#जब_हम_छोटे_थे
#गणतंत्र_दिवस
सुबह 4-4.30 बजे ही आँख खुल जाती थी.. तब चहकते हुए सब काम करते थे.
ब्रश करना. फ्रेश होना और नहाना भी. हाँ, बच्चों से तो ठण्ड खेला करती है.
हाँ कभी कभी तब भी गुस्सा आता था, कि इतनी सुबह बुला लिया है स्कूल वालों ने. 25 जनवरी को
घर के ही कपड़ों में स्कूल जाया करते थे, कि 26 को परेड में गंदे नहीं, साफ़ सुथरे कपड़े हो.
स्कूल में धीरे धीरे बच्चें आना शुरू करते. चूना से सड़कों को रंगा जाता, जहाँ से हमारे स्कूल कि रैली होती.
स्कूल का मैदान साफ़ -सुथरा होता. काहे कि पिछले दिन हम्ही बच्चे लोग उनको साफ किये थे.
सब बच्चों और अध्यापकों के आने के बाद, बच्चों को उनकी ऊंचाई या लम्बाई के हिसाब से बढ़ते हुए क्रम में
लगाया जाता. यानि छोटे बच्चे पहले और बाद में लम्बे बच्चे. बीच बीच में कुछ बच्चों के हाथ में स्कूल का बैनर थमाया
जाता. विद्यालय के प्रधान अध्यापक ध्वजारोहन करते. उसके बाद अपना राष्ट्रगान शुरू होता.
52 सेकंड के बाद लगभग सभी बच्चें अपनी एड़ी पे उचक के राष्ट्रगान खत्म करते.
"जय हे, जय हे, जय जय जय जय.. हे..."
"भारत माता की..." को जोर से बोला जाता. फिर उससे भी बुलंद आवाज़ में अगली आवाज़ आती.... "जय..."
इसको तीन बार दोहराया जाता.... फिर इसी क्रम में...
"गणतंत्र दिवस...." "अमर रहे..."
"महात्मा गाँधी..." "अमर रहे..."
"चाचा नेहरु..." "अमर रहे..."
"शास्त्री जी..." "अमर रहे..."
"अन्न जहाँ का..?" "हमने खाया..."
"वस्त्र जहाँ के..?" "हमने पहनें..."
"वो है प्यारा...?" "देश हमारा..."
"उसकी रक्षा कौन करेगा...?" "हम करेंगें..हम करेंगें..हम करेंगें.."
"कैसे करोगे...?" "तन से करेंगे... मन से करेंगें... धन से करेंगें.."
फिर से वही पूछा जाता... "कैसे करोगे.." फिर वही जवाब मिलता...."तन से करेंगे... मन से करेंगें... धन से करेंगें.."
फिर धीरे-धीरे रैली निकलती विद्यालय से बाहर की ओर निकलती...
फिर से वही नारे पूरे माहौल में गूंजने लगते.. सब लोग सड़क के किनारे रुक कर, खड़े हो कर हमें निहारते, मुस्कुराते.
और हम उसी धुन में उसको दोहराते जाते.
हालांकि ये बात तब की है, जब मैं छोटा था, लेकिन मुझे याद है, कि जब मैं अपने से किसी और छोटे बच्चे को खड़ा देखता सड़क पर.
तब एक अचानक से नया जोश आ जाता.. उसकी आँखों में आँखें डाल के कहता..
"जो हमसे टकराएगा..." फिर पीछे से आवाज़ आती... "चूर चूर हो जाएगा.."
और हम सभी, एक दुसरे को देख के हँसने लग जाते.
पूरे नगर में घूमते घूमते हम वापस अपने स्कूल में थक के आते. फिर मैदान या बराम्दा में चटाई या दरी बिछाई जाती.
बच्चे कक्षा के अनुसार से बैठते. फिर सांस्कृत कार्यक्रम होते.
