बुलशीट.
मैं ये सोचता हूँ, अच्छी बात कहीं से भी सीखी जा सकती है. करेक्ट मी इफ आई ऍम रॉंग. नहीं तो आगे भी #संस्कारी_जेम्स_बांड जैसी चीज़ें
यहाँ ट्रेंड करती रहेंगी. आई एम् श्योर पता ही होगा आपको इस बारे में. इस दिखावे की सोसाइटी में.
और हाँ, एक और बात, आई ऍम रियली इम्प्रेस्सेड बाय अ एड्वेर्टीइज्मेंट- 'लड़के रुलाते नहीं'. सोचने पे मजबूर कर देने जैसी बात है. ये हमारी संस्कृति
जहाँ औरतों को मारा-पीटा जाता है. बस कहने की बात है. एक्चुअल में सब जानवर है यहाँ, बस इंसानों जैसी खाल पहन के घूमते है.
हम हमेशा बात करते है, की हमें भी वर्ल्ड क्लास की सुविधाएं चाहिए, बुलेट ट्रेन चाहिए, स्मार्ट सिटी चाहिए. सब कुछ अच्छा चाहिए.
लेकिन सच कहूँ तो हम भारतीय अभी सुविधओं के लिए तैयार नहीं हुए है. यानी हम बात करेंगे बुलेट ट्रेन की, लेकिन हरकतें हम करते है,
बैलगाड़ी की. पता चला की नहीं आपको, कि देश में महामना एक्सप्रेस नाम से एक गाडी चलती है, लेकिन उसका स्टैण्डर्ड कमाल का था.
ध्यान दीजिये मैंने पास्ट टेंस का यूज किया 'था'. क्यूँ की अब ये नहीं है, अभी दो हफ्ते से ही ज्यादा हुए है, इस ट्रेन के नए 18 सुपर हाईटेक डब्बों को.
लेकिन हालात उसके अब वही हो गयी है. बस बदलना सोच को है अपने. सबसे बड़ी दिक्कत है हम भारतीयों की, हम अपनी गलती कभी एक्सेप्ट
नहीं कर सकते. हुंह.. पढ़े-लिखे-गंवार... आई ऍम सॉरी इफ आई ऍम हर्टिंग यू.. बट देट्स ट्रुथ..
मूविंग अहेड , 'पुलिस' जो हमारे सुरक्षा के लिए होती है. मुझे लगता है, शायद दुनिया की सबसे ख़राब पुलिस प्रशासन है हमारे देश का.
'बेफिक्रे'. देश की हालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक पुलिस वाले को 10रु के बल्ब को चुराने की जरुरत पड़ रही है.
यहाँ की तो पुलिस भी चोर है. सोती रहती है बस, हमेशा. बस कहने के लिए - 'आपके सेवा में, सैदेव तत्पर' की टैग लाइन ले कर चलती है.
वर्स्ट थिंग अबाउट इट, व्हाट आई डोंट अंडरस्टैंड इज, ये F.I.R दर्ज करने में इतने नखरे दिखाते है, जैसे किसी ने इनकी किडनी गिरवी
रख दी हो. आधी समस्या तो उसी दिन हल हो जाएगी जिस दिन ये पुलिस वाले अंकल लोग अपना काम करने लगे. अधिकतर आपको भ्रष्ट ही
दिखेंगे, पेट बाहर निकला हुआ. हाँ, यही तस्वीर बनती है मेरे जहन में उनकी तस्वीर.
लोग यहाँ परेशान इस बात से रहता है की, अगर मैं अपना काम ईमानदारी से काम करूं, तो धमकियाँ मिलने लगेगी, ज्यादा फच-फच करेंगे
तो आपकी जान भी जा सकती है. याद है न आपको 'मंजूनाथ', जो इमानदारी के लिए अपनी जान दे बैठा. और यदि अगर आपने दूसरा रास्ता
(यानी भ्रष्ट होना) चुना, तो देर लगेगी जरुर, लेकिन आप सरकारी आवास/पिंजड़े में पहुँच जायेंगे. खैर ऐसा तो मानना ही है देश के कानून का.
बाकी जो है, सो तो हैइए है.!!
