रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Tuesday, 16 May 2017

नजरिया (Stop Eve Teasing)


#पिंक_द_मूवी 
"अबे, क्या सही मूवी थी यार.", पहला बोला.
"हाँ. लव्ड इट मैन!. बच्चन वाज डैम इम्प्रेस्सिव..!", दूसरा बोला.
"नो...मीन्स...नो.", पहला बोला.
"साले, ये राजवीर जैसे ही बन्दे हमारे सोसाइटी की लड़कियों को छेड़ते हैं..छे: ...", दूसरा बोला.
"हाँ, सही कह रहा है भाई.. अगर मुझे मिलता न वो... दिखा देता उसको..", पहला बोला.
" नैरो माइंड और कल्चरड पीपल ", दूसरा बोला.
रास्ते में एक पनवाड़ी की दुकान पे, दोनों रुक के सिगरेट खरीद के पीने लगते हैं...
"भाई... वो देख.. गुलाबी स्कूटी पे...", पहला बोला.
"ओह तेरी!! अबे.. क्या चीज़ है...", दूसरा बोला.
"पिंक रंग तो अपना भी पसंदीदा है, क्योँ.. सही कहा न...", तेज़ आवज़ से स्कूटी वाली को देखते हुए पहला बोला.
स्कूटी वाली की तीखी नज़रें उन पे गयी, और बास्टर्ड्स कह के आगे बढ़ गयी... 
:- #MJ_की_कीपैड_से

Friday, 12 May 2017

बाहुबली 2- क्यों न देखें? (Bahubali 2 The Conclusion (2017) Review - Reasons, not to watch it.)

#बाहुबली2
#क्यों_न_देखें
अगर आपने मूवी देख ली है, तो ये पोस्ट आपके लिए है कि आप क्या देख के आयें हैं और आपने क्या-क्या मिस किया,
और यदि आपने नहीं देखी, तो घबराईए मत, मैं ये नहीं बताने जा रहा कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यू मारा.. लेकिन आप ये पोस्ट
पढ़ के ये जान जायेंगे कि, कि देखते वक़्त आपको किस पर्टिकुलर सीन/चीज़ पे अच्छे से ध्यान देना है...
शाहरुख़ की फिल्म का जो डायलॉग है कि, "अगर किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलने की साज़िश में लग जाती है.." वही कुछ
इस वाक्ये में चरितार्थ हुई. जिसमें मैं बड़ी शिद्दत से बाहुबली को देखना चाहता है, किसी थिएटर में.. और वो पूरा हुआ..
...
8.May.2017 (8.30pm)
 मैंने अपने फिल्मी गुरु को वादा करके कॉल डिसकनेक्ट किया कि अब मैं पक्का देखने जाने वाला हूँ.
"BAAHUBALI 2.... I'm Coming!!!", ये मन्त्र मैंने 108 बार जपा.. :D
Kidding!! I'm not.. I'm not... I'm.. I'm... :D
खुद को मैं बार-बार याद दिला रहा था कि, मुझे अब तो जाना ही है. अब तो हद ही हो गयी.. सब देख के आ गए हैं.
ऐसी बेचैनी हो रही थी मुझे, मानो जैसे मेरी कोई ट्रेन छूटने वाली हो..
मैं घर आया, 'बुक माय शो' के एप्लीकेशन (जिसको निराशा में आ कर, परसों ही अनइनस्टॉल किया था) को प्ले स्टोर में जा कर दोबारा इनस्टॉल
के बटन पे क्लिक किया.  हालांकि paytm तो यूज़ कर ही रहा था, लेकिन मैंने सोचा, देख लेता हूँ किस में सौदा फायदे का हैं.
