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हालांकि तस्वीर कॉलेज के तीसरे सेमेस्टर की है, मैं और मनीष गुरूद्वारा बांग्ला साहिब, दिल्ली की सीढ़ी पर बैठे हुए... |
31 जुलाई 2012 (मंगलवार) तक मैं अपने नए रूम में मनीष के साथ शिफ्ट हो चुका था. अगले दिन 1 अगस्त हमने (मैंने और मनीष ने)
डी.टी.सी. बस पास बनाने का प्लान किया. जिसके कारण हमें सुबह ही उठना पड़ा. जिनको नहीं पता बस पास के बारे में
उनको बता देता हूँ कि, ये जो बस पास होते हैं न इसकी वजह से आप दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन कि किसी भी नॉन-ऐ.सी
बस में आप फ्री में ट्रेवल कर सकते हैं. बस आपके पास ट्रेवल करते वक़्त बस पास होना जरुरी है. ये कुछ टाइम लिमिट के
लिए ही वैलिड होते हैं, लाइक एक-दो-तीन या मैक्सिमम पांच महीने, स्टूडेंट आई.डी पर मिल जाता है. मक्सिमम 15 रु का टिकट
होता था तब नॉन-ऐ.सी बस का. यानि अगर आपको एक महीने का पास बनाना हो तब आपको 115रु, दो महीने के 215रु,
सेम वाईज पांच महीने के 515रु खर्च करने होंगे. तो बसिकैली काफी सस्ता पड़ जाता है. और क्यूँकि ये सस्ता पड़ता है
तो पास बनवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं होता है. हमारा भी ये फर्स्ट टाइम था, तो हम इस सबसे अनजान थे. करीब
7.30 बजे हम पहुंचे. वहां पहुँच के दोनों साथ बोल पड़े- ओह! बाईसाब!!! गन्दी वाली भीड़ थी. बहुत गन्दी वाली. हर दिन वो
200-200 पास लड़के-लड़की के बनाने का टार्गेट ले कर चलते हैं. हर सुबह नंबर बंटते हैं. तो उस दिन के 200 नंबर बंट चुके थे.
तो अब हमारा पास बनने का कोई सवाल ही नहीं था, अन्लेस हमारा कोई जुगाड़ हो. तो इसीलिए हम कॉलेज वापस लौट आये.
रक्षा बंधन 2 अगस्त को आने वाला था. हम दोनों का ही ये पहला रक्षा बंधन होने वाला था, जब हम अपने घर से
दूर थे. तो उस दिन जब बस पास नहीं बना तो हम दोनों ने घर लौटते वक़्त प्राइवेट बस से जाने का प्लान बनाया. उसमें सीट मिल जाया
करती थी बैठने को, किराया भी उतना ही डी.टी.सी. जितना. हम दोनों धौलाकुआँ के रेड लाइट के आगे बस में बैठे थे. हाँ, वो हाल्ट
हुआ करता था , प्राइवेट बस वालों का.
"यार! तेरा भी ये पहली बार होगा न जब तू घर से दूर है रक्षा बंधन में..?", मनीष ने उदास हो कर पूछा.
"हम्म..", मैं बस खामोश रहा.
"खटीमा चलें...?? दोनों...??", कुछ सोच कर, थोड़ा रुक कर, उसने बोला.
"नहीं यार!!, पा मना करेंगे..", मैंने कहा.
"एक बार पूछ तो सही.. यार रक्षा बंधन में अकेले कैसे रहेंगे..घर से दूर..", वो बोला.
"नहीं, यार! रहने दे! पा नहीं आने देंगे.. वैसे भी, अभी तो आयें हैं खटीमा से..", मैंने कहा.
"फ़ोन कर उनको, मैं बात करता हूँ", बड़े कॉन्फिडेंस में आ कर बोला, जैसे वो पा को कन्विंस कर ही लेता.
बस अब भी वहीँ खड़ी थी. और सवारी का इंतज़ार कर रही थी..
बीच बीच में कंडक्टर आर.आर.लाइन., किर्बी पैलेस, दिल्ली कैंट, डी. ब्लाक, लाजवंती, सागरपुर, जनक सिनेमा, उत्तम नगर के आवाज़ लगा देता.
