रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Wednesday, 8 March 2017

Happy International Women's Day

#सफ़रनामा #दोष_आपका_ही_है
#अंतर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस की ढ़ेरों शुभकामनाएं आप सभी महिलाओं को। आखिर एक दिन ही सही, लेकिन आप लोगों को सभी से सम्मान मिलता है शायद! आप महान हैं। यकीं मानिए मेरा। तीन साल दिल्ली में घर से अलग काट के, जब मुझे खुद काम करने की नौबत आई, तो मैं अक्सर सोचा करता था कि, "कैसे कर लेती है आप इतना कुछ, कैसे सह लेती हैं आप इतना कुछ, पहले आप अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए इस ज़माने से लड़ती है, फिर आप अपने परिवार में सामन्जस्य बना के चलती है, माँ की सुनती है, पिता की सुनती है, भाई से लड़ती है, झगड़ती है, फिर मेल-जोल भी करती है, घर से ही आपको रोकने-टोकने का सिलसिला शुरू हो जाता है, अपने भाई को बेझिझक रातों को भी दोस्त के साथ मजे करने की अनुमति मिल जाती है, और आपको भरी दुपहरी में भी नही। शुरू से ही आपको अपने भाइयों के साथ भेदभाव से झूझना पड़ता है। सभी हालातों से समझौता करना सीखती है। भाई को अच्छा इंग्लिश मीडियम पब्लिक स्कूल और आपको सरकारी स्कूल, भाई के लिए दूध के साथ मलाई भी बचाई जाती है, और आपको दूध से ही काम चलाना पड़ता है। भाई को जेब खर्च में तो अक्सर आपसे ज्यादा ही रूपए मिला करते होंगे। उम्र की कुछ दहलीज़ पार करी नहीं की आपका हँसना, खिल-खिलाना ज़माने को चुभना शुरू हो जाता है। आपके चरित्र पर उँगलियाँ उठने शुरू हो जाती है। आपके उड़ते पंखों को उड़ने तो दूर फड़फड़ाने की भी इज्जाजत भी नहीं मिलती। खुश किस्मत हुई तो अपने सगे भाई के रूप में आपको एक नया और भरोषेमंद दोस्त मिलता है। नहीं तो, वो आपका सबसे बड़ा दुश्मन बनता है। उसके इत्तने सवालों से आपको दो-चार होना पड़ता है। कहाँ जा रही है, वो कौन था, किससे बात कर रही थी वैगरह- वैगरह! बढ़ती उम्र के साथ आपको आंसुओं से भी दोस्ती करनी पड़ती है। कई पल ऐसे आते हैं जब आपके साथ उन आंसुओं के अलावा कोई अपना नहीं होता। मेरी दिल्ली की दोस्त राधिका (बदला हुआ नाम) मुझसे कहतीं है- "मंजेश! तुझे पता है कि मैं अपने भाई के सामने रोमेंटिक गाने नहीं सुन सकती, क्योंकि उसको इससे लगेगा की इसका कहीं चक्कर चल रहा है।" लगभग सभी घर की यही कहानी है।
आपको माँ-पापा इसीलिए नहीं पढ़ाते ताकि आप स्वाबलंबी बनें, अपने पैरों पड़ खड़े हों, बल्कि इसीलिए की आपकी शादी अच्छे घर में तय हो जाए। जब आप भी अपने भाई की तरह घर चलाने में मदद की पेशकश करती हैं तो "घर की औरत का बाहर काम करना शोभा नहीं देता है" जैसे बातें कह के चुप करा दिया जाता है। लेकिन दुःख तो तब ज्यादा होता है जब ताउम्र इतनी सारी असमानता झेलने के बाद भी आप अपने जन्मे बच्चों में अपने "बेटों" को ज्यादा दुलारती है, पुचकारती है और फिर वही समय का चक्र चलता रहता है। आप अपने "बेटों" को फिर अव्वल दर्जे के इंग्लिश मीडियम व "बेटियों" को बिना उनकी राय जाने औसत से सरकारी स्कूल में भेजती हैं। और फिर वही समय चक्र....
कक्षा 9 या 10 की हिंदी की किताब में एक अध्याय था, नाम था - "मेरे संग की औरतें" उसमें अभ्यास प्रश्न में ये पुछा गया था कि "लेखिका ने ऐसा क्यों कहा कि, 'औरतें ही औरतों की दुश्मन होती है...'? "
और उसका जवाब हमें रोजाना ही अपने निजी जिंदगी से रूबरू होना पड़ता है।
एक माँ को उसकी शादीशुदा बेटी का फ़ोन आता है, बेटी चरणस्पर्श या अभिवादन करती है, माँ, आशीर्वाद के तौर पे उसे सदा सुहागवती और सदा पुत्रवती बने रहने का आशीर्वाद देती है, लेकिन उनकी पुत्रियों का क्या..? उनसे कोई मोह नहीं..? 
अब बस भी कीजिये। खुद पे ही रहम कीजिये। मत कीजिये भेद भाव। याद रहें आप से ही शुरुवात होती है इन सभी की। और जब आप उन सबसे गुजर चुकी है तब आप कैसे होता देख सकती है अपनी ही बच्ची के साथ।
अच्छा लगता है जब कोई बच्ची, पूछने पर ये कहती है की उसको मम्मी- पापा दोनों ही ज्यादा अच्छा मानते हैं, और अगर यही बात आप किसी लड़के से जानना चाहेंगे तो शायद ही उसका उत्तर में "माँ" का जिक्र न हो।
और आप सभी, पुरुष वर्ग के लोग! जरुरी नहीं है की सड़क पर चलती हर लड़की को मुड़-मुड़ के अपनी आँखों में उनके लिए वो गन्दा सा एहसास उनको दिखाया जाए। अब तो जमाना ऐसा आ गया है कि आप यही खुद के साथ होते हुए कल्पना कर सकते हैं। आप खुद से सवाल पूछिये क्या आपको अच्छा लगेगा अगर कोई दूसरा पुरुष कुछ असामान्य नज़रों से देखें, क्या आप सहज महसूस करेंगे? आप पुरुष हैं तो आप ज्यादा से ज्यादा उससे हाथापाई कर लेंगे, लेकिन महिलाओं पे हाथ उठा के खुद को मर्द मत समझना. भई गांधी जी बाकायदा कह गए हैं, -" आप दुसरो के साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप खुद के साथ करवाना चाहते हैं।" तो, अब तो
बंद कीजिये छिछोरा पंती।
 शायद,धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपना जमाना, अपना समाज बदलेगा, अभी कुछ दिन पहले ही एक पोस्ट को फेसबुक की दीवार पे पढने का मौका मिला, पोस्ट एक छोटी बच्ची के साथ कुकृत्य की घटना की निंदा कर रहा था, पोस्टकर्ता से मेरी निजी जान पहचान है, वो व्यक्ति कुछ सालों पहले छोटे छोटे लड़कियों को देख के आहें भरता था, उनको 'कच्चा माल' कह के संबोधित करता था. शायद स्थिति बदली होगी, शायद अब उस नासमझ
को समझ आई होगी. खैर जो भी हो, आप महिलाएं खुद पे गर्व करें. स्थिति बदलेगी, जरुर! आशान्वित रहें..
They only want #Equality, some have freedoms already!
p.s- I'm not another Feminist, Just a Human being..!!
:- # MJ_की_कीपैड_से

No comments:

Post a Comment