दिन के जिओ की 1 gb लिमिट को मैं पहले ही ख़त्म कर चुका था, तो स्पीड बहुत रद्दी आ रही थी. वो 20 mb की फाइल
डाउनलोड होते होते मेरे आँखों ने जवाब दे दिया. फ़ोन के स्क्रीन बार बार ऑफ हो जाती, लेकिन मैं भी उसे बार बार अनलॉक कर के चेक करता, कि
क्या पता स्पीड अब इतने ही देर में अच्छी आई हो, जिओ अपने फॉर्म में आय हो, क्या पता फाइल हो गयी हो डाउनलोड. लेकिन वो भी कमबख्त
बड़ा जिद्दी था, 20 मिनट से ज्यादा ही लग गए होंगे. एप्प के इनस्टॉल होते ही मैंने लोकेशन में रुद्रपुर डाला, वेव सिनेमाज के लिंक पे गया..
और सीट की अवेलेबलिटी चेक करने लगा. मैंने 10 तारीख का सोच रखा था, और मुझे पिछला सीट ही चाहिए था, तो ये सोच के 2 दिन के बाद वाले में
अगर चेक करूँगा तो शायद मिल जाए, फिर याद आया, कि उस दिन तो बुधवार है, और पापा का रेस्ट भी होने वाला है, बोले तो वो घर पे ही रहने वाले हैं.
तो मुश्किल होता, उनके घर पे रहते बाहर जाना. सोचा फिर मंगलवार यानि 9 का चेक कर लूं.. सुबह का ही शो में चहिये था, क्यूकि लौटते
वक़्त अगर शाम हो गयी, तो पापा को पता चल जाएगा कि ये लड़का कुछ तो खिचड़ी पका रहा है.
फिर मुझे वो पल याद आने लगा जब मैंने पापा से आखिरी बार पूछा था.., कि क्या वो जाना चाहेंगे रुद्रपुर या बरेली, ये फिल्म देखने...?
और फिर जब उन्होंने मुझे ऐसे नज़रों से देखा था, मानो कह रहे हो कि
"पागल तो नहीं हो गया है बे..."  :D
तो मैंने 11 बजे का शो चेक किया, मेरी किस्मत थी कि मुझे सीट मिल गयी, वही जो मुझे चहिये था, फिर क्या था..
मैंने अपने एक स्थानीय दोस्त से 12वीं बार पूछने के लिए फ़ोन किया...
"कि क्या अब भी वो बाहुबली को देखने के लिए  नहीं जाना चाहता है....", सोचा, शायद इस बार मान जाए..
काश हमें अपनी ज़िन्दगी में अपने, अपनों को चुनते वक़्त फ़िल्टर का विकल्प मिलता..
जैसे ऑनलाइन खरीदारी के लिए हम फ़िल्टर फीचर का यूज़ करते हैं. वैसा ही कुछ असल ज़िन्दगी में...
1. उसको मूवीज में इंटरेस्ट हो... (चेक)
2. क्रिकेट में इंटरेस्ट हो..  (चेक)
3. टेक्नोलॉजी में इंटरेस्ट हो.. (चेक)
4. आपके बातों को  समझें.. (चेक)
5. वो आपके प्रति लॉयल हो.. (चेक)
6. वो जो बिल्कुल आप जैसा हो... (चेक)
और फिर आप लास्ट में इंटर का बटन दबाते, और आपको वो सब लोग दिख जाते, जो बिल्कुल फ़िल्टर आप्शन से मिलतें हो.
तो सीन अब कुछ ऐसा था कि, अगले पल मैंने खुद को पापा के डेबिट कार्ड के साथ पाया, पापा से दूर हो के, दुसरे रूम में.. 'एक' सीट को बुक
करते हुए... मेरे paytm वोलेट के पैसे मिला के पापा के फ़ोन में 112रु डेबिट के इनफार्मेशन के साथ otp आया... फटाक से
उसको इंटर किया.. टिकट बुक हुआ... फ़ोन में आये ट्रांजेक्सन और otp के मैसेज को डिलीट किया... और चैन की सांस ली... हफ़... मत करना आप..बहुत खतरा होता है भई! :D
अब बस अगली सुबह का इंतज़ार था, जब पापा ऑफिस को निकलने वाले थे.. और मैं अपने सफर पे.. माहिस्मती साम्राज्य के सफ़र पे...
