रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Monday, 27 June 2016

द फ़ोन कॉल

" #द_फ़ोन_कॉल "
3/FEBRUARY/2016
 रात मैंने एयरटेल का नाईट इन्टरनेट पैक एक्टिवेट कराया. जो की रात 12 से सुबह 6 तक वैलिड होता है.
सोचा था की एयरलिफ्ट कर लूँगा, फिर उसके बाद में इट फाल्लोज का ट्रेलर, और क्राइम पट्रोल का एक एपिसोड.
जीरो वाट के लाल बल्ब की रोशनी बिखरी थी मेरे कमरे में. साथ में लैपटॉप पे "डे ड्रीम नेशन" देख रहा था.
देट्स अ मूवी स्टार्रर केट डेन्निंग्स. लैपटॉप का डिस्प्ले आँख पे ज्यादा असर न करें, इसीलिए सेल फ़ोन के टोर्च को स्क्रीन की तरफ कर रखा था.
देट्स अ ट्रिक. :p नहीं, लाइट , नहीं ऑन रख सकता था. बगल वाले कमरे में घर वाले सोये थे. उनको पता चल जाता की "ये अभी तक जगा है"
फिर मेरी शामत. फाइल सारी क्यू सिस्टम में लगी थी, यानी एक एक कर के वो डाउनलोड होगी. अचानक से याद आया, अरे वो सनी का कंट्रीवेर्सिअल
इंटरव्यू भी तो रहता है. तो उसको भी दूंढ़ के डाउनलोडइंग में लगाया. प्रायोरिटी चेंज कर उसको तीसरे नंबर पे सेट किया, यानी आफ्टर एयरलिफ्ट
देन ट्रेलर एंड देन दिस इंटरव्यू. रात 2 बजे मूवी खत्म करके सोने चला.अलार्म 5 बजे का सेट किया. क्यूंकि इन सबके बाद भी एक एप्प बच रहा था डाउनलोड
करने को. जिसको 5 बजे उठ के रेज्यूम करना था. आह!! प्रीटी टफ.. इजअन्ट इट..?? :D
नींद नी आ रही थी, शायद दिन में जो 2 घंटे सोया था, उसका नतीजा था ये. इसीलिए कानों में इयरप्लग्स लगा के वो #YKIB - सीजन 4 की
कहानी सुनने लगा. इट हेल्प्स में समटाइम टू गेट मी स्लीप. हल्की ही नींद पड़ी थी. कि सेल फ़ोन का स्पीकर बजा.
ओह सेसिल्या, यू ब्रेकिंग माय हार्ट.. (माय रिंगटोन)
मेरी आँख खुली, अभी इस वक़्त कौन होगा.. थोडा अजीब था ये.
इट्स बीन ऐजस (लाइक 8 मंथ्स और समथिंग), सींस आई हैव नॉट अटेंडऐड एनी कॉल्स लेट नाईट.
हलके से आँख खोल स्क्रीन को देखा..
Bhaiya calling...
आई थॉट, व्हाट वुड बी द पॉसिबल रीज़न्स..??
व्हाई इज ही कालिंग सो लेट मैन..?? (मीन व्हाइल आई डिक्रीजड देट साउंड)
हेलो.. भैया..??
क्या हुआ..?? (आई वाज साउंडिंग एज इफ, मेरी आवाज़ बैठी हो)
हाँ रे..!! क्या कर रहा था..??
शायद सो रहा था.. कुछ काम था क्या..?? (आई व्हिस्पर्ड)
ऐसे क्यों बात कर रहा है..?
नार्मल लोग, नोर्मल्ली सोते है भैया इस वक़्त. ( आई वाज स्टिल व्हिस्परिंग) :D
तू इतने अच्छे से कैसे बात कर रहा है, यूँ फूस फुसा के..?? ऐसे तो वही बात कर सकता है.. जिसको काफी एक्सपीरियंस हो.
येह! आई ऍम ग्लैड, आई गेस आई ऍम वन ऑफ़ दोज..
अच्छा जी, चल बाहर निकल, आई वाना टॉक..
रियली...???
हम्म्म्म, यू हर्ड मी.
ओके. जस्ट होल्ड ऑन. लेट मी ग्रैब माय जैकेट एंड आल स्टफ..