मैंने झिझकते हुए पा को फ़ोन मिलाया. रिंग जा रही थी. साथ में मेरी धड़कनें भी बढती जा रही थी.
यही सोच रहा था, क्या कहूँगा, कैसे कहूँगा, मेरी बात समझेंगे की नहीं..कि तभी..
'हाँ... हेलो..??' , उधर से आवाज़ आई.
'पा.. नमस्ते..!! कैसे हें आप..?'
'हम्म.. ठीक हूँ, तुम कैसे हो..?'
' हाँ, मैं भी अच्छा हूँ. पा...', मैं अपनी बात कहने वाला था.
'पा.. मनीष, राखी में खटीमा जा रहा है, मैं भी साथ आ जाऊं..?'
थोड़ी देर की ख़ामोशी रही.
'नीकू, अभी तो तुम गए हो. 10 दिन भी नहीं हुए हैं.. तुम आओगे.. उतना समय तो बर्बाद होगा ही,पढाई का हर्जाना भी होगा, पैसा भी बर्बाद होगा'
उन्होंने कंटिन्यू रखा... मैं इधर उनकी बात को बस ख़ामोशी से सुन रहा था..
'वो जा रहा उसे जाने दो.. तुम अपना ध्यान बस पढाई पे लगाओ..'
( इधर साथ में बैठा मनीष मुझको बार-बार इशारे कर रहा था, ला मुझे दे, मैं बात करता हूँ.)
'पा, ये मनीष बात करना चाहता है..' और मैंने भी उसको थमा दिया फ़ोन..
'हेलो, नमस्ते अंकल..!!', वो बोला.
'अंकल, मैं राखी में खटीमा जा रहा हूँ, मंजेश और मैं दोनों आ जायेंगे.!'
' #दोनों_भाई, साथ में ही आराम से आ जायेंगे!' (ये लड़का बातें बड़ी अच्छी कर लेता है, बता दूं आपको)
थोड़ी देर वो खामोश रहा.. फिर बोला..
'नहीं, अंकल आप सही कह रहें हैं, ऐसी बात नहीं है..' (ये उन दिनों ये इसका तकिया कलाम बन गया था, बताया न, बातें अच्छी कर लेता था..)
मैं इधर इसके लास्ट वाले पंच को सुन कर मुस्कुरा रहा था. और उसका चेहरा धीरे- धीरे मुरझा रहा था.
मैं समझ रहा था क्या चल रहा होगा.. फिर कुछ देर बाद बोला..
'ठीक है, अंकल', उसने कह के कॉल डिसकनेक्ट कर दिया.
बोला- 'भयंकर! डांट दिया तेरे पापा ने..'
' कित्ता गुस्सा हो गए, बोले- तुम्हें जाना है तो जाओ, मंजेश नहीं जाएगा'
'बोला था मैंने..!! आई क्नो हीम..' आई सेड.
'ऐसे कोई डांटता है क्या..?', वो बोला.
मैं उसपे हंस रहा था.
आई वाज थिंकिंग क्या मेरे ही घर वाले ऐसे है क्या...? शाम को 5.30 बजे हम घर पहुंचे. मुझे कॉल आता है, मेरे चाचा के वहां से.
आई रिसीवड. इट वाज माय कजिन, किशन! ही सेड "भैया! आ जाओ राखी पर यहाँ घर!" दे आर इन गाजियाबाद.
सो, अब सीन कुछ ऐसा था कि मैं वैशाली, गाजियाबाद जा रहा था, और मनीष खटीमा. मैं एक दिन में इस्तेमाल होने वाले चीज़ें रखी बैग में, और
मनीष ने अपना सामान पैक किया. हम घर से निकले, 753 नंबर की बस पकड़ी.
रास्ते में मनीष ने सोचा कि घर वालों को बता देता हूँ, कि वो खटीमा आ रहा है. हम दोनों बस में ही थे, काफी भीड़ थी.
उसने फ़ोन मिलाया. उसके पा ने रिसीव किया. और उसके बातों से समझ आ रहा था, कि खाली मेरे घर वाले ही ऐसे नहीं थे.