कोई बहाना नहीं दूंढ पा रहा था कि क्या कहूँगा, जब पापा पूछ लेंगे कि, "कहीं जाने का प्लान है, क्या तेरा...?"
**** #9.मई.2017
मेरी सुबह 7 बजे हुई. रात भर की बारिश के कारण आज का मोर्निंग वाक स्किप करना पड़ा. लगा जैसे आज मौसम भी ठीक-ठाक होगा.
सुबह इतनी जल्दी मुझे नहाया हुआ देख, आखिर वही हुआ जिसका मुझे  डर था...
पापा ने पूछ ही लिया.. "कहीं बाहर जाना है क्या..?"
थोड़ी देर कि ख़ामोशी के बाद मैं बोला- "हाँ, रुद्रपुर.."
"रुद्रपुर...? क्या काम है?", दूसरे तरफ से आवाज़ आई..
थोड़ी लम्बी ख़ामोशी के बाद मैं बोला... "मूवी देखने जा रहे हैं 'हम*... बाहुबली 2..."
*उनको नहीं बताना चाहता था कि मैं अकेले जा रहा हूँ.
मैं उनके ताने या कुछ कहने का इंतज़ार कर रहा था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा.. कुछ भी नहीं.. पता नहीं क्योँ...
कुछ तो कहना चाहिए था न.. कभी कभी ख़ामोशी भी चुभती है... पता नहीं क्योँ...?
"दोपहर 4-5 तक आ जाऊंगा.", बाद मैं मैंने बोला.
दूसरी तरफ से इस बार भी कुछ आवाज़ नहीं आई.  पता नहीं क्योँ...
नाश्ता करके, मैं रोडवेज पे जा पहुंचा. अपने तय रूटीन से लेट था मैं, कहाँ मुझे 8 बजे घर से ही निकलना था, और तभी मैं 8.20 तक
वहीँ बस का इंतज़ार कर रहा था..
पास में ही बोलेरो आई, शायद प्रेस की गाड़ी थी, जो अमूमन जल्दी ही पहुंचा देती है, बस के मुकाबले में..
मैंने पूछा, "कहाँ..रुद्रपुर..?"
ड्राइविंग सीट पे बैठे आदमी ने हाँ मैं अपना सर हिलाया. और मैं बीच वाली सीट पे विंडो वाली सीट पे जा बैठा.
और मैं चल पड़ा अपने सफ़र और अतीत के ख्यालों में, जब कभी मैं गाँव में हुआ करता था, और उस बीच जब कोई ढंग की पिक्चर लगा
करती थी, जिला सहरसा के हॉल में, तो घर वालों से न जाने क्या-क्या बहाने बना के निकल पड़ता था, करीब 60-70km के सफर पे (दोनों तरफ को मिला के)
 लेकिन इस बार कि बात अलग थी, करीब दुगुने से भी ज्यादा थी दूरी. 10 बज के 5 मिनट ही हुए थे और मैं रुद्रपुर के रोडवेज पे खड़ा था.
मैं हॉल तक पहुंचा. ज्यादा भीड़ नहीं थी मॉल में, उस वक़्त. टॉप फ्लोर पे था थिएटर हॉल. वहां मौजूद एस्कलेटर देख के मुझे दिल्ली की याद आ गयी.
क्यूंकि आखिरी बार जब मैं उसपे था, तब मैं दिल्ली में था.
अपना टिकट लेने के बाद, मैं वेटिंग रूम में जा बैठा. ज्यादा चहल पहल नहीं थी, हॉल के सामने में भी.
