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माँ कि मूर्ति को अंतिम रूप देता कलाकार |
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शिव-पार्वती |
#सरस्वती_पूजा
#एक_झलक #गाम_गोलमा
#पहला_दिन #मूर्ति_स्थापना
लगभग 18 सालों बाद मुझे गाँव के सरस्वती पूजा में शामिल होने का मौका मिला. यहाँ लोग इसे बसंत पंचमी को कुछ अलगे तरह से मनाते है.
लोग यहाँ पतंग नहीं उड़ाते, और न ही पीले कपड़ों को प्राथिमकता देते हैं। अपितु वो इस दिन को 'सरस्वती पूजा' के तौर पर मनाते हैं।
लगभग सभी शिक्षण संस्थान में विशेष तैयारियां की जाती है, 3-4 दिन पूर्व से ही। रात भर बच्चे, माँ सरस्वती की प्रतिमा को सजाने में व्यस्त रहते हैं।
और उनकी मेहनत भी रंग लाती है, जब "माँ" श्रृंगार के बाद और भी न्यारी नज़र आने लगती है। दो बड़े-बड़े स्पीकर लगाये गए हैं यहाँ मेरे घर के बगल वाले
कोचिंग सन्स्थान में इस उपलक्ष्य में। गाँव के बच्चे लोग ही इसे ही डी. जे कह के संबोधित करते है. भक्ति गाने बजने के साथ साथ कभी-कभी दुअर्थी
गाने बजाये जाते है। और लड़के लोग नाचने लग जाते हैं। सभी गाने के बीच बीच में "डी. जे कृष्णा" "डी. जे आदित्य" और न जाने कौन-कौन से नए नए डी. जे
के नाम सुने जाते हैं और उसका फोन नंबर भी बताया जाता है, कि आप उनसे संपर्क कर सकें, अगर आपको उसकी सेवाएं लेनी है। शायद अभी तक यहाँ के
लोगों का डी. जे स्नेक या डेविड गुएट्टा से वास्ता नहीं हुआ है. यहाँ डी.जे वाले बाबू का भक्ति संस्करण भी चलाया जा रहा है, बोल है -
"शेरों वाली मईया, बेरा पार लगा दे" और तो और बादशाह के रैप को भी बखूबी कॉपी किया गया है, और अभी "टिंकू जिया" का भक्ति संस्करण चल रहा है।
सुबह-सुबह माँ की आराधना के बाद दर्शन अभिलाषी बच्चे जल, पुष्प,अगरबत्ती और दिया लाते हैं अपने घर से और माँ के चरणों में अर्पित करते हैं। यहाँ
इन बच्चों कि मान्यता है कि कि अगर वो अपने किताबों या कॉपी को माँ के चरणों में रख देंगे तो उनके उस पुस्तक में माँ वास करेगी, और उनको विद्या का
फल निश्चित ही मिलेगा. ध्यान रखिये पूजा में शामिल होने के लिए आपका स्नान किये होना जरुरी है।
अच्छा ख़ासा टेंट लगाया गया है यहाँ. रस्सी में कागज़ के बने हुए नीले, पीले, बैंगनी, लाल रंग की पताकाएं लहरा रही है, जैसा कि आपने
बौध भिक्षुओं के आसपास देखें होंगे. साथ ही लाल, नीला और हरे रंग की झालरें लटक रही है। और तो और रंगीन लाइट्स की भी व्यस्था है,चकमक वाली।
केले के पेड़ को प्रांगण के चारों और लगाया गया है। मुख्य द्वार को पत्तो से सजाया गया है। ट्यूब लाइट्स और 60 वॉट के बल्ब से सब और सुंदर लग रहा है।