ओके, काफी बुराई कर ली, देश की. कुछ तो अच्छा ही होगा इसमें. अच्छाई दूंढ़ने का काम मैं आप पे छोड़ देता हूँ.
आई एम् श्योर यू विल फाइंड इट इजीली. एंड इफ यू कांट, देन लेट मी क्नो. मैं आपको गिनाऊंगा अच्छाईयां देश की.
2005 की हिंदी पिक्चर 'रंग दे बसंती' का एक डायलोग है- "कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे बनाना पड़ता है"
तो ये हमारा जिम्मा है, हम यूथ का जिम्मा है. सो लेट्स जस्ट टेक अ ओथ , देट वी विल वर्क टुवर्ड्स इट्स फ्यूचर. व्हाट सेय.. हाँ..??
मैंने कसम खायी है, की अगर मैंने सामने किसी का एक्सीडेंट होता है, तो मैं उसकी मदद जरुर करूँगा. जरा सोचिये अगर उस ज्योति सिंह, जिसको
दामिनी या निर्भया के नाम से भी जाना जाता है, को जरा सी मदद जल्दी मिल जाती, तो शायद वो बच सकती थी.
जबसे मोदी ने वो 'स्वच्छ भारत' कैंपेन लांच किया था, तब मैंने सोचा था की,
'यार! इससे पहले मेरे दिमाग में ये क्यूँ नहीं आया..??' और उस दिन से, जहाँ तक संभव होता है, मैं कूड़े को कूड़ेदान में ही डालता हूँ.
जहाँ तक संभव होता है, लोगों को समझाता हूँ. कि भई! ये आपका ही देश है, आप इसको गन्दा कर रहे है.!! जहाँ तक संभव हो, पब्लिक कन्विनियेंस
का इस्तेमाल करता हूँ. राष्ट्रगान का सम्मान कीजिये. महिलाओं को इज्जत दें. कभी जज मत कीजिये उन्हें, बिना उनको जाने. आपको कोई हक नहीं है
उनके बारे में अटकलें लगाने की. जरुरी नहीं, की आप देश के लिए जान दे कर ही इसका कर्ज चूका सकते है. आपको बस एक अच्छा नागरिक बनना
होगा, अगर आप सच में देश का कर्ज चुकाना चाहते हैं. पहल तो कीजिये.. हो सकता है कुछ परेशानी आएँगी, बट इन द एंड ऑफ़ द डे, यू कैन लुक
ईंटू योर ओन आईज विथ अ प्राइड. क्यूंकि जिम्मेदारी हमें ही उठानी पड़ेगी देश की.
और हाँ, वो संस्कृति वाली बात पे आप सोचियेगा जरुर. क्यूँकी अच्छी बात कहीं से भी सीखी जा सकती है.
खुश रहिये, दूसरों को खुश रखने की कोशिश करें.
Date Of Completion- 03-Feb.-2016
:- #MJ_की_कीपैड_से
(नोट: मैं अपनी राय 'बेबाकी' से रखने वाला हूँ, ऍम सॉरी इफ आई विल हर्ट योर 'सो कॉल्ड' एथिक्स.. सो बैक ऑफ...)
"भारत" ये सिर्फ न एक देश का नाम है, यहाँ बसती है 1 अरब से ऊपर जिंदगियां, चहकती हैं हँसियाँ,
गूंजती है किलकारियां, उड़ान भरते है सपने, खिलते हैं संस्कार और यहाँ है ढेर सारा प्यार.
एनफ यार!! कुछ बोरिंग लग रहा है राईट..?? हाँ, मुझे भी.
आज, 26 जनवरी की सुबह से लिखने के बारे में सोच रहा हूँ अपने देश के बारे में. क्या लिखूं, क्या नहीं..
बस इसी उधेड़बुन में लगा था. और आज शाम (26 जनवरी को), लैपटॉप खोल के बैठा हूँ लिखने. पता नहीं कब कम्पलीट कर पाउँगा.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहने का गौरव प्राप्त है हम भारतीय को.आप जानते ही होगे हमारे मूलभूत अधिकारों के बारे में.
