रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Tuesday, 27 September 2016

कॉलेज का वो आखरी दिन

23 May 2015
तो अब फाइनली वो दिन आ गया था, जिसका इंतज़ार हम सब ने कॉलेज के अपने पहले दिन से किया था.
ये सोचते रहते थे, कि कैसे बीतेंगे ये आने वाले 3 साल..? घर से बाहर..!! इत्ती दूर!
और फिर वो आखरी दिन भी आ गया था. मुझे आज ध्यान भी नहीं है, कि उस आखिरी दिन, किस सब्जेक्ट का
एग्जाम था. अमूमन हम एग्जाम के बाद एक दुसरे से पूछते - "कैसा गया तेरा पेपर..?''
पर उस दिन की बात अलग थी. हम लोग एग्जाम के खत्म होने की ख़ुशी को पूरी तरह एन्जॉय नहीं कर रहे थे.
जैसे पिछले सभी सेमेस्टर के एग्जाम के ख़त्म होने के बाद हमारे आँखों में ख़ुशी, और चेहरे पर एक सुकून तैरता
रहता था, और प्रभाकर को अपने घर (कानपुर) भागने कि चिंता सताया करती थी. वैसा कुछ नहीं था इस बार.
 हाँ, ये प्रभाकर वाली बात सारे सेमेस्टर में होती थी.! :D एग्जाम ख़त्म हुए नहीं कि इन जनाब कि नज़रें कॉलेज कि गेट
पर टिक जाया करती थी. पर जैसा की बताया मैंने, इस बार बात अलग थी. तो वो भी उस दिन देर तक रुका था.
  एग्जाम के शुरू होने से पहले हम दोस्त लोग प्लान बनाया करते थे, कि कहीं घूमने चलेंगे.. दिल्ली का कोई नया
इलाका एक्सप्लोर करेंगे. ये सिलसिला शायद तीसरे सेमेस्टर से चलता आ रहा था, यानि  तबसे, जबसे हमारी यारों कि गैंग बनी.
तो उस दिन भी हम लोग कॉलेज की कैंटीन में बैठे थे. बातें चल रही थी. हंसी- मजाक और ठहाके लगाये जा रहे थे.
मेरा मूड था तुगलकाबाद  फोर्ट या वो साकेत का गार्डन ऑफ़ फाइव सेंसेस घूमा जाए. और अंकित इधर अक्षरधाम घूमने
कि रट लगा रहा था. गर्मी भी काफी थी उस दिन. सबने अपने अपने विचार रखना शुरू किया. शिखा ने अपने पहले ही कदम पीछे कर लिए.
'मैं नी जा पाऊँगी यार, आई एम् सॉरी..'
इधर रिया मूवी के लिए कह रही थी. उन दिनों Piku रिलीज़ हुई थी. उसका आईडिया भी बुरा नहीं था. फिर लास्ट में अक्षरधाम जाने
का प्लान बना. इस बार भी अंकित कि ही चली. कमबख्त!!  तो, वो मेरा दूसरा टूर होने वाला था अक्षरधाम का. पहली बार जब गया था,
तब भी अंकित साथ था.  और वो प्लान भी अचानक से बना था.
Back In Time-
 हमारा शायद उस दिन भी कोई एग्जाम ख़त्म हुआ था. देट वाज सैटरडे. आई कैंट रिकॉल द एक्जेक्ट डेट. तो उस दिन अंकित मेरे
रूम पे आने वाला था. हम साथ में बस में बैठे थे, नहीं एक्चुअली खड़े थे. मेरे घर के स्टॉप से पांच स्टॉप पहले मुझे अचानक से एक ख्याल आया.
''यार! अक्षरधाम चलें..?''
 (सोच रहा होगा, इसे क्या हो गया होगा..?)
''तू नी गया है क्या कभी..?", उसने पूछा.
''ना.. ,काफी सुना है मैंने, उसके बारे में.. इतना अच्छा है क्या..?''
''और क्या...!!'', उसने कहा.
''चलें.. बता..??''
''हाँ, चलते हैं..''
