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दशहरा की शाम @ भगवती स्थान |
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दशहरा में प्रोजेक्टर के जरिये विष्णु पुराण का मंचन |
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गाँव के बाहर का दृश्य |
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जिला सहरसा जंक्शन |
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गाँव की कोशी नदी , जहाँ तक फोटो की ऊंचाई है , वहां तक 2007 में बाढ़ का पानी पहुंचा था. |
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डूबता हुआ सूरज गाँव में |
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हनुमान थान |
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शिव मंदिर , गाँव के दक्षिण में |
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भगवती स्थान मुख्य द्वार |
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भगवती स्थान गोलमा |
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बादलों के नीचे भगवती स्थान |
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गाँव का मानचित्र |
मेरे शब्दों में मेरा गाँव
मैंने एक दिन अनायास ही एक शब्द गूगल किया की जरा देखूं , गूगल महाशय क्या क्या रिलेटेड सर्च में दिखाते हें.
देखा तो पता चला मुश्किल से एक आर्टिकल कह ले या या एक पैसेज मिला उस शब्द के बारे में. वो शब्द कुछ और नहीं
बल्कि मेरे गाँव का नाम था "गोलमा".
मेरा मित्र रोहित अक्सर मुझे "ओये गोलमाल" कह कर पुकारा करता था, क्यूंकि मैं गोलमाल अर्थात् गोलमा का ही निवासी हूँ,
बदले मैं उसे "टशन रे, टशन रे, टशन रे" कह कर प्रतिउत्तर देता वो इसीलिए क्यूंकि उसके गाँव का नाम "बिशन" करके कुछ था. सो एज दे बोथ
साउंड्स सिमिलर.
पतरघट प्रखंड के अन्दर और सहरसा जिला के अंतर्गत आने वाला मेरा छोटा सा गाँव है. इसका ये नाम "गोलमा"
यहाँ पे राज करने वाले "राजा गुलाम सिंह" के नाम पर पड़ा. नाम भी कितना अजीब है राजा का गुलामों जैसा. जोक्स अपार्ट..!! :D
भले ही आज गाँवों में वार्ड नंबर लागू हो गए हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोगों ने तो जातियों के आधार पर मोहल्लों को बाँट कर रखा है.
जिसका अनुसरण नयी पीढ़ी के बच्चों के जुबान पे भी रटा गया है. मसलन ब्राहमणों के इलाकें को मुख्यतः "भभन टोली" के नाम से जाना जाता है,
मुसहर समुदाय के लोगों के नाम पे "मुसहर टोली", तेली समुदाय जिनका मुख्य व्यवसाय तेलों की पिराई हुआ करता था,
उनके लोगों ने अपने मोहल्ले को "तेली टोला" नाम दिया है, कुम्हार वर्ग के नाम से "कुम्हर टोली", पासवान लोगों का "दुसाध टोली", यादव
लोगों की "गुंवर टोली"आदि .
वैसे गोलमा में तो आपको विभिन्न जातियों के लोग मिल जायेंगे लेकिन यहाँ की मुख्य जाति या ये कह लीजिये जिनकी संख्या ज्यादा है,
वो है राजपूत समुदाय, उसके बाद ब्राह्मण, फिर पासवान,फिर तेली समुदाय , फिर मुसहर ,फिर यादव,और अन्य अल्प संख्यक समुदाय जैसे-मुस्लिम
का नंबर आता है.
अब बात करते हें शिक्षा की , तो गाँव में 3 या 4 कान्वेंट स्कूल या प्राइमरी स्कूल खुले हैं जिनसे आप के.जी. से ले कर कक्षा 5 तक शिक्षा
ग्रहण कर सकते हैं. सभी कान्वेंट के नाम तो मुझे नहीं मालूम लेकिन हाँ, जिसमें मैंने अपनी पढाई शुरू की देट इज लड्डू सर जी वाला कान्वेंट कुछ
(S.B.V.M) सरस्वती बाल विद्या मंदिर करके नाम था. आगे की पढाई के लिए गाँव में एक मिडिल स्कूल (क्लास
6 से क्लास 8 तक) भी उपलब्ध है. इस स्कूल का निर्माण गाँव के पूर्व मुखिया श्री जय मोहन झा के पिता श्री पुनिदत्त झा के द्वारा करवाया गया था.