न्याय, आजादी, समानता और भाई-चारा ये हमारे सविंधान के मूल तत्व है.
मैं आपको आज सच्चाई बताना चाहता हूँ देश के हालात के बारे में. हो सकता है की कुछ एक मुझसे सहमत न हो.
और ये जरुरी भी नहीं है. कुछ स्टैट्स (stats) के ज़रिये मैं अपनी बात रखता हूँ.
(स्रोत : जनगणना रिपोर्ट, विश्व बैंक रिपोर्ट , इन्टरनेट और हिंदुस्तान समाचार पत्र )
1950-60 से आज तक देश की गरीबी में 80% की कमी आई है. सच्चाई कितनी है इस बात में
मुझे नहीं पता, जैसा मैंने देखा है, पढ़ा है, सुना है आई डोंट थिंक सो.
अकोर्डिंग टू मी गरीब, और गरीब हो गया है. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की रिपोर्ट से पता चला की आज भी ऐसे लोग
मौजूद है, जिनको घास की रोटी खा कर गुजर बसर करना पड़ रहा है. सोच के देखिये उस रोटी का स्वाद कैसा रहा होगा.
अभी कुछ दिन पहले ही एक भिखारी का घर आग की चपेट में आ गया था.. अब आप सोच रहे होंगे की भिखारी के घर में
आग लगी है, तो ज्यादा कुछ माल की हानि नहीं हुई होगी. लेकिन आश्चर्य की बात ये है की आग बुझाने के बाद उस भिखारी
के घर में कुछ कट्टों में रूपए भरे हुए थे जो अब अधजली अवस्था में थे.. ये ऐसा देश है जहाँ भिखारियां भी करोड़पति है.
जरा सी चोट लगी नहीं, दो चार हड्डी टूटी नही की लोग भीख मांग के जीना बेहतर समझते हैं. सेल्फ रिस्पेक्ट कहाँ है भारत में आज..??
"क्या भारत कभी फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा..?" इस सवाल के जवाब में इंदिरा गाँधी ने कहा-
"नहीं, क्यूँकि यहाँ के लोग को सहारे की बड़ी जरुरत पड़ती है. लोग खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं होना चाहते. कोई हमेशा चाहिए
उनको जो उन्हें सहारा देता रहे."
जैसे किसी बड़ी ईमारत में उसकी नींव की अहमियत होती है, कुछ वैसा ही किसी देश में उनके नेता की जगह होती है.
हमारे देश में यही कमी है, यहाँ कोई नेता (या ज्यादातर नेता) देश की भलाई के लिए काम नहीं करता. वो यही सोचता है की पहले खुद
का तो बैंक बैलेंस बनाऊ, फिर सोचूंगा देश को बनाने की. और वो सोच हमेशा "सोच" ही रह जाती है. उदहारण के लिए-
बिहार के एक जाने पहचाने नेता हैं- लालू जी. काफी नाम है उनका. मोस्टली चारा घोटाला के कारण. उनके सुपत्र के पास, जो की न तो
ज्यादा शिक्षित (शायद 8वीं या 9वीं) है, और न ही कोई रोजगार या व्यवसाय में है, लेकिन हैरानी की बात ये है, उन्होंने इस विधान सभा के
चुनाव में जो घोषणा पत्र में खुलासे किये, वो शायद ही आपको नार्मल लगे, कि उनके पास 20 लाख की बाइक और करोड़ो की चल-अचल सम्पति है.
मैं ये नि कहता की वो सो कॉल्ड "असहिष्णुता" बढ़ी है देश में, या ना मैं ऐसा मानता हूँ, बल्कि मेरा ये कहना है की इसमें जरा भी
बदलाव नही आया है, चाहे वो विपक्ष की सरकार हो या वर्तमान सरकार. स्थिति जस की तस है.
देश की जनता अभी भी जात-पात की राजनीति से ऊपर नहीं उठी है. कहीं भी अगर दलित या अल्पसंख्यक के साथ कुछ
भी अनहोनी घटित होता है, नेता लोग पहुँच जाते है, राजनीति करने. मोस्टली विपक्ष के. और ये बात तो वर्षों से चली आ रही है.