मेरी धुंधली स्मृति में गंगू भैया का "माँ" की प्रतिमा को सजाना याद है। मूर्ति के सिर के पीछे एक पंखा लगाया जाता था, जिससे उनके वास्तव अवतार होने का
एहसास होता था। जैसा की तब बी.आर.चोपड़ा की महाभारत में देवी देवताओं को पेश किया जाता था। अभी वो पंखा गायब है यहाँ से,
संभवतः किसी को ये सूझा नहीं होगा, और इसलिए भी की गंगू भाई जी यहाँ अभी गाँव में नही है, नहीं तो वो इसको कार्य को जरूर अंजाम देते।
कुछ महीने पहले से ही यहाँ प्रोजेक्टर पर बच्चों को "रईस" दिखाने की बात चल रही थी,
लेकिन ऐन वक्त पर विद्यालय के बगल वाले संभ्रात परिवार में किसी वृद्ध की आकस्मिक मृत्यु से ये वाली सब योजना निरस्त करना पड़ा।
काहे कि अब वहां श्राद्ध और अंतिम क्रिया के भोज में अपार भीड़ जुटने वाली है। लगभग समूचा गाँव ही मान के चलिए, तो इससे भोज खाने आये व्यक्ति भी
प्रोजेक्टर देख कर वहां घुस जाएगा। क्रेज यहाँ भी कम नहीं है इन सब का। फिलहाल चलचित्र दिखाने का कार्यक्रम आगे दो दिन बाद के लिए स्थगित किया गया है।
अजी, रूपए जमा किये गए थे सभी बच्चों से, मुख्य लोग बोले तो बैकबोन से 500 और बांकियो से शायद 50रु। तो वो इनके मनोरंजन में कोई कमी नहीं रखना चाहते। सरकारी बिजली के साथ साथ, बैकअप के लिए बैटरी का भी इंतज़ाम किया गया है।
हालांकि बच्चों का उत्साह यहाँ भी कम नहीं हुआ है। वो "हम्मा हम्मा", "आज रात का सीन बना दे" जैसे बॉलीवुड और भोजवुड के गाने बजा-बजा के
अपने मौज का तरीका तलाश लेते हैं। मेरे घर के सामने ही कदंब के पेड़ पर ही चार लाउड स्पीकर लगाया गया है। शाम को पूजा की प्रसाद बांटा गया।
बांकी जो है सो तो हइये है!!
शाम को गाँव कि कई महिलाएं आती है, माता के दरबार में. भजन कीर्तन करने. सरस्वती माँ के अराधना से शुरू हुआ उनकी ये शाम गणेश जी, फिर
उनके पिता भोले बाबा और करते करते लगभग सभी भगवानों की अराधना करते जाते हैं. एक माइक अलग से बघवा वाली काकी को दिया गया है, काहे की
उन सभी महिलाओं में से उनकी आवाज़ ज्यादा धन्कदार है, और वो इन सभी गीतों में पहले से ही निपुण है. एक माइक खुद विद्यालय के प्रधानाध्यापक
सोनू भाई जी ने अपने पास रखी है, कभी कभी वो भी उनका साथ दे देते हैं.
रात भर उन दो बड़े-बड़े और पेड़ पे लगे लाउडस्पीकर पे बॉलीवुड और भोजवुड के गाने बजते रहे. उन गानों को सुन कर
गाँव के NRV यानि Non Resident of Village युवा को कान-फोडू संगीत का आज एहसास हो गया होगा. और वो, जब शहर में 10 बजे
के बाद लाउड म्यूजिक न बज सकने वाले कानून को याद कर रहे होंगे. बूढों का क्या है, वो किसी तरह से एडजस्ट कर ही लेंगे. अभी तक वो यही तो करते
आ रहे है.