सरस्वती वंदना से शुरुवात के बाद, धीरे धीरे कार्यक्रम अपनी समाप्ति के बाद होता. सबसे उबाऊ तब स्पीच सुनना लगता.
फिर उसके बाद 26 जनवरी को स्पोर्ट्स डे के तौर पर भी मनाया जाता.
अब बच्चे सब मैदान में गोल या चारों ओर घेरा बना के बैठ जाते. कोई एक अध्यापक मंच को संचालित करता. तब भट्ट सर या वल्दिया
सर जी को ये जिम्मेदारी सौंपी जाती थी. (आपको बता दूं की, ये जो वल्दिया सर जी थे इनका खौफ बच्चों में बहुत था. गजब मार मारते थे.)
फिर धीरे धीरे 100 मी. और 200 मी. कि दौड़ के बाद, जलेबी रेस होती. मैं उसमें जरुरी प्रतिभाग करता. वजह आप समझ सकते हैं. :D
खो- खो के खेल को देखना हम सबसे ज्यादा एन्जॉय करते थे. काहे कि उसमे सीनियर बच्चों को अपना दम-खम दिखाने का मौका मिलता.
वो खूब डाईव लगाते. और इधर हम बच्चे रोमांचित हो कर तालियाँ बजाते. इन सब के बाद पुरुस्कार वितरण की बारी आती.
और फिर मेरा सबसे पसंदीदा हिस्सा. "मिष्ठान वितरण.." जी हाँ..!! शायद तब आपका भी रहा हो. बच्चे मिठाई लेते जाते और विद्यालय के मुख्य
द्वार से होते हुए अपने घर कि और बढ़ते जाते. जैसे हमें अपने कर्म का फल मिलता है, वैसा ही
कुछ होता था ये,हमारे लिए. इतना थकाऊ दिन. लगभग एक तो बज ही जाया करते थे. सुबह पौने सात के घर से निकले.
लेकिन मजेदार बात तो ये है कि, सबको एक एक डब्बा या पैकेट मिलता था., लेकिन मेरा मन कहाँ हुआ उस एक से मानने वाला.
सो, मैं दोबारा किसी भी बहाने से अन्दर घुस के ले ही लेता था. शायद आपने भी किया होगा. अब सोचता हूँ उन पलों को, तो बस चेहरे पे मुस्कान
तैर जाती है.
घर पर आने के बाद, कपड़े बदलने के बाद टीवी के सामने बैठ जाते. उस वक़्त हर 26 जनवरी पर "तिरंगा" पिक्चर आती. ज्यादातर zee cinema
पे. उसको देखे बिना जैसा मेरा 26 जनवरी अधूरा रहता. राजकुमार और नाना पाटेकर की जोड़ी सभी दुश्मनों को खात्मा करती. और फिर से,
पिछले साल कि तरह वो दोनों देश को बचा लेते. एंड हैप्पी एंडिंग..!!
#और_आज
और आज तो 7 बजे उठा. फर्क देखिये..!! मोर्निंग वाक भी मिस कर दिया. शैम्पू लाने के लिए निकला, घर से दुकान के रास्ते पे दो बच्चे साइकिल पे जाते दिखे.
पीछे बैठे बच्चे के हाथ में तिरंगा था. मुझे आता देख बोला-"भारत माता कि जय"
और मैं, बस मुस्कुरा गया..
रात में 35 लोगों को मैंने गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं भेजी. एंड लेट मी चेक...
अभी तक 10 लोगों ने मुझे भी शुभकामनाएं भेजी. और तो कुछ नहीं बदला.
अभी, चेक करता हूँ, यदि टीवी के इन सेकड़ों चैनलों में मुझे फिर से वही "तिरंगा" मिल जाए...तो देख लूँगा, फिर से देश को बचते हुए..
"गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएं"
( तीन महीने के बाद और साल का पहला पोस्ट है ये )
:- #MJ_की_कीपैड_से
#गणतंत्र_दिवस
सुबह 4-4.30 बजे ही आँख खुल जाती थी.. तब चहकते हुए सब काम करते थे.
ब्रश करना. फ्रेश होना और नहाना भी. हाँ, बच्चों से तो ठण्ड खेला करती है.
हाँ कभी कभी तब भी गुस्सा आता था, कि इतनी सुबह बुला लिया है स्कूल वालों ने. 25 जनवरी को
घर के ही कपड़ों में स्कूल जाया करते थे, कि 26 को परेड में गंदे नहीं, साफ़ सुथरे कपड़े हो.
स्कूल में धीरे धीरे बच्चें आना शुरू करते. चूना से सड़कों को रंगा जाता, जहाँ से हमारे स्कूल कि रैली होती.
स्कूल का मैदान साफ़ -सुथरा होता. काहे कि पिछले दिन हम्ही बच्चे लोग उनको साफ किये थे.
सब बच्चों और अध्यापकों के आने के बाद, बच्चों को उनकी ऊंचाई या लम्बाई के हिसाब से बढ़ते हुए क्रम में
लगाया जाता. यानि छोटे बच्चे पहले और बाद में लम्बे बच्चे. बीच बीच में कुछ बच्चों के हाथ में स्कूल का बैनर थमाया
जाता. विद्यालय के प्रधान अध्यापक ध्वजारोहन करते. उसके बाद अपना राष्ट्रगान शुरू होता.
52 सेकंड के बाद लगभग सभी बच्चें अपनी एड़ी पे उचक के राष्ट्रगान खत्म करते.
"जय हे, जय हे, जय जय जय जय.. हे..."
"भारत माता की..." को जोर से बोला जाता. फिर उससे भी बुलंद आवाज़ में अगली आवाज़ आती.... "जय..."
इसको तीन बार दोहराया जाता.... फिर इसी क्रम में...
"गणतंत्र दिवस...." "अमर रहे..."
"महात्मा गाँधी..." "अमर रहे..."
"चाचा नेहरु..." "अमर रहे..."
"शास्त्री जी..." "अमर रहे..."
"अन्न जहाँ का..?" "हमने खाया..."
"वस्त्र जहाँ के..?" "हमने पहनें..."
"वो है प्यारा...?" "देश हमारा..."
"उसकी रक्षा कौन करेगा...?" "हम करेंगें..हम करेंगें..हम करेंगें.."
"कैसे करोगे...?" "तन से करेंगे... मन से करेंगें... धन से करेंगें.."
फिर से वही पूछा जाता... "कैसे करोगे.." फिर वही जवाब मिलता...."तन से करेंगे... मन से करेंगें... धन से करेंगें.."
फिर धीरे-धीरे रैली निकलती विद्यालय से बाहर की ओर निकलती...
फिर से वही नारे पूरे माहौल में गूंजने लगते.. सब लोग सड़क के किनारे रुक कर, खड़े हो कर हमें निहारते, मुस्कुराते.
और हम उसी धुन में उसको दोहराते जाते.
हालांकि ये बात तब की है, जब मैं छोटा था, लेकिन मुझे याद है, कि जब मैं अपने से किसी और छोटे बच्चे को खड़ा देखता सड़क पर.
तब एक अचानक से नया जोश आ जाता.. उसकी आँखों में आँखें डाल के कहता..
"जो हमसे टकराएगा..." फिर पीछे से आवाज़ आती... "चूर चूर हो जाएगा.."
और हम सभी, एक दुसरे को देख के हँसने लग जाते.
पूरे नगर में घूमते घूमते हम वापस अपने स्कूल में थक के आते. फिर मैदान या बराम्दा में चटाई या दरी बिछाई जाती.
बच्चे कक्षा के अनुसार से बैठते. फिर सांस्कृत कार्यक्रम होते.