क्या कांग्रेस क्या भाजपा. सब एक ही थाली के चट्टे- बट्टे है.. और अगर वही अल्पसंख्यक समूह कुछ गलत कर देश को नुकशान
पहुंचाए तो कोई कुछ नहीं कहता, सब की आँखे बंद, मुंह पर चुप्पी. हुंह.. "राजनीति"!!
वैसे आज कल के मसीहा के नाम तो आप जानते ही होंगे, मैं अक्सर अपने पोस्ट में उनका जिक्र करता रहता हूँ. #पप्पू #मफ़लर_मैन
नहीं ऐसा भी नहीं देश के सभी नेता एक जैसे ही है, पा कहते है, कि देश को नए आसमान की सैर कराने वाला बंदा था
पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी. उन्हें ही शायद आधुनिक भारत का जनक माना जाता है. लेकिन अगर मुझे मेरे काल
में यान मेरे जनरेशन में जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है वो है "मोदी जी". एक नयी उम्मीद जगाई है इसने, इस सोये भारत में.
नहीं, मैं अँधा भक्त नहीं हूँ, क्यूंकि मैं उनकी बुराई भी करता हूँ जब मुझे लगता है की उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.
वर्तमान राजनीति में "अंधों में कान्हा राजा जैसा" है उसका हाल..
और वर्तमान राजनीति में जिसने मुझे सबसे ज्यादा निराश किया है वो है "केजरीवाल". बहुत उमीदें थी इससे. लेकिन अब ये भी
वोट बैंक की राजनीति करने लगा है. उदहारण के लिए- जब उनसे पठानकोट हमले के बारे में पुछा गया- वो बोले, "मैं दिल्ली का
मुख्यमंत्री हूँ और मुझे अपना पूरा ध्यान दिल्ली पे ही लगाना चाहिए." लेकिन जब ये दलित छात्र "रोहित" की आत्महत्या में पहुंचे
तब शायद ये भूल गए की , वो तब दिल्ली के बाहर में ही थे. क्या करें राजनीति क्या नहीं कराती. जब आपको दिल्ली की जनता ने पूर्ण
बहुमत से जिताया, तब आपको ये वोट बैंक की राजनीति करने की क्या जरुरत..??
यहाँ मौत को भी जाति, धर्म,समुदाय और वोट बैंक के चश्में के साथ देखा जाता है. और हमारे पप्पू के बारे में क्या कहूँ..??
बेचारा अभी भी बच्चा ही है.. छोटा भीम और डोरेमोन की उम्र में क्या करना पड़ रहा है बेचारे को. उसको रहन देते है.. :D
और ऊपर से इन राज नेताओं के बयान तो आग में छोंका लगाने का काम करते है. कुछ भी बोल देते हैं. बिना कुछ सोचे-समझे.
इन बड़-बोले नेताओं का बड़ा योगदान था भाजपा की बिहार में हार का. सबसे ज्यादा चिढ़ मुझे इन कट्टर नेताओं से होती है.
चाहे किसी भी धर्म के हो. ये ही होते है, भीड़ को भड़काने वाले. यहाँ के राजनीति में सिस्टम हो न हो, सिस्टम में राजनीति जरूर मिल जायेगी.
एनफ राजनीति की बाते.. राईट..??
मूविंग अहेड देश में साक्षरता (वर्तमान-74.4%) 6 गुना, 1947 के मुकाबले में बढ़ी है. सुन के अच्छा लगता है. लेकिन अभी भी
लोगों की सोच अनपढ़ जैसी है. लाइक "पढ़े-लिखे-गंवार". क्या आपको नहीं महसूस होता.?? मुख्यत: महिलाओं को लेकर अभी भी छोटे
शहर में काफी गलत धारणा रहती है. वो बस जैसे सोचते है जैसे ये कोई "उपभोग" की वस्तु है. ऐसी वस्तु जिसमें ऊपर वाले ने
गलती से जान भी दे दी है.
और हमारे देश के लोग कितने साक्षर है, इसका प्रमाण तो आपको देश के सभी पब्लिक टॉयलेट की दीवारों पर लिखे सन्देशों में मिल जायेगा.