#सरस्वती_विसर्जन #आखिरी_दिन
#गोलमा_लाइव
मौका था सरस्वती माँ की मूर्ती, जिसको दो दिन पहले स्थापित किया गया था, उसको विसर्जित करने का। स्थानीय भाषा में इस क्रिया को 'भसाना' कहा जाता है।
उसके लिए एक बाकायदा नारा जैसा बनाया गया है कि - "नमो नमस्ते, सरस्वती भसते". मुझे इतना तो पता था की अच्छे स्तर पे आयोजन किया जाता है, लेकिन
ऐसे स्तर पे होगा, ये नहीं सोचा था। प्रतिमा विसर्जन से पहले झांकी निकाली जायेगी ऐसा निर्णय लिया गया, ये झांकी विद्यालय प्रांगण से निकल के गाँव के आस-पास
के इलाके से गुजरते हुए गाँव के ही पोखर में विसर्जित कर दी जायेगी। तो इस काफिले या झांकी के लिए 6 ट्रेक्टर मंगवाए गए थे। जिसमें विद्यालय के झांकी में
सम्मिलित होने के इक्छुक विद्यार्थी जा सकते हैं। सबसे पहले शुरू के दो ट्रेक्टर को बच्चों से भरा गया। तीसरे ट्रेक्टर पे माँ की मूर्ति को रखा गया। मूर्ति का मुख
ट्रैक्टर के गति की विपरीत दिशा में रखा गया। उसी ट्रैक्टर में विद्यालय का बैनर भी लगाया गया। बड़े काले अक्षरों में लिखा गया है-
"विद्यावादिनी कोचिंग संस्थान" "गोलमा" "आपका हार्दिक अभिनन्दन करता है"
नीचे लाल अक्षर में लिखा गया है "नामांकन प्रारम्भ" "वर्ग 6 से 10" "अजीत झा - अध्यक्ष" "प्रधानाध्यापक - सोनू"।
उसके पिछले ट्रैक्टर के पिछले हिस्से में दो बड़े-बड़े स्पीकर लगाये गए हैं, स्पीकर को मोटे रस्सी से बांधा गया है. एक जनरेटर ट्रैक्टर पर रखा गया है। एम्प्लीफायर,
ac-dc कनवर्टर और तमाम ताम-झाम इसी पे रखा गया है। ड्राईवर के बगल के दोनों सीट पर दो-दो लाउडस्पीकर लगाया गया है। इस ट्रेक्टर के पीछे बने
खाली सड़क पे लोगों का डांस फ्लोर बनेगा। ज्यों ज्यों ट्रेक्टर आगे चलता जाएगा त्यों-त्यों उसके पीछे बच्चे नाचेंगे। नीचे नाचने वाले बच्चे भी तरह तरह के डरावने
मुखोटे पहने हुए है, साथ ही एक हुनमान भी है, मस्त मौला। उसके पीछले ट्रैक्टर में झांकी का मुख्य आकर्षण है। जिसमें सुग्रीव, शिव-पार्वती, नंदी, भारत माता,
एक राक्षश जिसके दोनों हाथ हिल रहे हैं ऊपर की तरफ, और परशुराम का वेश धारण किये विद्यालय के ही छात्र हैं। और अंतिम वाले ट्रैक्टर में भी छात्र और
ग्रामीण बैठे है। झांकी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है, स्पीकर पे गाना शुरू होता है, गाने की बोल कुछ ख़ास समझ नहीं आ रहे है लेकिन धमक बहुते ज्यादा है,
जिसको हम Base के नाम से भी जानते है , अरे वही जो 'बेबी' को भी पसंद है।
झांकी ज्यों ज्यों आगे बढ़ रही है, साथ में उसके भीड़ भी बढ़ती जा रही है। कुछ लोग अपने घर से बाहर आ कर झांकी को
देख रहे हैं, और कुछ अपने घर के छत से ही खड़े-खड़े माँ की प्रतिमा को देख के अपना शीश झुका कर और दोनों हाथों को जोड़ कर प्रणाम कर रहे हैं।
वो भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। स्पीकर से बजने वाले गाने में धमक यानी base इतना ज्यादा है की आस पास बंधे जानवर व्यथित नज़र आ रहे हैं।
अपने ही जगह पे उछल रहे है, लेकिन गले में उनके बंधी रस्सी उनको कहीं भागने नहीं देती। एक ये बिना बोली वाला जानवर है और एक गाँव के वृद्ध ही होंगे
जिनको इस धमक से परेशानी हो रही है, बांकी लोग भक्ति में ही डूबे नज़र आ रहे हैं। काफिला अब गाँव के मध्य में स्थित "भगवती स्थान" के पास पहुँचता है.