"कोई दिक्कत तो नहीं..'', मैंने पूछा!!
"ओ..!! दिक्कत काहे की..."
इट इज वन ऑफ़ द आल्सो रीजन, आई लव दिस गाए! कभी कोई लोड ही नहीं लेता है ये बंदा.
मैंने रास्ते में उसको बताया कि, मुझे इसके वाटर / फाउंटेन शो के बारे में किसी ने बताया है कि,
''अगर! तूने ये देख लिया, तो तुझे लगेगा कि, तूने कुछ अच्छा देखा है लाइफ में''.
हम वहां पहुंचे, हमने घूमा. लेकिन पता चला वहां पहुँचने के बाद कि अभी वो फाउंटेन शो नहीं चलता.
उन दिनों उसमें कंस्ट्रक्शन चल रहा था. तो मैं वो शो ही नहीं देख पाया था. अंकित पहले से ही देख चुका था.
दिल्ली में रहता है बंदा, इतना तो कर ही सकता है. वैसे भी, उसको भी घूमना पसंद है, मेरी तरह.
उस दिन हमने फिर डीसाइड किया - वी विल कम अगेन फॉर देट वाटर शो ओनली!
Back To That Last Day...
 तो मैंने भी हाँ कह दिया अक्षर धाम को. भई! वीटो पॉवर तो था मेरे पास! :p भले आईडिया अंकित का माना गया.
 तो हम निकले कॉलेज से. जाने के लिए शिखा को छोड़ सब तैयार हो गए थे.
तो हम सात (मैं, अंकित, विशाल,अनुराग, कुनाल, रिया और शिवानी) सत्यनिकेतन के बस स्टॉप पे पहुंचे.
हमने एक गाइड हायर किया. काफी अंकित जैसा दिखता था. फिर बाद में पता चला , ये अंकित ही था.
साणा बन रहा था बहुत.
''खाली, चिंता कर रहे हो तुम लोग, मैं हूँ ना. मैं ले जाऊँगा तुम सबको.'', चौड़ा बनते हुए बोला.
कुनाल का हमारे साथ ये शायद पहला टूर था. नहीं दूसरा. हुमायूँ टोम्ब वाज द फर्स्ट.
हुमायूं टोम्ब वाले दिन पता चला कि अंकित और कुनाल के बीच अंडरस्टैंडिंग बहुत है.
उस वाकये का ज़िक्र बाद मैं करूँगा. वैसे तुम लोगों को याद है कि नहीं, व्हाट आई ऍम टॉकिंग अबाउट..? :D
सो, तीन बस बदलने के बाद, वी वर देयर. नॉट टू फॉरगेट, उसमें से एक में रिया ने बिना टिकट यात्रा की. :D :D :D
यात्रा....!!!! :p ( नहीं, बांकी सब के पास 'बस पास' था :p )
वहां स्टॉप पे उतरने के बाद हम लोगों ने नारियल पानी पिया. इट वाज डैम हॉट डे. और पानी पीते हुए कुनाल ने अपनी
पागलपंती शुरू कर दी. मुझे शिंचैन और टॉम और जेरी के बाद, जिसने सबसे ज्यादा हँसायाहै, वो यही है. कुनाल!!
ही इज टू गुड. थैंक्स बडी, फॉर दोज स्टुपिड थिंग्स. आई लव्ड दोज.
 हाँ, फिर हम चल पड़े अक्षरधाम कि तरफ...
 मैंने अन्दर घुसते ही पता किया, कि "क्या अभी वो फाउंटेन शो चल रहा है..?''
आई वाज रियली रिलीव्ड आफ्टर लिसनिंग- "uh-huh"
हमने वहां कुछ देर बाहर इंतज़ार किया. उनके कैफ़े-टेरिया के पास. जिनको नहीं पता
मैं उनको बता दूं, कि मंदिर के अन्दर कुछ भी एलॉ नहीं है, सेल फ़ोन तो दूर कि बात, इवन पर्स भी नहीं.