और वहां की दीवारों पर भी, जहाँ लिखा रहता है- "यहाँ थूकना या पेशाब करना सख्त मना है.."
यहाँ आज भी पुरुष को वर्जिन लड़की ही चाहिए. खुद जरुर मुंह मारते फिरते रहेंगे.
लेकिन लड़की चाहिए तो "वर्जिन". यही सोच है "पढ़े-लिखे-गंवारों" जैसी. उनको किसी की जूठन नहीं खानी. देश को यही सोच
डूबाएगी. लडकियों को यहाँ जज करने वाले आसानी से मिल जायेंगे. यहाँ कोई लड़की अगर कोंडम खरीदने जाती है, तो लोगों को
ये राय बनाने में बिल्कुल देर नहीं लगती की ये जरुर देह व्यापार में लिप्त होगी. दैट्स टिपिकल इंडियन मेंटालिटी. हुह..
गुस्सा आता है जब ऐसे लोगों को सुनता हूँ, देखता हूँ , बस यही ख्याल आता है मन में..
"कितनी दूर आ लिए हम,
सफ़र बचा है मीलों का
थकना नहीं है.
आएगा एक दिन
जब हम होंगे वहां
कदमों तले होगा जहां.." (#MJ_की_कीपैड_से)
सुना तो आपने भी होगा- "फिल्में समाज का आईना होती है"
देश में बढ़ रहे रेप का एक बड़ा कारण मैं देश में बन रही फिल्में को भी मानता हूँ. हर पुराने (70-90 के) दुसरे मूवी में आपको
रेप सीन्स मिल जायेंगे. हालाँकि अभी नयी बॉलीवुड फिल्में में इनकी गिरवाट जरुर आई है. ध्यान दीजिये मैं पर्टिकुलर 'रेप सीन्स'
की बात कर रहा हूँ. और साउथ इंडिया की तो हर दूसरी मूवी में आपको ये मिल जायेगा. आई ऍम वेरी फोंड ऑफ़ वाचिंग मूवीज.
अभी तक हॉलीवुड की मैंने लगभग 1000 से ज्यादा मूवीज देख ही ली होगी, बट व्हाट आई वाना टेल यू इज उन 1000 पिक्चरों में
सिर्फ एक ही मूवी मुझे ध्यान है, और आई कैन सेय, ऍम प्रीटी श्योर जिसमें रेप सीन्स पिक्चराइजड हो.
हालांकि उनमें लव मेकिंग सीन्स की कमी नहीं होती. बट देयर इज ह्यूज डिफ्फ्रेंस बिटवीन 'रेप' एंड 'मेकिंग लव'. अगर आप समझ सकें अंतर.
बहुत बड़ा होव्वा बन रखा है ये शब्द 'सेक्स' हमारे सोसाइटी में. जानना तो सब चाहते है, लेकिन बात कोई नहीं करना चाहता. विशेष कर लड़कों
के लिए जिनकी उम्र कम होती है. मुझे लगता है की सरकार को भी सेक्स एजुकेशन को लागू करना चाहिए. लोगों को बात करनी चाहिए.
लाइक यू क्नो वेस्टर्न कन्ट्रीज . कितने फ्रैंक होते है लोग वहां के. देयर इज नो बिग डील हैविंग सेक्स और टॉकिंग अबाउट दोज स्टफ.
जस्ट फॉर अ एक्जाम्प्ल, आई वाज वाचिंग अ मूवी नेम्ड 'वाइल्ड' स्टार्रर Reese Witherspoon, वेयर अ गर्ल गोज आउट फॉर
ट्रैकिंग,अलोन. येह यू हर्ड मी..!! अलोन..!! देयर शी मेट टू गाईज/ टोटली स्ट्रेंजर्स. एंड देन, दे लेट हर गो. विथ आउट हार्मिंग हर. और यू कैन सेय विथआउट
रेपिंग हर. एंड देट्स अ बायोग्राफी, देट मीन्स देट्स अ एक्चुअल स्टोरी और इन्सिडेंट्स.