वहां भी बगल में टेंट लगा हुआ है. संभवतः वहां भी मूर्ति कि स्थापना हुई हो. लेकिन अभी वहां शांति है. स्पीकर वाले ट्रेक्टर के बगल में चल रहे कुछ लड़के अपने-अपने मोबाइल
ले के आ रहे हैं। जिसके मैं ज्यादा धमाकेदार गाना होगा। उसका ही ई स्पीकर में बजेगा। उसी वाले ट्रेक्टर में धीरे-धीरे भीड़ बढ़ रही है। आ उ डी.जे बला मालिक छौड़ा
(लड़के) सबको स्पीकर पे नहीं बैठने की सलाह देता है। मोबाइल का तार या जैक कभी कभार ढीला या छूट जाने पर गाना बंद हो जाता है और पीछे दर्शक/श्रोता/भक्त
शोर मचा देते हैं। और धीरे-धीरे इधर काफिला गाँव के मुख्य चौक पर जा पहुंचा है। आस पास के लोग अपने बाइक के इंजन को बंद और साइकिल में ब्रेक लगा कर झांकी को
देखते हैं। इधर परशुराम बना पात्र अपना अस्त्र ( परसा ) ले कर हवा में लहर के धरती को छत्रिय विहीन करने की बात कहता है। और इधर भारत माता की
भाव -भंगिमा बिलकुल शांत है।माथे पे मुकुट और एक चोला पहने हुई है| उनके पीछे देश का झंडा उठाये दो लड़की बैठी है। बीच बीच में माइक से "सरस्वती विद्या वादिनी
कोचिंग सेण्टर आपका हार्दिक स्वागत करती है" का घोष किया जाता है। "मुझसे शादी करोगी" का भोजपुरी वर्जन चलने पर सब पब्लिक बबला जाते हैं। आ और धमक से
नाचने लगते है। झांकी अब इंद्रानन चचा के दूकान तक पहुँचती है। चचा बहार आये और निहार के अंदर वापस चले गए, शाम की तैयारी करने।
झांकी सब एक तरफ और अपन धंधा एक तरफ। सबसे मौज में हनुमान बना पात्र है। किसी को भी अपने गदा से घींच के रख देता है।लाल जैकेट, लाल गदा, सुनहरा मुकुट
और पीछे एक पूँछ के कारण वो छोटे बच्चों में ज्यादा लोकप्रिय है. कोई भी उसके पूँछ को पकड़ के झकझोर देता है. और वो खिसिया के उसके पीछे भागने लगता है.
और अपने गदा से ही दो- तीन रख के दे देता है. शिव जी और पार्वती साथ में ही बैठे है। हालांकि दोनों पात्र लड़के ही है, लेकिन पार्वती को देख आप दोबारा सोचने पर मजबूर हो जाएंगे,
काहे की मेकअप का अच्छा परिणाम सामने आया है। शिव जी की सवारी नंदी बैल भी बगले बैठा है। सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद धोती और कुछ तीन चार माला भी लटकाए हुए है, जिसके
दुसरे छोर पे घंटी लगी हुई है. चेहरे पे गाय का नकाबलगाये हुए है. कभी-कभी अपना मुड़ी भी हिला लेता है।
काफिला अब गाँव के सबसे बड़े रिटेल की दूकान परमानन्द के दूकान के पास पहुँच चूका है। "नमो नमस्ते - सरस्वती भस्ते" की घोष होती है।
माँ की प्रतिमा को लगातार अगरबत्ती दिखलाया हां रहा है। सुग्रीव बना बंदा जब अपने सर के साथ अपना जबड़ा हिलाता है तो एक अलगे चमक
दर्शक के चहरे पे आ जाती है। काहे कि उसका ऐसा करना बिल्कुल वास्तविक लगता है। जैकेट को उल्टा पहना गया है सुग्रीव के द्वारा।
दोनों हाथ में काला ग्लव्स पहने हुए है, बड़े बड़े नाख़ून वाले। जिससे उसकी काया और वास्तविक लगती है। कभी कभी वो अपने
हाथों में रखे फोम को हवा में स्प्रे कर देता है. साथ में चल रहे बच्चा पार्टी उसको लपकने के पीछे भागते हैं, लेकिन किसी के हाथ में कुछ ख़ास आता नहीं.