मीन व्हाईल अंकित हमारे बैग एंड आल बेलोंगिंग्स को जमा कर आया. देन वी वर इन द क्यू. चेकिंग हो जाने के
बाद हम लोग अन्दर कि और बढ़े. अनुराग, रिया, शिवानी और विशाल के लिए शायद ये पहली बार था.
हमने पूरा मंदिर घूमा. प्लेस इज सो कूल, नो डाउट अबाउट देट. आई डोंट क्नो मच अबाउट आर्ट, बट आई कैन सेय देट
ये मॉडर्न आर्ट का सबसे खुबसूरत एक्जाम्प्ल है. हमने वहां शो के टिकट के बारे में पता किया. इट वाज समवेयर नियर
60-80 इंडियन रुपीज. सो इट वाज इन माय बजट. मैं अंकित के लिए श्योर था, कि ये बंदा तो पक्का आ रहा है, मेरे साथ शो के लिए.
तो हमने बंकियों से कन्फर्म किया. हु आल आर इन और इंटरेस्टेड..? शो क्यूंकि अँधेरा होने पर ही शुरू होता है. एज इट सेज इटसेल्फ
- "वाटर-लाइट-फाउंटेन शो". तो इनको (रिया, शिवानी) लेट हो जाता घर पहुँचते- पहुँचते. और इन्होंने ने ऊपर से परमिशन भी नहीं
ली थी अपने घर वालों से. तो इनका तो कैंसल हो गया. बांकी बचे ये दो लौंडे - अनुराग और विशाल. विशाल सेड- ''मैं नी रुक रहा, रात तक.''
तो क्यूँकि विशाल ने मना कर दिया, अनुराग डिनाइड टू. क्यूंकि उनको ऑलमोस्ट एक ही तरफ जाना था घर को. तो उनको कंपनी मिल जाती एक-दुसरे की.
कुनाल भी पहले बोला- मेरा टिकट भी रहने दे, शो के लिए. इसका मतलब बस मैं और अंकित ही बचे थे. हम दोनों अकेले भी शो देख लेते.
लेकिन कुनाल भी बाद मान गया. जैसा कि अंकित और कुनाल को एक ही तरफ ( फरीदाबाद) जाना था. एंड देट वाज डैम फार फ्रॉम देयर.
तो अंकित का साथ नहीं आता देख, फाइनली कुनाल को हाँ कहना पड़ा. :D देट वाज फन अंकित. इफ यू स्टिल रेमेम्बेर..
सो, हमने तीन टिकट ले लिया. मैं, अंकित और कुनाल. काफी टाइम बचा था, शो शुरू होने में. सो, हम सात ने वहीँ के कैंटीन जाने का डिसाइड किया.
फर्स्ट थिंग केम अप टू मी, आफ्टर रीडिंग देयर मेन्यू. ''ड्यूड इट्स प्रीटी एक्सपेंसिव"
"हाँ, वो तो है..", अंकित सेड.
 वी आर्डरड समोसा अलोंग विथ ए कोल्डड्रिंक. (या बर्गर आर्डर किया था बे..??)
( मुझे ठीक से याद नहीं, करेक्ट मी, इफ आई ऍम रॉंग, अंकित.)
 खाते -खाते ही शिवानी ने रोना शुरू कर दिया. पहले तो धीरे-धीरे ही शुरू हुई. फिर उसके आंसुओं कि रफ़्तार बढ़ी धीरे-धीरे.
हम सब शॉक थे, "भई! क्या हो गया इसको..'', सबके चेहरे पर यही सवाल था.
"क्या हुआ शिवानी, किसी ने कुछ कहा क्या...?", मैंने पूछा.
अंकित पहले ही समझ गया, व्हाट कुड बी पॉसिबल रीजन..!! देख अंकित! मैं कहा करता था न, तू हम सब में सबसे ज्यादा समझदार है.
ये हम सबसे अलग होने का दर्द था. जो उसके आंसुओं में छलक आया. अंकित वाज हर बेस्ट फ्रेंड. और इन पिछले एक साल में हमारी दोस्ती
भी बहुत अच्छी हो गयी थी. इधर बांकी लोग, उसको रोता हुआ देख कर, हम साथ वालों को अजीब नज़रों से देख रहे थे.