ऑलराइट!!! टेक योर टाइम बॉय..
मैं मुरझाये मन से उठा, भाई की बात कौन टाल सकता है.
बंदा एक बार अपनी गर्ल फ्रेंड का फ़ोन काट सकता है, मना कर सकता है, कह सकता है- बेबी सुबह बात करते है.
लेकिन बड़े भैया की फ़ोन कोई कैसे ना अटेंड करें.
तो मैंने मफ़लर और जैकेट पकड़ा और अपन इयरप्लग्स उठाया. धीरे से कमरे का गेट खोला मैंने. फिर दबे पांव मेन गेट का ताला खोला.
और अब मैं घर के बाहर था. रात के या सुबह के कह लीजिये 2.15 बज रहे थे.
ओह.. शिट..!! आई वाज स्टिल कोल्ड.. आई शुड हैव ब्रोट माय इनर टू..
हाँ जी.. बताइए.. क्या हाल है, कैसे याद किया इतनी रात को..
नीकू, तूने तो मुझे पुराने दिन याद दिला दिये.
हाउ इज देट..??
ये, जिस तरह से तू बाहर आया है घर से, ऐसे ही कुछ मैं दोस्तों को बुलाया करता था.
योर वेलकम!!
हाहाहा... (दोनों तरफ से) (धीरे से)
कुछ इम्पोर्टेन्ट बात थी क्या..??
यार! अभी मैंने एक मूवी खत्म करी. बड़े दिन बाद कोई इतनी अच्छी मिली..
रियय्य्य्यय्य्य्यली...????
आपने ये बताने के लिए मुझे इतनी रात को फ़ोन किया..??
यअप! मैंने इसको जब खत्म किया, फिर सोचा कौन ऐसा मेयनिएक होगा, जिससे मैं ये शेयर कर सकूँ..?? एंड देयर यू वाज..
अच्छा, ऐसा कौन था एक्टर.. , मैंने पुछा.
ओह.. हु एल्स देन डेंजल..!!
अहाँ, कौन सी थी..??
द इक्वलाइज़र. (The Equalizer)
The Equalizer एज इन म्यूजिक प्लेयर..?
यो बॉय!
आये, गुड फॉर यू.
इस बार कितनी नयी मूवीज डाउनलोड कर लाये दिल्ली से..?
ज्यादा नहीं, बस 162.
होली शिट..!! रियली..?? (मैंने खुश होते हुए पुछा..)
येह! यू हर्ड देट!!
(हम दोनों बस एक टॉपिक- "मूवीज" के ऊपर घंटो बात कर सकते है..)
आई वाज स्टिल कोल्ड. वो तो रूम के अन्दर बैठे हुए थे.
भैया, और सब ठीक है न..?? मैं जाता हूँ अब!!
अरे! रुक जा यार..!! कहाँ जाएगा.. करते है यार बात..!!
"भैया, मैंने अपना रिकॉर्ड / इमेज बहुत अच्छा बना रखा है यहाँ.
सब मुझे यहाँ एक अच्छे लड़के की तरह जानते है. हर वक़्त घर में ही रहता हूँ. किसी लफंडर दोस्त क साथ नहीं घूमता हूँ.
और लगता है आज आप मेरे सारे किये कराये पे पानी फेर देंगे..
अगर किसी ने देख लिया मुझे इतनी रात को बाहर, सब कचरा हो जायेगा..
मैं जाऊ..?? अच्छा गुड नाईट..?? ह्म्म्म...?? "
अच्छी इमेज..?? फिर तो कहीं नहीं जायेगा तू..
और तेरी वो दोस्त कैसी है..?? ही कंटिन्यूड
अच्छी है..
कहाँ है वो आज कल..?
शी इज इन छपराआआअ.. (आई मिमिक्ड लाइक चत्तुर फ्रॉम 3 इडियट्स, यू गाइज रेमेम्बेर- ही इज इन शिमलाआआआ..)
और यहाँ भैया शुरू हो गए..
आरा हिले, छपरा हिले.. (वो गुण गुनाने लगे)
इज देट सेम..??
यो बेबी! , मैंने कहा.
एंड व्हाट अबाउट द अनदर वन..??
शी इज इन डेल्ही, शी इज फाइन.