साथ में एक राक्षस है Ray Bon का चस्मा धराये हुए है, अपने दोनों हाथ की जगह उसने नार (धान का बचा हुआ हिस्सा) ऊपर की तरफ मोड़ कर लगाया हुआ है,
जब वो हिलता है तो उसके हाथ को हिलता हुआ देख लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाते। शिव जी की जटाएं लाल हैं, काली नहीं। गले में
सांप लटकाये हुए है, जी नकली ही सही, बाघ कि छाल पहनी गयी है उनके द्वारा। झांकी अब पंचायत भवन से आगे मिडिल स्कूल के पास जा पहुंची है,
आगे नया खुला "आदित्य बजरंग हेल्थ क्लब" दिखता है, जिसमें जॉन अब्राहम को टी-शर्ट और सलमान खान के सिक्स पैक्स एब्स को दिखा कर लिखा गया
है की "16 साल की उम्र के लड़को को ज़िम सिखाया जाता है"। हाथों में कमंडल और परसा लिए परशुराम बना पात्र थोड़ा व्यथित नज़र आ रहा है,
शायद बढ़ती धूप इसकी वजह हो या उसको शिव-पार्वती तथा भारत माता की तरह बैठे रहने का किरदार नहीं मिला है। यहाँ के मिडिल स्कूल में भी झालर लगे हुए हैं। संभवतः यहाँ भी
मनायी गयी हो सरस्वती पूजा। लेकिन ई झांकी गाँव में हुए सभी आयोजन को फ़ैल कर दिया है। एहमे कउनो संदेह नहीं है। अब काफिला सरसों के हरे-पीले
खेत के बीच बने पक्के रोड पे आ पहुंची है। अगला पड़ाव पिपरा है। और अब परशुराम भी बैठ गए है। अंदाजा सही निकला मेरा। थक गए होंगे जनाब।
ये कौन सा सचमुच पृथ्वी को छत्रिय विहीन करने वाले है। हैं तो आखिर ये बच्चा ही, भले ही चोला परशुराम का पहना हो। और ऊपर से भगवान (सूर्य) भी
पूरे चार दिन बाद खिल के निकले हैं, पूरे जोश में, पूरे शबाब में। अभी नए शुरू हुए भोजपुरी गाने की शुरुवात "कौन कहता है बूढ़े इश्क़ नहीं करते" वाले जोक से शुरूवात हुई है
और इधर काफिला में साथ चल रहे अधेड़ झेंप जाते है। भारत माता के बगल में बाघ के मुखोटा पहने हुए एक पात्र बैठा है। गुर्राने की नकल करता है वो। इसके साथ
ही "गोलमा हमर घर छे ते कुन बात के डर छै" गाना चलते ही साथ काफिला में नया जोश आ जाता है। काहे की ये गाना अपने ही गाँव पे
बनाया गया है। आ ई बीच में एक सिंघ बला छोटका राक्षस साउंड सिस्टम बला गाडी पे बैठ गया है। इस बीच साउंड वाला ट्रेक्टर के पीछे
नाच रहे काफिले में एक लड़की आ चुकी है। चहेरे पे ढ़ेर सारा मेक अप, नकली बाल, और उसके ऊपर गजरा लगाये हुए, दाहिने हाथ में
अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में AKHILESH गुदा हुआ है, आप देखते ही पहचान जाएंगे की वो भी नकली है। हालांकि इसको निमंत्रण
नहीं दिया गया था। ब्लाऊज़ में आलपिन लगाये हुई है, और उसमें चार दस रुपये के नोट लगा के आई है, और उसके आने के साथ
ही अभी तक साथ चल रहे लड़के भी डांस फ्लोर पे आ जाते हैं। जो की सड़क ही है। परशुराम ने अब धूप का चस्मा लगा लिया है।
कपाड़ पे सफ़ेद जूड़ा और आँखों में काला चश्मा, अजीब, लेकिन मजेदार संगम है ये। मॉडर्न परशुराम! रास्ते में अब लोग बाल्टी
लेकर काफिले में चल रहे लोगों को पानी ऑफर करने लगे हैं। कुछ जात पात के चक्कर में आ कर उनको मना कर दे रहे हैं, और
कुछ जो कि वास्तव में प्यासे है, उनको पीते हैं। बांकी वो बचा हुआ झूठ मूठ का प्यासा बंदा रास्ते में पड़ने वाले चापाकल की राह ताकता है, कि जब वो
उसको आगे कहीं चापाकल मिलेगा, वो काफिले से निकल के अपने पानी मिलेगा। इससे उसकी प्यास भी मिट जायेगी और उसका