और इधर रिया की आँखें भी भर आई, उसको चुप कराते-कराते. वो भी समझ गयी. और इधर हम चार लड़के ये कह के चुप करा रहे थे-
"क्या यार! इसमें रोने वाली क्या बात है..??, चुप हो जाओ दोनों."
"रिया-शिवानी!! सब देख रहे हैं, चुप हो जा.."
बीच बीच में कुनाल के सुनाये जा रहे जोक्स  पर दोनों हंस भी देते. ये प्लान काम होता देख, फिर मैंने और अंकित दोनों ने, उन दोनों
को हँसाना शुरू कर दिया. वी फिनिश्ड आवर कोर्स. हम बाहर निकले, कैफ़े-टेरिया से.
और अब रुख्सत का पल आ गया था. एंड दे वेयर स्टिल क्रयिंग. आई नेवर थॉट, दे विल क्राई फॉर अस.
देट वैरी मोमेंट वाज रियली मैजिकल. एवरीथिंग स्टार्टेड मेकिंग सेन्स. आई स्टार्टेड हैविंग फ़्लैश बेक. हाउ आई मीट दोज टू सिल्ली गर्ल- शिवानी एंड रिया.
कैसे मैंने उसको अच्छे- बुरे कि पहचान करायी. :D द डे व्हेन वी (मी एंड शिवानी) एक्सचेंज्ड आवर कांटेक्ट नंबर, कॉज शी नीडेड सम वन टू फिनिश
हर लंच. :D देट वाज रियल स्वीट शिवानी. द डे व्हेन आई नेम्ड हर 'साणी', आफ्टर ट्रिकिंग मी, आफ्टर द लैब. द वे शी यूज्ड टू सीट ऑन द डेस्क इन क्लास
, द वे शी यूज्ड टू सीट इन डी.टी.सी. विथ हर फ्रेंड शिखा. द वे व्हेन शी यूज्ड टू कौट मी रेड हेनडेड व्हाईल, आई यूज्ड टू चेक आउट अनदर गर्ल्स.
एंड राईट आफ्टर देट, देट वैरी 'लाफ' वी यूज्ड टू शेयर'. द वे शी यूज्ड विंक मी.. पागल!!
 द मोमेंट व्हेन वी (मी & रिया) हेड आवर फर्स्ट इंटरेक्शन, ऑन द रूफ ऑफ़ जी.सी.आर, द मोमेंट



व्हेन आई
केम टू क्नो, देट शी इज फ्रॉम बिहार. छपरा गर्ल!! :D आल द जोक्स क्रेक्ड ऑन हर. बेस्ट थिंग वाज , उसने कभी बुरा नहीं मना. ऑल दोज
टाइम वी स्पेंट टूगेदर, हर टर्न इन ट्रुथ एंड डेयर गेम, जब उसने पागलों कि तरह जिद्द की, कि मुझे डेयर ही चाहिए.
'' इ हमारा घर नहीं है.." :D :D
हाउ आई यूज्ड टू आंसर हर दोज वीयर्ड क्वेश्चनस, :p
"मंजेश! इसका मतलब क्या होता है, मैंने दीवारों पर लिखा देखा था..." :D :D
ऑवर चैटस इन फिजिक्स लैब्स.
( ये दोनों लड़कियां अपना प्रैक्टिकल छोड़-छाड़ के हमारे टेबल के पास बैठ जाया करती थी.. और हमारा क्वेश्चन-आंसर का सेशन शुरू हो जाता था...)
द मोमेंट व्हेन आई सॉ हर होम ऑफ़ छपरा, व्हेन आई वाज इन द रनिंग ट्रेन, व्हाईल शी वाज ओवर द फ़ोन कॉल. द स्माइल ऑन माय फेस, व्हेन आई फाइनली
फाउंड हर होम, एंड हर आंसर- "हां, हाँ, वही वाला है...."
उन दोनों (शिवानी,रिया) का ये कहना कि- ''मंजेश! वी विल मिस योर लाफ..  तेरा ठहाका.."