सो, लेट्स जस्ट थिंक/इमेजिन देट गर्ल रोमिंग अराउंड इन जंगल ऑफ़ इंडिया. 'आल अलोन'. एंड देयर, शी मेट्स टू स्ट्रेंजर्स/ईंडियन स्ट्रेंजर्स.
नाउ यू कैन गेस , व्हाट विल हैपन नेक्सट. गनीमत हो की वो जिंदा बच आये वापस. सो देट्स इंडिया बेबी. करेक्ट इफ आई ऍम रोंग.
यूट्यूब पे क्राइम पेट्रोल का एक एपिसोड देखने लायक है- 'राख' सर्च कीजियेगा. पता चल जायेगा क्या सोच है इस 74.4% साक्षर भारत में कुछ एक की.
हमारी हिंदी की टीचर कहा करती थी - "अगर किसी देश को खत्म करना है, तो सबसे पहले उसकी संस्कृति या सभ्यता को खत्म करो."
और हमारी संस्कृति का ही ये असर है. जहाँ 'लड़की' से ही सवाल किया जाता है. क्यों? कौन? कब? कहा? कैसे?
बस ये ही कहा गया है, 'औरत लक्ष्मी के सामान है'. लक्ष्मी यानी देवी. बस कहने की बात है ये, संस्कृति,सभ्यता एंड आल देट बुलशीट.
मैं ये सोचता हूँ, अच्छी बात कहीं से भी सीखी जा सकती है. करेक्ट मी इफ आई ऍम रॉंग. नहीं तो आगे भी #संस्कारी_जेम्स_बांड जैसी चीज़ें
यहाँ ट्रेंड करती रहेंगी. आई एम् श्योर पता ही होगा आपको इस बारे में. इस दिखावे की सोसाइटी में.
और हाँ, एक और बात, आई ऍम रियली इम्प्रेस्सेड बाय अ एड्वेर्टीइज्मेंट- 'लड़के रुलाते नहीं'. सोचने पे मजबूर कर देने जैसी बात है. ये हमारी संस्कृति
जहाँ औरतों को मारा-पीटा जाता है. बस कहने की बात है. एक्चुअल में सब जानवर है यहाँ, बस इंसानों जैसी खाल पहन के घूमते है.
हम हमेशा बात करते है, की हमें भी वर्ल्ड क्लास की सुविधाएं चाहिए, बुलेट ट्रेन चाहिए, स्मार्ट सिटी चाहिए. सब कुछ अच्छा चाहिए.
लेकिन सच कहूँ तो हम भारतीय अभी सुविधओं के लिए तैयार नहीं हुए है. यानी हम बात करेंगे बुलेट ट्रेन की, लेकिन हरकतें हम करते है,
बैलगाड़ी की. पता चला की नहीं आपको, कि देश में महामना एक्सप्रेस नाम से एक गाडी चलती है, लेकिन उसका स्टैण्डर्ड कमाल का था.
ध्यान दीजिये मैंने पास्ट टेंस का यूज किया 'था'. क्यूँ की अब ये नहीं है, अभी दो हफ्ते से ही ज्यादा हुए है, इस ट्रेन के नए 18 सुपर हाईटेक डब्बों को.
लेकिन हालात उसके अब वही हो गयी है. बस बदलना सोच को है अपने. सबसे बड़ी दिक्कत है हम भारतीयों की, हम अपनी गलती कभी एक्सेप्ट
नहीं कर सकते. हुंह.. पढ़े-लिखे-गंवार... आई ऍम सॉरी इफ आई ऍम हर्टिंग यू.. बट देट्स ट्रुथ..
मूविंग अहेड , 'पुलिस' जो हमारे सुरक्षा के लिए होती है. मुझे लगता है, शायद दुनिया की सबसे ख़राब पुलिस प्रशासन है हमारे देश का.
'बेफिक्रे'. देश की हालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक पुलिस वाले को 10रु के बल्ब को चुराने की जरुरत पड़ रही है.
यहाँ की तो पुलिस भी चोर है. सोती रहती है बस, हमेशा. बस कहने के लिए - 'आपके सेवा में, सैदेव तत्पर' की टैग लाइन ले कर चलती है.