 बाहर लोग फिल्म के पोस्टर के साथ फोटो खिंचवा रहे थे, मैंने सोचा अगर मूवी अच्छी लगी तो ही फोटो लूँगा, मैं भी पोस्टर के सामने.
अपने हॉल के अन्दर गया मैं. 60% सीट खाली ही थी. वीक डेज का असर था शायद. अपनी सीट पे जा पहुंचा. अभी वक़्त था 11 बजने में कुछ.
मेरी वाली रो पूरी खाली थी लगभग. तभी परदे पे नयी फिल्मों के ट्रेलर चल रहे थे. अचानक राष्ट्रगान चलने लगा. मुझे लग रहा था कि अब इस फैसले पे रोक लग चुकी है.
फ्रंट रो की एक औरत को छोड़ के बांकी सब खड़े हो चुके थे, आधे राष्ट्रगान ख़त्म होने पे वो संकोच करते करते उठ खड़ी हुई.
और फिर हुआ, जिसका हम सबका इंतज़ार था.
 बाहुबली 2 का फ्रंट पोस्टर सामने आया. मुझे भैया ने बताया था कि गौर करना इस फिल्म में स्पोंसर कितने ज्यादे हैं. तो मैंने बाकायदा पूरा
ध्यान दिया की, 2 मिनट और कुछ सेकंड्स तक स्पोंसर का ही नाम आता रहा..
और फिर मूवी की शुरुवात हुई. मैं अपनी सीट पे थोड़ा पीछे ख़िसक के जा बैठा. आराम से...
 मूवी के शुरुवात हुई 'काल भैरव' गीत से...
जब शिवगामी देवी गंगा में डूबती है, और उसका हाथ ऊपर में ही बच्चे को पकड़े रहता है, जो कि पहले पार्ट का ही है. और इसी सीन के साथ ही
बैकग्राउंड में गाना बजता है...
"बलिदानों....आहुतियों....से जन्मी.... ये गाथा..."
उसी समय मुझे लग गया की मैं आज कुछ अनोखा अनुभव करने जा रहा हूँ.
ये बांकी किसी रिव्युज मैं इसका जिक्र, किसी ने नहीं किया था.. की वो जो पीछे से एनीमेशन में पिछले पार्ट का फ़्लैशबैक दिखाया जा रहा है, वो कमाल का है.
ध्यान दीजीयेगा, फिल्म के पहले ही सीन में ही हॉल में ताली बजने लगी.
फिर जब फिल्म में बाहुबली की पहली बार एंट्री होती है, तो वो एक लगभग असंभव सा काम करते हुए दीखता हैं. लेकिन आप उसको मान लेते हो.
उसी सीन में एक विशाल हाथी को फिल्माया गया है. जब वो स्क्रीन पे आया, तो मैं स्क्रीन के कोने पे C.G.I यानि Computerised Graphics
Image लिखे हुआ की तलाश करने लगा. कि क्या ये हाथी असलियत में था या कंप्यूटर से बनाया गया है. आप नहीं बता सकते बस उसको
देख के. इसी सीन के बाद जब बाहुबली का टाइटल ट्रैक आता है, दलेर मेहँदी की आवाज़ बहुत ही खुबसूरत लगती है. और वो सीन, जब बाहुबली अपनी राज गद्दी पे बैठता है,
उसका ढंग यानि इस्टाइल कमाल का है. इसमें साथ ही बाहुबली और कट्टप्पा के रिश्ते की नजदीकियों को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया है.
दोनों का एक एक्शन सीक्वेंस है, जिसमें वो मिलकर डाकूओं का सामना करते हैं. उनका आपसी ताल मेल लाजवाब है. देखने लायक है, प्रभास के चेहरे के हावभाव, जिसपे आप
यक़ीनन अपना दिल दे बैठेंगे. उसी सीन के पहले ही जब प्रभास देवसेना को पहली बार देखता है. और उसकी खूबसूरती का कायल हो जाता है.