:D जी हाँ! तो उसको भी मना कर दिया गया था.फॉर सेम रीजन. बस उसने ये नहीं बताया कि वो घर से सामान पैक कर निकल चुका है.
उसका मुंह उतर गया. मुझसे भी ज्यादा नाराज़ हो गया था अपने घर वालों से. फिर भी उसने डीसाइड किया, ही विल कम टिल
आनंद विहार टू सी मी ऑफ. वो आनंद विहार से लौट गया और मैं उसी मेट्रो से वैशाली पहुंचा.
आई कुड सी इन हीज आईज, हाउ हेल्पलेस ही वाज फीलिंग. मैं अपने रिश्तेदारों के यहाँ जा रहा था,
और वो अपने रूम पर वापस, अकेले.!! (दो बहनों का इकलौता भाई है वो...)
"घर जा रहा हूँ, क्या ले जाऊ.. मिठाई.. चोक्लेट..क्या..??", इन्हीं सोच में पड़ा था. कि ख्याल आया कि पास के "महागुन मेट्रो मॉल" में घूम के देख
लेता हूँ, अगर कोई बीकानेर वाला या हाल्दीराम के आउटलेट दीख जायेंगे, तो वहीँ से कुछ ले लूँगा.
खाली हाथ कैसे जाता.., अच्छा नहीं लगता न..!
लेकिन वहां से भी खाली हाथ लौटना पड़ा.. कोई मिठाई कि दूकान नहीं थी वहां.
8.30 के आस पास मैं घर पहुंचा. घर दूंढने में कोई दिक्कत नहीं हुई, अब तक यही कोई 7-8 बार आ चुका था.
वहां चाचा, चाची और उनके दो बच्चे यानि मेरे चचेरे भाई-बहन मौजूद थे.
"घर का मौहोल या घर वालों का व्यवहार बता देता है कि आपके आने से कितनी ख़ुशी हुई है, उस घर के सदस्यों को"
रात के खाने में पूड़ी- सब्जी बनी थी. चाची काफी अच्छा खाना बना लेती है. काफी कुछ आता है उनको.
मैं अपने चाचा-चाची के ज्यादा करीब नहीं हूँ. इन्फेक्ट मेरे 4 भाई- बहनों में केवल बड़ी वाली दीदी ही एक ऐसी है, जिनसे उनको कुछ लगाव है.
हाँ, लेकिन पिछले साल यानि कि 2011 में जब बड़ी दीदी की शादी हुई थी, तब उस शादी में आये अपने छोटे भाई, या चेचरे भाई जो कि मुझसे
2 साल छोटा है, को जानने का अच्छा मौका मिला. हम दोनों काफी करीब थे. हम दोनों एक दुसरे से सारी बातें शेयर करते. वी वर लाइक
बडीज. तो डिनर करने के बाद मेरा बेड बाहर वाले कमरे में लगाया गया. अकेला.! एज इफ आई वाज गेस्ट.
कई बार मुझे लगता है, मुझे अपनों (सगों) से ज्यादा प्यार दूसरों से मिलता है. हेह!! अजीब है न..!! तो अगले दिन रक्षा बंधन था.
**2.अगस्त.2012
तो उस दिन 7 बजे ही नींद टूट गयी. अब इस छोटी बहन को क्या गिफ्ट दूं. इस सोच में पड़ा था.
मुझे याद आने लगा, इससे पहले जब पापा रूपए दिया करते थे खटीमा में, रक्षा बंधन में, दोनों बहनों के लिए, तो मैं उसमें एक बड़ा हिस्सा अपने पास रख लेता था.
:D काफी लड़ाई भी होती थी दोनों बहनों से इसको लेकर. लेकिन अब इसको क्या दूं. यहाँ लड़ाई करूँगा तो अच्छा नहीं लगेगा. :D
मैं फ्रेश हो कर बाहर निकल गया, कुछ दूंढने, देने लायक. मुझे लगभग सभी दुकानों में Cadboury Celebration के अलावा कुछ
दिख ही नहीं रहा था. तो अंत में मुझे भी वही लेना पड़ा.
राखी बाँधने के बाद मैंने उसको गिफ्ट किया. शायद उसको पहले से पता चल गया था, कि मैं यही देने वाला हूँ.