अगर आप उससे भी आगे की पढाई करना चाहते है, तो गाँव में माँ दुर्गा हाई स्कूल के नाम से एक हाई स्कूल भी मौजूद है,
जिसमे आप क्लास 9 और क्लास 10 तक की पढाई पूरी कर सकते है.
जैसा की आप अंदाज़ा लगा ही सकते है की गाँव की पढाई का स्तर उतना अच्छा नहीं है, ये मैं नहीं कह रहा हूँ, एक गार्डियन के शब्दों में -
"इह.. ओते की पढाई हेते, छोड़ा सब लफुआगिरी अ आवारागर्दी करेत रहे छे.., स्कूल में मास्टर के बाटे नए और पढाई करते.. सब छे रामे भरोसे"
मतलब वहां स्कूल में क्या पढाई होगी वहां तो लड़के लोग आवारागर्दी करते रहते है और ऊपर से टीचर की कोई व्यवस्था नहीं सब भगवान् भरोशे है.
स्कूल की इस माली हालात के कारण गाँव में ट्यूशन और कोचिंग क्लासेज बड़ी मात्रा में फल फूल रहे है. नवीन चचा के द्वारा खोला गया कोचिंग काफी
विद्यार्थी के लिए एक आशा की किरण बनी , इस खस्ताहाल पढाई व्यवस्था में. और अभी रिसेंटली ही सोनू भाईजी ने भी अपनी एक कोचिंग क्लासेज
खोली है, लगभग 200 बच्चे आते हैं. अच्छा है, कहीं से तो उनको ज्ञान मिल रहा है, हालाँकि अब भी ग्रामीण इलाकों में कोचिंग क्लासेज में फ़ी 150रु से 200रु
दी जाती है.
अगर आपने किसी तरह से 10वीं तक पढ़ लिया, जो की अब भी छोटे जातियों को पोस्टग्रेजुएटड होने जैसा एहसास दिलाता है, और आगे भी पढने की हिम्मत
रखते हैं, तो इसके लिए आपको गाँव से बाहर यानी नज़दीकी टाउन या जिला मधेपुरा या सहरसा का रुख करना पड़ेगा. क्यूंकि इसके आगे नाम लिखाने
की व्यवस्था हमारे गाँव में उपलब्ध नहीं है फिलहाल.
सुनने में आया था की पटना के और देश के मशहूर पद्मश्री डॉक्टर R.N.Singh, वो गाँव में एक मेडिकल कॉलेज खोलना चाहते है.
अब ये बात में कितनी सच्चाई है ये तो मैं नहीं कह सकता, वैसे भी ये बात मैंने लगभग 4 साल पहली सुनी थी.
वो इसीलिए क्योंकि डॉक्टर साब! इसी गाँव से बिलोंग करते हैं. अगर ऐसे हो जाता तो क्या बात होती. मेरा गाँव को फिर पूरे राज्य में जाना जाता.
उड़ते - उड़ते खबर आई थी की कॉलेज के लिए जमीन अधिग्रहण का काम पूरा हो चूका है, लेकिन ये खबर भी वही लगभग 4 साल पुरानी है.
गाँव की आय का मुख्य श्रोत खेती ही है. लेकिन माँ बता रही थी की अब तो हर कोई , कोई भी काम शुरुवात करने लगा है.
छोटे कारोबारी की संख्या अच्छी खासी मिल जायेगी आपको. गाँव के ही चौक यानी मुख्य चौराहा पर आपको विभिन्न जात के लोग कई सारे दूकान करते नज़र आ जायेंगे.
ये लोग भी अपने पैत्रिक कामों को छोड़ कर कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिसमे उन्हें मुनाफ़ा हो. अब कुम्हार और तेली समुदाय के लोग को वास्तविक
पेशा तो उन्हें मुनाफा देने से रहा.
अगर आप गोलमा चौक पर पहुचेंगे तो आपको 3-4 मिठाई की दूकान दिख जायेगी. भले ही मिठाई उसमे बासी हो लेकिन उनको आपके सामने
पड़ोसने और उनके खिलाने का अंदाज़ आपको भा जाएगा. शाम को इन्द्रानन चचा की दूकान पे आपको अनेक्स्पेक्टेड भीड़ दिख जायेगी.