धर्म भी बच जाएगा। काहे की उ औरत का पानी उनकी उंच जात में नहीं चलता है। सच ही कहा है कि प्यासा कभी भी पानी पिलाने
वाले हांथों को नहीं देखता है, और यदि वो देखता है, मतलब की वो प्यास नहीं है। काफिला अब वापस गांव की तरफ मुड़ गया है।
काफिले के रास्ते में पड़ने वाले बांकी सारे कोचिंग सेंटर में शान्ति छायी है। क्योंकि ऐसा तो शायद ही किसी ही ने इंतेज़ामात किया हो।
लोग याद रखेंगे इसको। इस कोचिंग सेंटर के खुलने के बाद बांकी सारों का बिज़नेस चौपट हो गया है। काफिले में चल रहे कुछ लोगों
के पास अबीर या गुलाल का पैकेट है, वो आते जाते सभी लोगों को उनकी अनुमति के बाद टीका लगा देता है, और अपने परिचितों
को तो बेझिझक गालों पर भी मल देता है।
अब काफिला वापस भभन टोली से होते हुए भगवत्ती स्थान पहुँचता है, फिर लत्तीपुर की तरफ बढ़ जाता है,
ये इसका आखिरी पड़ाव होने वाला है। रास्ते में और भी झाँकियाँ मिलती है जो विपरीत दिशा से आ रही होती है।
लेकिन इत्ती बड़ी लोगों की तादात तो उनके पास भी नहीं। भीड़ इतनी ज्यादा हो जाती है की यातायात व्यवस्था
अल्पकाल के लिए चरमरा जाती है। प्रशासन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। लत्तीपुर से मुड़ते वक़्त गाँव का ही
एक "भुज्जा वाला" अपना ठेला वहां लगा लेता है, और जिनके जेब में पैसे है वे भूखे लोग उसके पास दौड़ते है, उसका भुज्जा खाने।
बढ़िया है, इसी बहाने उसकी भी बिक्री बढ़ी। इससे पहले तक वो शायद अपना ठेला मुख्य चौक पर ही लगाया करता था,
लेकिन आज उसने मौके का सही फायदा उठाया। अब झांकी गाँव के कृष्ण मंदिर के पास बने पोखर पर आ जाती है।
धीरे धीरे कर के सावधानी से मूर्ति को ट्रेक्टर से उतरा जाता है, उतारने के बाद उसको एक चक्कर घुमाया जाता है.
फिर कुछ चुनिंदा लोग उसको तालाब में ले जाते है, तालाब के लगभग बीच में पहुँच के उसको फिर एक बार गोल घुमाया जाता है,
और मूर्ति को मुंह के बल पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। फिर उसको डुबाने के लिए बच्चे अपने शरीर का वजन उस पर डाल देते हैं।
आस पास खड़े लोग एक बार फिर से "सरस्वती महारानी की जय" का उदघोष करते है, अपने दोनों हाथों को जोड़कर, श्रद्धा में अपना शीश झुका लेते हैं।
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परशुराम और नंदी साथ में |
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सुग्रीव और अन्य राक्षस |
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झांकी के पात्र |
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प्रांगन में लहरा रही पताकाएं और झालरें |
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पूजा के दौरान |
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चरणों में समर्पित पुस्तकें |
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कोचिंग सन्स्थान का बैनर |
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विसर्जन को जाती माँ कि प्रतिमा |
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भगवती स्थान के पास पहुंची झांकी |
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साथ में चल रहे लोगों कि भीड़ और मैं :D |
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