उन दोनों की छूटती हुई हंसी, जब वो कभी हम लड़कों की ''बोयज़ टॉक'' सुन लिया करती थी. और रिया की हंसी रुकने का नाम ही कहाँ लेती!!
इवन अंकित नेम्ड हर- ''हँसना शुरू..." :D लेकिन, अभी.... वो दोनों रही थी!!
नहीं, मुझे रोना नहीं आया. डोंट क्नो व्हाई.. मेय बी बिकॉज आई एम् मैन. मेय बी बिकॉज आई वाज टफ. ऐसा ही बनाया है हमें उस कमबख्त ऊपर वाले ने.
वी क्नो हाउ टू हाईड आवर इमोसंस्. आई वाज सैड.
"बाय मंजेश! मिलते हैं फिर...", उदास होकर शिवानी बोली. (कह के वो चुप हो गयी.)
(मैं उन ख्यालों से बाहर आया.)
आई नोडेड.
हम लोगों (अंकित, कुनाल, और मैंने) सबसे हाथ मिलाया. और सबको फाइनल वाला अलविदा कहा.
वो लोग जा रहे थे, बाहर कि ओर. हम तीन वहीँ खड़े थे.
उनको जाता देख, अंकित रो पड़ा.
(ये बात तुम चारों को पता नहीं होगी. है न..) हाँ! वो साला रोने लग गया. ही कुड नॉट हाईड हीज इमोसंस्.
इधर कुनाल उसको चिढाने लगा.
"ए...बंड है तू,... जाट्ट गुज्जर...चुप हो जा....तेरी नशें काट दूंगा.."
फिर कुछ देर बाद वो चुप हो गया. अँधेरा होने लगा था. हम अपने स्टेज कि तरफ बढ़े, जहाँ शो शुरू होने वाला था.
भीड़ लगनी शुरू हो गयी थी. लोग बैठने लगे थे, अपने-अपने जगह पर. हम तीनो ने लेफ्ट साइड कि सीट चुनी. सामने की
तो सारी भर चुकी थी. जहाँ से सबसे कूल व्यू मिलता. होता है न, कि हम जो सब चाहते है, जिंदगी में, कहाँ मिलता है..?
शो शुरू होने में टाइम बचा था. उस दिन मैंने पहली बार कुनाल के फैमिली के बारे में जाना. बहुत अच्छी कनवर्सेसन हुई,
हम तीनो के बीच. हम अपने कॉलेज के बीते 3 सालों को याद कर रहे थे. शो शुरू हुआ, कम्पलीट अँधेरा होने पर. इट वाज
अराउंड 7.25. पानी का फवारा निकला चारों तरफ से. फिर उसमें से लाइट निकली. रंग-बिरंगी लाइट.
बहुत कूल एक्सपीरियंस था. कई सारी फीलिंग्स चल रही थी मेरे जहन में, शो के दौरान. लिटिल बिट स्प्रिटूअल टू.
अंकित से बिछड़ने का गम. उस वक्त मेरीआँखों में किनारे तक आंसू आ गए थे. लेकिन नहीं रोया मैं.
बताया तो.. मेय बी बिकॉज आई एम् मैन. मेय बी बिकॉज आई वाज टफ.
शो ख़त्म हो चुका था. इट वाज ऑलमोस्ट 8. हम बाहर कि ओर निकलने लगे.
अगर आप अक्षरधाम जाएँ, तो वो शो जरुर देखिएगा. आई इंसिस्ट.
हम तीनो बस स्टॉप पर पहुंचे. मुझे नॉएडा सेक्टर 62 जाना था, और उन दोनों को फरीदाबाद साइड.
और लास्ट में मैंने और अंकित ने, कुनाल के साथ एक बार फिर मजे लिए.
वो पानी वाला किस्सा..!! याद है तुझे अंकी..?? देट वाज फन.
जाते -जाते हमने हाथ मिलाया.
आई सेड- आई विल मिस यू ड्यूड!
एंड आई ऍम, ट्रस्ट मी.
#MJ_की_कीपैड_से

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