वे भी हलवाई है, लेकिन उनके बने समोशे की बात ही अलग है, बेजोड़, लाजवाब. आप उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ इस बात से लगा सकता है की
समोशे की बनी पहली या आखरी खेप से एक भी समोशा शेष नहीं बचता है. इसके अलावा 3-4 मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज की दूकान मिल जायेगी ,
मेरी सलाह है की अगर आपका सहरसा या मधेपुरा आना जाना लगा रहता है तो ये काम वहीँ से ही उचित दाम में करा सकते है. इसके अलावा 2-3
कपड़ों की दूकान भी आपको दिख जायेगी. शाम को चाउमिन का ठेला भी लगता है, भीड़ तो काफी लगती है उसमे भी , लेकिन मैं उसको चखने की
हिम्मत नहीं कर सका. इसके अलावा सूर्याष्त होते ही सब्जी की दुकानें भी मिल जायेगी आपको. पा अक्सर कहानी बताये करते हैं इससे संबंधित
की गोलमा को "आन्हर गाँव" यानी "अंधा गाँव" के नाम से भी जाना जाता था, वो इसीलिए क्यूंकि यहाँ जो भी सब्जी वाला आता था चाहे उसकी सब्जी ताज़ी
हो या सड़ी-गली हो, बिक जाती थी. जी हाँ, पता नहीं कैसे?
गाँव में वहीँ चौक पर एक मात्र बैंक भी है गोलमा का - बैंक ऑफ़ इंडिया, जो शायद 90 के अंतिम वर्षों में बना था, और हाँ एक प्राइवेट एटीएम भी
है गाँव में Tata Indicash का जो की टाटा ग्रुप का ही है. भले ही एटीएम 24 घंटे नहीं खुला रहता है लेकिन हाँ दिन में आपको इसमें कैश जरुर
मिल जायेंगे , मतलब अगर आपके अकाउंट में हो तो . :D
वहीँ चौक पर रिलायंस,एयरटेल और वोडाफ़ोन के मोबाइल टावर दिख जायेंगे. जो निसंदेह 2G ही है. गाँव वालों को क्या पता 3G या 4G क्रांति
के बारे में, उन्हें तो बस मोबाइल में खेसारी लाल , कलुआ जैसे कलाकारों के विडियो मिलते रहने चाहिए. वही मोबाइल की दूकान करने वाले वाले 10रु
में 3 फिल्में फ़ोन में भरने का चार्ज करते हैं. क्वाइट एक्सपेंसिव हाँ..?? :D
रही बात अगर रोड कनेक्टिविटी की तो ये पहले यानी लालू जी के समय से काफी तो नहीं बट हाँ, अच्छी हालत में जरुर है. अब आप बस की पिछली
सीट में कुछ कम डर के साथ बैठ सकते है. और अब जब बस की सर्विस भी काफी अच्छी हो गई है हमारे डिस्ट्रिक्ट के लिए जो की यही कोई 35 किलोमीटर'
की दूरी पे है . पक्के सड़क के द्वारा ये गाँव मधेपुरा, सहरसा, सौन्बर्षा,बथनहा , घोघन पट्टी, भभरा, लात्तिपुर, खोज़ुराहा, सखोरी, पतरघट आदि से जुड़ी है.
सुबह -सुबह 5.30 बजे से बस का सिलसिला शुरू होता है सहरसा के लिए, उसके बाद 8.00 बजे, फिर 9.00 , फिर 12.00 बजे और
आखरी डायरेक्ट बस टू सहरसा 2.30 बजे दोपहर को. और अगर बात करें वहां से वापसी की तो सहरसा से पहली बस 8.00 बजे सुबह खलती है ,
फिर 10 बजे सुबह , 1.30 बजे दोपहर ,फिर 3.50 बजे दोपहर और आखरी शाम 6 बजे. औसत 2 घंटे में ये आपको गाँव से सहरसा एंड वाईसवर्सा.
लौटते वक़्त इन बसों का डेस्टिनेशन या तो चंडीस्थान होता है या सौनबरसा.