आप इसमें देवसेना की असली खूबसूरती को देख पायेंगे. और तब आप भी  ये जरुर सोचेंगे कि क्या सभी 'अनुष्का' नाम की लड़कियां खूबसूरत होती है.?
जब देवसेना के अपने गृहराज्य में आक्रमण होता है, वहां भी बाहुबली की बुद्धि, या कह लें, राजामौली का डायरेक्शन लाजवाब है. इसी युद्ध के दौरान जब बाहुबली एक ही धनुष से तीन तीर
छोड़ने की कला देवसेना को सीखाता है, वो भी जजब है. उनका फिर आपस में तालमेल भी लाजवाब है.
फिल्म में राज्यअभिषेक का एक सीन आता है, जिसमें आप को प्रभास के चेहरे का हावभाव देखना चाहिए.. कमाल का है. वो गर्व और संतुष्टि का भाव, कमाल था.
इसी सीन में ही बाहुबली को ये प्रसिद्ध डायलॉग आता है..
"अमरेन्द्र बाहुबली... यानि की मैं....."
उसका ये कहना था कि उनकी प्रजा सारी बबला जाती है.
इस भाग में ज्यादा पिछली कहानी पर  ही फोकस किया गया है. बाहुबली की प्रेम कहानी, भल्ला की कूटनीति चाल. आप इनकी कहानी (फ्लैशबैक) में इतने खो जाते है
कि आप वर्तमान यानि वो जगह जहाँ से महेंद्र बाहुबली को कहानी सुनाई जाती है, वहां आप नहीं दोबारा जाना चाहते हैं, जहाँ अब देवसेना एक बूढी औरत में ढल चुकी होती है.
जब कट्टप्पा, बाहुबली को मारने वाला होता है, उसका सीन फिल्म का सबसे भावुक सीन लगा मुझे, लगभग रोने वाला ही था मैं. फिर जब कट्टपा, बाहुबली को
मार देता है, तब भी बाहुबली वो अपना स्वेएग (swag) नहीं भूलता. वो वही अपनी चिर परिचित अंदाज़ में पास में पड़े बड़े से पत्थर पे जा बैठता है, इस्टाइल से, और आपके दोनों हाथ
ताली बजाने को मजबूर हो जाते हैं. फिल्म का म्यूजिक भी लाजवाब हैं. हालांकि सभी गानों को हिंदी में अलग से लिखा गया है, लेकिन फिर भी आप बांकी साउथ कि फिल्मों
के गीतों के तरह बेतुकी और जबरदस्ती लाइन नहीं डाले गए हैं. 'कान्हा सो जा जरा' गानों के लिरिक्स बहुत ही खुबसूरत लिखें गए हैं.
इस पूरे पोस्ट को लिखते वक़्त मैंने बाहुबली के 5 गानों को रिपीट मोड पे चलाया है. अलग ही फीलिंग आ रही है, इससे..
फिल्म का दूसरे गाना का ज़िक्र किये बिना ये रिव्यु अधूरा है, गाने के बोल है - 'वीरों के वीरा', जिसको एक नाव पे फिल्माया गया है.
और वो ही, जिसमें अनुष्का शेट्ठी यानि देवसेना, बला की खूबसूरत लग रही है, और उससे सुन्दर इस गाने का सिनेमेटोग्राफीहै, जब पालकी वाली नाव के, पालकियां, पंख में बदल
जाती है, और नाव आसमान में उड़ने लग जाती है. बहुत ही लाजवाब लगा मुझे. हाँ, इसके अलावा देवसेना की हिंदी में ड्ब्ब्ड आवाज़ मुझे बहुत पसंद आयी. 'मनमोहक!'
