रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Saturday, 2 January 2016

#‎न्यू_ईयर‬ @ ‪#‎छुटकपन‬ @ ‪#‎बचपन‬


‪#‎बदलाव_समय_का‬
"माँ, कल मैं 8 बजे ग्रीटिंग्स बांटने निकल जाऊंगा."
आप ब्रेकफास्ट बना के रखियेगा. माँ, प्लीज मैं लेट नहीं होना चाहता.!!
"हाँ- हाँ , ठीक है, ठीक है पहले अभी तो सोने जा बेटा."
और हाँ, मेरे लिए नाश्ते में प्लीज- प्लीज खाली हलवा ही बनाना.
"मैं पेट भर सिर्फ हलवा ही खाऊंगा. नथिंग एल्स!!"
माँ बस मुस्कुरा देती है..
उतनी ठंडी में, सुबह 7 बजे ही उठ जाता था..
"सुबह उठते ही पहला काम, मम्मी पापा के पैर छू आशीर्वाद लूँगा", ये सोच के सोता था.
और वैसा करता भी था..!! अच्छा लगता था..
(करा है कभी आपने..?? कर के देखिये..!! जरुर अच्छा लगेगा.)
"माँ, नाश्ता लगा दो, दोस्त लोग मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे."
"थैंक यू माँ, हलवे के लिए."
"उम्म्म्म... बहुत अच्छा है ये.."
"जरा आराम से खा बेटा!!, थोड़ा गरम है..!!"
खाना खाने के बाद सबसे जरुरी काम अपने ग्रीटिंग्स निकालता था. फिर उसमें,. उस समय के फनी शायरियां लिखता था.
हाँ, इन्क्लुडिंग वो डब्बे वाले. grin emoticon जो आज भले ही पी.जे (p.j)लगते हो.
मोस्टली बॉलीवुड हीरोज के मेरे ग्रीटिंग्स हुआ करते थे.. सबको चुन-चुन के लाता था.
सलमान,गोविंदा,संजय,अजय,आमिर आम या नार्मल दोस्तों के लिए. जो एक रु में अमूमन मिल जाए करते थे.
नहीं, शाहरुख़ नहीं, शाहरुख़ हकलाता है. (ऐसा मैं तब सोचता था, अब पता चल गया है, की ये उसकी एक्टिंग का ही हिस्सा है) क.क.क.क. किरण... सॉरी!! ‪#‎बैड_जोक‬. grin emoticon
उसको नहीं ख़रीदा करता था.
कटिंग वाले, फोल्डिंग वाले और डिजाईन वाले स्पेशल फ्रेंड और बेस्ट फ्रेंड के लिए, जिनकी स्टार्टिंग प्राइस 2 या 3रु हुआ करती था.
आठ - सवा आठ तक घर से निकल जाना होता था. फिर डाकिया जैसे जिसका घर सबसे पास में हो उसको पहले दे दो.
बस ऐसे ही घूमते- घूमते, दोपहर 12 तक घर पहुंचा करता था. और ये बात 2002ई. की होगी शायद.
देन आई यूज़ड टू बी इन सेकंड स्टैण्डर्ड..!!
फिर घर में जब 2007 में सेल फ़ोन आया.. फिर ये सिलसिला कम होता गया..
"पा.. 12 के रिचार्ज में आप 30 लोगों को मैसेजस भेज सकते हो या विश कर सकते हैं. "
"करवा लो.." पापा भी कह देते..
और फिर धीरे धीरे ये पूरी तरह ख़तम हो गया. लास्ट न्यू ईयर का ग्रीटिंग मुझे शायद 2011 में संजय से मिला था.
बस उसके बाद तो फिर धीरे धीरे वास्सएप्प और हाईक जैसे ने जगह ले ली.
अगर कुछ नहीं बदला है तो वो आशीर्वाद लेना एंड आल देट और हाँ, हलवा भी..
डिमांड तो कर दी है मैंने माँ से, "इस बार 2 kg गाजर का हलवा बनेगा.."
"पोने 2kg (1750g) मेरे लिए और बाकीं में आप और पापा देख लेना..." (आई ऍम वेरी फूडी)
"हाँ, जैसे 2kg खा ही लेगा..?? पागल..!!", माँ हँस के कहती.
आज भी पापा साल के पहले दिन और स्पेशली दिवाली के दिन पैसे खर्च नहीं करना चाहते, अन्लेस इट्स अर्जेंट.
और तो कुछ ख़ास नहीं बदला शिवाय मेरे साल के आखरी रात के.
पहले सोने से पहले, बस अगले दिन के मजे के बारे में,अच्छा खाना, घूमने पे मिलने वाला मजा और ढेर सारे मिलने वाले चोक्लेट्स
के बारे में सोचा करता था.
और अब बस यही ख्याल रहता है. क्या दिन क्या रात...
"अभी, वो टाइम एंड डिस्टेंस और सिंपल इंटरेस्ट का चैप्टर बचा है यार, कब खत्म करेगा तू उनको.."
"अरे! उस बैंकिंग वाले फॉर्म की लास्ट डेट आने ही वाली है.. जल्दी से भर देना.."
सबसे इम्पोर्टेन्ट-
"ओह गॉड!! अभी भी 206 मूवीज "अनसीन" फोल्डर में बची है, कब खत्म करेगा तू उनको.."
"कित्ता केयरलेस है तू"
  गॉड ब्लेस इंडिया..
‪#‎हैप्पी_न्यू_ईयर_टू_आल‬
:- ‪#‎MJ_की_कीपैड_से‬

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