वहीँ चौक पर आपको 2-3 केमिष्ट की शॉप जरुर दिख जायेगी, हालांकि गाँव के शायद एक मात्र डॉक्टर साब किरपिन बाबा है, अब जब उनके बच्चे भी
मरीजों को देखने लगे हें, तो अब उन्पें लोड थोड़ा कम लगता है. हालांकि गाँव में एक हॉस्पिटल भी खुला है यही 4 साल पहले, उन्ही डॉक्टर साब
R.N.Singh का, जो की न सिर्फ मुफ्त में इलाज करते है, बल्कि उनके डॉक्टर संभव दवायीं भी मुफ्त में वितरित करते है. लेकिन भ्रस्टाचार यहाँ भी
है, जिनको इस बात का इल्म नहीं है की मुफ्त में दवायीं दी जाती है, उनसे पैसे भी लिया जाता है. R.N.Singh जी को इस बात की जानकारी शायद
नहीं ही होगी, वरना कुछ कार्यवाही जरुर की जाती. माँ बता रही थी की हर एक दिन विभिन्न डॉक्टर या स्पेशलिस्ट पटना से आते है. अच्छी बात है!!
गाँव में ये (R.N.Singh)अक्सर क्रिकेट टूर्नामेंट करवाते रहते हें.अच्छा है , इसी बहाने नयी प्रतिभा को एक नया मंच मिल जाता होगा.
25000रु इनामी राशि के लालच में. इंसान अच्छे हैं वो, नहीं तो अभी तक वो अपनी माटी को क्यू याद रखते?
अब बात करते है दुसरे मूलभूत सुविधा जैसे पानी की , तो सभी घर में हैंडपंप लगा है, डेल्ही हाइट्स इसे पढ़ के खुन्नस खा सकते है..!! :p
हाँ तो, पानी की समस्या नहीं है गोलमा में. और रही बात बिजली की तो, बिजली के खम्भे तो 2004 या 05 में लग गए थे. शायद उसी साल
गाँव वालों ने बिजली का चेहरा भी देख लिया होगा, लेकिन हालत अब भी सही नहीं है, इसी बारी विधानसभा चुनाव से पहले जब बिजली दी गयी.
उसके बाद से रात में अक्सर रहा करती है. ठंडियों में लाइट की स्थिति अच्छी रहती है, यही कोई 4-5 घंटे औसतन मौजूद रहती है बिजली आजकल.
हाँ, मैं, इसमें भी अगर हालात अच्छे कह रहा हूँ, क्यूंकि पहले तो ये महीने में एक या दो बार ही अपना चेहरा दिखाया करती थी. भले ही बिजली के मीटर
उसी वक़्त 2005 में लगा दिए गए हो, लेकिन अब स्थिति अच्छी है पहले से.
मतलब ऐसा भी नहीं है की बाकी के दिनों में गाँव वाले अँधेरे या लैंप में ही गुजरा करते है. हमारे गाँव में भी एक नूरजहां है, यू रेमेम्बेर जिसका पी.एम
मोदी ने जिक्र किया था. जो सोलर एनर्जी का यूज़ करके एक लैंप घरों तक पहुचाया करती थी. नाम है रंजन. हाँ, लेकिन हमारा ये नूरजहां इको-फ्रेंडली नहीं है
क्यूंकि ये डीजल का यूज़ करके लोगों को लाइट उपलब्ध कराता है , गर्मियों में शाम 7-10.30, और ठंडियों में 5 से 9 बजे तक .
खैर जो भी हो लोगों को रोशनी मिलती रहनी चाहिए, क्या फर्क पड़ता है उन्हें इको और फीको फ्रेंडली होने या न होने से.
गाँव के बीचों-बीच एक भव्य मंदिर बनाया गया है जो माँ भगवती का है. इसको स्थानीय लोगों के द्वारा "भगवती स्थान" के नाम से जाना जाता है.
आप इसे गोलमा का "लैंडमार्क" भी कह सकते है. गोलमा की शान है ये मंदिर. हर शाम काफी भीड़ होती है, मोस्टली कुंवारी लड़कियां अपने अच्छे
वर की मनोकामना लिए यहाँ शाम को आरती करने आती है.दशहरा का मेला काफी अच्छा लगता है, काफी भीड़ जुटती है उसी भगवती स्थान के पास.
सब अच्छा है गाँव में. थोड़ी और सुविधा होती तो जरुर और अच्छा रहता गाँव में. गाँव में कुछ ज्यादा अच्छा है तो वो भगवती स्थान है और इन्द्रानन चचा के
समोशे. कभी आना होगा तो चख के जरुर जायेइगा. बाकी जो है सो तो हैइए है.
:- #MJ_की_कीपैड_से