सरस्वती वंदना से शुरुवात के बाद, धीरे धीरे कार्यक्रम अपनी समाप्ति के बाद होता. सबसे उबाऊ तब स्पीच सुनना लगता.
फिर उसके बाद 26 जनवरी को स्पोर्ट्स डे के तौर पर भी मनाया जाता.
अब बच्चे सब मैदान में गोल या चारों ओर घेरा बना के बैठ जाते. कोई एक अध्यापक मंच को संचालित करता. तब भट्ट सर या वल्दिया
सर जी को ये जिम्मेदारी सौंपी जाती थी. (आपको बता दूं की, ये जो वल्दिया सर जी थे इनका खौफ बच्चों में बहुत था. गजब मार मारते थे.)
फिर धीरे धीरे 100 मी. और 200 मी. कि दौड़ के बाद, जलेबी रेस होती. मैं उसमें जरुरी प्रतिभाग करता. वजह आप समझ सकते हैं. :D
खो- खो के खेल को देखना हम सबसे ज्यादा एन्जॉय करते थे. काहे कि उसमे सीनियर बच्चों को अपना दम-खम दिखाने का मौका मिलता.
वो खूब डाईव लगाते. और इधर हम बच्चे रोमांचित हो कर तालियाँ बजाते. इन सब के बाद पुरुस्कार वितरण की बारी आती.
और फिर मेरा सबसे पसंदीदा हिस्सा. "मिष्ठान वितरण.." जी हाँ..!! शायद तब आपका भी रहा हो. बच्चे मिठाई लेते जाते और विद्यालय के मुख्य
द्वार से होते हुए अपने घर कि और बढ़ते जाते. जैसे हमें अपने कर्म का फल मिलता है, वैसा ही
कुछ होता था ये,हमारे लिए. इतना थकाऊ दिन. लगभग एक तो बज ही जाया करते थे. सुबह पौने सात के घर से निकले.
लेकिन मजेदार बात तो ये है कि, सबको एक एक डब्बा या पैकेट मिलता था., लेकिन मेरा मन कहाँ हुआ उस एक से मानने वाला.
सो, मैं दोबारा किसी भी बहाने से अन्दर घुस के ले ही लेता था. शायद आपने भी किया होगा. अब सोचता हूँ उन पलों को, तो बस चेहरे पे मुस्कान
तैर जाती है.
घर पर आने के बाद, कपड़े बदलने के बाद टीवी के सामने बैठ जाते. उस वक़्त हर 26 जनवरी पर "तिरंगा" पिक्चर आती. ज्यादातर zee cinema
पे. उसको देखे बिना जैसा मेरा 26 जनवरी अधूरा रहता. राजकुमार और नाना पाटेकर की जोड़ी सभी दुश्मनों को खात्मा करती. और फिर से,
पिछले साल कि तरह वो दोनों देश को बचा लेते. एंड हैप्पी एंडिंग..!!
#और_आज
और आज तो 7 बजे उठा. फर्क देखिये..!! मोर्निंग वाक भी मिस कर दिया. शैम्पू लाने के लिए निकला, घर से दुकान के रास्ते पे दो बच्चे साइकिल पे जाते दिखे.
पीछे बैठे बच्चे के हाथ में तिरंगा था. मुझे आता देख बोला-"भारत माता कि जय"
और मैं, बस मुस्कुरा गया..
रात में 35 लोगों को मैंने गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं भेजी. एंड लेट मी चेक...
अभी तक 10 लोगों ने मुझे भी शुभकामनाएं भेजी. और तो कुछ नहीं बदला.
अभी, चेक करता हूँ, यदि टीवी के इन सेकड़ों चैनलों में मुझे फिर से वही "तिरंगा" मिल जाए...तो देख लूँगा, फिर से देश को बचते हुए..
"गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएं"
( तीन महीने के बाद और साल का पहला पोस्ट है ये )
:- #MJ_की_कीपैड_से