तम्मनाह का बहुत ही छोटा रोल है इसमें. पिछले पार्ट की तरह ही इस पार्ट के युद्ध सीन को बहुत ही खूबसूरती, नये और
रचनाताम्क ढंग से फिल्माया गया है. मुझे याद नहीं की मैंने कितने सीन पे, कितनी बार ताली बजाई थी, वो तो अच्छा हुआ की मुझे जोर से सीटी बजाना नहीं आता,
नहीं तो उसपे भी मैं नहीं चूकता. लास्ट के एक्शन सीक्वेंस में आवाज़ की गडगडाहट इतनी ज्यादा हो जाती है कि आप अपने पैरों में कम्पन्न महसूस कर सकते हैं, यकीं मानिए
जो मजा को और बढ़ा देता है. इसी एक्शन सीक्वेंस में एक सीन के दौरान जब बाहुबली हवा में होता है, और उसके हाथों में तलवार होती है, और नीचे उन जमा की गयी लकड़ियों
में ( देवसेना की बनायी हुई चिता पे ) मार खा के थका हारा बैठा भल्ला जब ऊपर निहारता है, तब बाहुबली के साथ ही आसमान में एक कलाकृति उभर के आती है, वो भी लाजवाब था.
निर्देशक साहब ने फिल्म के हर एक सीन में जान फूँक दी है. फिल्म जरा भी बोर नहीं करती. क्रेज इतना हो जाता है, की आप इंटरवल में बाहर भी नहीं जाना चाहते. ये सोच के कहीं
कोई सीन न छूट जाए. ऐसा कैमरा वर्क, सिन्मेटोग्राफी और जबरदस्त VFX का प्रयोग मैंने इससे पहले किसी हॉलीवुड की फिल्मों में भी नहीं देखा है.
मेरे फिल्मी गुरु के, लोगों से पूछने पर, कि उनको कैसे लगी बाहुबली..? लोग बस 'ओ भाई साब!! क्या मूवी थी यार!... मस्त!!..' कह के चुप हो जातें.
इसीलिए वो चाहते थे, कि मैं ये जल्दी से मूवी देखूं, ताकि वो इस मूवी को विस्तार से, सीन दर सीन किसी से डिस्कस कर सकें. वो जनाब तो दूसरे दिन ही देख के आ गए थे.
मैं भी हॉल मैं लोगों को देख के ये समझ चुका था कि अधिकतर लोग बस ये जानने आये हैं कि बाहुबली क्यू मारा गया, या कहानी देखने. हम लोग जैसे कुछ चुनिंदा लोग होंगे या है, जिसने
इतने डिटेल मैं हर एक चीज़ को नोटिस किया. सब के बस बात नहीं है भई ये. यू कैन कॉल मी क्रेजी और समथिंग एल्स. बट दिस इज अ टैलेंट. :p
'भारतीय सिनेमा में बाहुबली 2 एक मील का पत्थर साबित हुआ है, अब बॉलीवुड की फिल्मों को BeforeB2 और AfterB2 से जाना जाएगा.', भैया बोले.
 तो मेरा पूरा पैसा वसूल हुआ, इस मूवी से. मेरी तरफ से 5* . और हाँ, फिल्म ख़त्म होने के बाद, मैंने वापस टॉप फ्लोर पे आकर पोस्टर के सामने सेल्फी ली. :D
 जाइए देख आइये हॉल में इसको अगर अभी तक नहीं देखा, लैपटॉप या मोबाइल में इसको देखने से, आप इसके इफ़ेक्ट के साथ न्याय नहीं कर पायेंगे.
ऐतिहासिक फिल्म बनी है..
रही बात आप क्यू न देखें इस फिल्म को, तो इसके लिए सिर्फ यही कहूँगा कि अगर आप कुछ ऐतिहासिक या मैजिकल नहीं देखना चाहते है, तो आप न ही देखें.
क्यूंकि पूरी फिल्म ही कमाल बनी है. और हाँ, इसके बाद से ही मैंने राजामौली जी को फॉलो करना शुरू करा है.

 #MJ_की_कीपैड_से