नाश्ते में छोले-भटूरे बने थे. चाची को पता था कि मुझे पसंद हैं, शायद मेरे लिए ही बने होंगे. अच्छे बने थे..
फिर हम तीनों भाई -बहन का मूवी देखने का प्लान बना. उन दिनों मुझे हॉलीवुड का बुखार नहीं चढ़ा था. तो मैंने उस वक़्त रिलीज हुई कोई बॉलीवुड ही सज्जेस्ट की.
लेकिन किशन को तो बस Batman: The Dark Knight Rises का भूत सवार था.
"यार मैंने इसका दूसरा पार्ट देखा ही नहीं है, खाली पहला ही देखा है, वो Batman Begins(2005) वाला.", मैंने दोनों से कहा.
"भैया, एपिक मूवी है, मैं समझा दूंगा आपको.. प्लीज भैया, यही देखते हैं..", वो मुझे कन्विंस करते हुए बोला.
मैंने शिवानी (चचेरी बहन) की और देखा, पूछा , "तेरे को भी यही देखना है...??" इस उम्मीद में कि वो मना कर दे..
उसने छोटे बच्चे की तरह जल्दी जल्दी से गर्दन हिलाया. एज इफ शी इज टू एक्साइटेड.
"चल फिर.", मैंने कहा. और क्या कहता..
"भैया, चलो , डोंट वोर्री. इट विल वर्थ योर मनी. कैट वुमेन इज टू हॉट..", किशन ने धीरे से मुझे बताया.
(मैंने बताया न, वी वर लाइक बडीज. एंड मोरओवर, ही वाज लिविंग इन NCR सिंस बर्थ. बच्चे जल्दी बड़े हो जाते हैं वहां के. अगर आपको न पता हो. )
मैं मुस्कुराया. मुझे क्या पता था ही वाज टॉकिंग अबाउट Anne Hathaway. हाँ, अब कह सकता हूँ, शी इज फायर. लाइक सुपर हॉट.
"ठीईईइक" लगी मूवी, एक्शन सीन्स काफी सही थे.
( मेरी इस बात से तो आप समझ ही गए होंगे कि मुझे पूरी मूवी समझ नहीं आई... :D आई एम् बीइंग ऑनेस्ट :p )
जो लोग नए -नए हॉलीवुड देखना स्टार्ट करते हैं, वो इन्हीं सब चीज़ से मतलब रखते हैं. :D एक्शन्स, cars,लड़की..वैगरह वैगरह :D
घर पहुँचने पर कुछ देर बाद मनीष का फोन आता है, जो अभी रूम पर अकेला था. बोला-
"कितनी देर में आ रहा है भाई, बोर हो रहा हूँ यहाँ अकेले अकेले.."
"अब तो दीवारों ने भी अपने कान बंद कर लिए है, मेरी बात सुनते सुनते.."
मैं इधर हँस रहा था.
"रुक जा.. निकल रहा हूँ बस थोड़ी देर में..", मैंने उससे कहा.
दिल्ली में सिम के नए कनेक्शन के लिए मैं चाचा की आई.डी. को ज़ेरॉक्स करवा कर, कुछ देर बाद मैं वहां से निकल पड़ा..
अपने स्टॉप पर पहुँच कर मैंने कलाकंद मिठाई ट्राय की. आई हेड नेवर बिफोर. इसी बार पता चला कि चाचा का ये फेवरेट है.
नया सिम खरीदते हुए और मनीष के लिए appy fizz लेने के बाद मैं रूम पर पहुंचा. इट वाज अराउंड 6.
मुझे और मेरे हाथों में appy fizz कि बोटल देख वो खुश हो गया...
उसने बताया कैसे उसने अपना दिन काटा. उसके रिश्ते के ही "मामू" रहते थे, गली नंबर 10 में. पास में ही थी.
तो वो वहीँ जा कर बैठा था. 12'' स्क्रीन कि टीवी देख कर कैसे उसने अपना समय बिताया.
और फिर बातें चलती रही... रात लगभग 11 बजे सोये बात करते करते...
टू बी कंटिन्यूड....
:- #MJ_की_कीपैड_से