वर्स्ट थिंग अबाउट इट, व्हाट आई डोंट अंडरस्टैंड इज, ये F.I.R दर्ज करने में इतने नखरे दिखाते है, जैसे किसी ने इनकी किडनी गिरवी
रख दी हो. आधी समस्या तो उसी दिन हल हो जाएगी जिस दिन ये पुलिस वाले अंकल लोग अपना काम करने लगे. अधिकतर आपको भ्रष्ट ही
दिखेंगे, पेट बाहर निकला हुआ. हाँ, यही तस्वीर बनती है मेरे जहन में उनकी तस्वीर.
लोग यहाँ परेशान इस बात से रहता है की, अगर मैं अपना काम ईमानदारी से काम करूं, तो धमकियाँ मिलने लगेगी, ज्यादा फच-फच करेंगे
तो आपकी जान भी जा सकती है. याद है न आपको 'मंजूनाथ', जो इमानदारी के लिए अपनी जान दे बैठा. और यदि अगर आपने दूसरा रास्ता
(यानी भ्रष्ट होना) चुना, तो देर लगेगी जरुर, लेकिन आप सरकारी आवास/पिंजड़े में पहुँच जायेंगे. खैर ऐसा तो मानना ही है देश के कानून का.
बाकी जो है, सो तो हैइए है.!!
ओके, काफी बुराई कर ली, देश की. कुछ तो अच्छा ही होगा इसमें. अच्छाई दूंढ़ने का काम मैं आप पे छोड़ देता हूँ.
आई एम् श्योर यू विल फाइंड इट इजीली. एंड इफ यू कांट, देन लेट मी क्नो. मैं आपको गिनाऊंगा अच्छाईयां देश की.
2005 की हिंदी पिक्चर 'रंग दे बसंती' का एक डायलोग है- "कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता, उसे बनाना पड़ता है"
तो ये हमारा जिम्मा है, हम यूथ का जिम्मा है. सो लेट्स जस्ट टेक अ ओथ , देट वी विल वर्क टुवर्ड्स इट्स फ्यूचर. व्हाट सेय.. हाँ..??
मैंने कसम खायी है, की अगर मैंने सामने किसी का एक्सीडेंट होता है, तो मैं उसकी मदद जरुर करूँगा. जरा सोचिये अगर उस ज्योति सिंह, जिसको
दामिनी या निर्भया के नाम से भी जाना जाता है, को जरा सी मदद जल्दी मिल जाती, तो शायद वो बच सकती थी.
जबसे मोदी ने वो 'स्वच्छ भारत' कैंपेन लांच किया था, तब मैंने सोचा था की,
'यार! इससे पहले मेरे दिमाग में ये क्यूँ नहीं आया..??' और उस दिन से, जहाँ तक संभव होता है, मैं कूड़े को कूड़ेदान में ही डालता हूँ.
जहाँ तक संभव होता है, लोगों को समझाता हूँ. कि भई! ये आपका ही देश है, आप इसको गन्दा कर रहे है.!! जहाँ तक संभव हो, पब्लिक कन्विनियेंस
का इस्तेमाल करता हूँ. राष्ट्रगान का सम्मान कीजिये. महिलाओं को इज्जत दें. कभी जज मत कीजिये उन्हें, बिना उनको जाने. आपको कोई हक नहीं है
उनके बारे में अटकलें लगाने की. जरुरी नहीं, की आप देश के लिए जान दे कर ही इसका कर्ज चूका सकते है. आपको बस एक अच्छा नागरिक बनना
होगा, अगर आप सच में देश का कर्ज चुकाना चाहते हैं. पहल तो कीजिये.. हो सकता है कुछ परेशानी आएँगी, बट इन द एंड ऑफ़ द डे, यू कैन लुक
ईंटू योर ओन आईज विथ अ प्राइड. क्यूंकि जिम्मेदारी हमें ही उठानी पड़ेगी देश की.
और हाँ, वो संस्कृति वाली बात पे आप सोचियेगा जरुर. क्यूँकी अच्छी बात कहीं से भी सीखी जा सकती है.
खुश रहिये, दूसरों को खुश रखने की कोशिश करें.
Date Of Completion- 03-Feb.-2016
:- #MJ_की_कीपैड_से