एंड व्हाट अबाउट योर एक्स..?? कुछ बात आगे बढ़ी..??
नोप. आई हैव टोल्ड यू.. हैव'न्ट आई, देट बोथ ऑफ़ अस हैव मूव्ड ऑन.
ओके.. और सुना.. (ही डजन्ट सीम्स/गोइंग टू हंग अप कॉल)
भैया आज आपने आधार कार्ड के अप्लाई किया होगा, फिर  गैस भी भरवाया होगा, बाइक भी सीखने गए होगे,
आई थिंक यू मस्ट बी टायर्ड नाउ..?? ह्म्म्म..??
समझ रहा हूँ मैं..!! आई ऍम कूल.. डोंट वर्री बॉय.
और सब कहेए.. (दिस इज हाउ वी यूज्ड टू कंटिन्यू आवर टॉक. इट मीन्स अभी तक कोई बोर नहीं हुआ है..)
फिर वही हुआ जिसका डर था..
भैया!!! शिट!! सामने वाली भाभी बाहर आई है, एंड आई थिंक शी हैव सीन मी.
छे..!!, मैंने कहा.
कोई न छोटे..!! चिल्लेएक्स!!
क्या सोच रही होगी, किस्से बात कर रहा होऊंगा..??
बेटा, अभी जिस वक़्त तू बात कर रहा है न, वैसे तो कोई नहीं मानेगा, कि तू किसी लड़की से बात नहीं कर रहा होगा.
और ये सब आपके वजह से हुआ है., मैंने कहा.
आह, योर वेलकम..
वी टोक्ड फॉर 35.33 मिनट.
आफ्टर 35 मिनटस, ही सेड- चल तू जा, सोने.
थैंक यू. आप महान है.
आई क्नो, आई क्नो. कुछ नया बता.
कल से रोजाना एक मूवी खत्म करूँगा.
और उस दिन पता चला की भैया ने मेरे एक दिन में देखे सबसे ज्यादा मूवी का रिकॉर्ड तोड़ दिया. 8 मूवी देख के. :'(
मैंने भी कहा- इट वोंट लास्ट टू लॉन्ग ड्यूड.
"हाँ भाई, मुझे बस तुझसे ही उम्मीद है. तू ही तोड़ सकता है इस रिकॉर्ड को." , वो बोले.
फिर कुछ देर बाद मैं दोबारा अपने बिस्तर पे आ गया. लेकिन इस बार चेहरे पे मेरे एक मुस्कान थी.
फिर वही कहानी को कंटिन्यू करा सुनना. पता नही कब नींद आ गयी.
और हाँ, घर वालों को पता नहीं चला. रात में क्या हुआ था, नहीं तो पक्का खबर लेते..
और हाँ, वो एप्प के अलावा सारी फाइल डाउनलोड हो गयी. (ख्याल आया आपको बता दूं) :D
इट वाज नाईस टॉकिंग यू भैया..
 #MJ_की_कीपैड_से.

बर्थडे थैंक्यू नोट

#थैंक_यू  #नोट
10/FEBRUARY/2016
एट शार्प 12 इन मिडनाइट का, कॉल रिसीव करने के बाद. आई सेड टू मायसेल्फ- थैंक गॉड.!!!
"हैप्पी बर्थडे...!!!", दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
"aww.. थैंक यू", मैंने कहा.
"होप, आई एम् द फर्स्ट"
"हाँ जी!! आप ही है पहली.."
"आह... ग्रेट!! कूल!!", उधर से आवाज़ आई.
"सुबह बात करते हैं, आप भी सो जाओ." , मैंने कहा.
"ओके, बाय..!!" , उधर से धीरे से आवाज़ आई.
आई पुट माय फ़ोन ऑन ऑफ लाइन मोड. चहरे पे मुस्कान के साथ अपनी आँखें बंद कर के कहा-
"हैप्पी बर्थडे, बॉय!!, इट्स 10th- फेब. "
22.  इट कुड बी जस्ट ए नार्मल फ़िगर. बट यस्टरडे आई क्रॉस्ड देट टू..
येह! 22 साल जी चूका हूँ मैं. जवान होने की ख़ुशी से ज्यादा मेरे बचपने को अलविदा कहने का गम है.
मैं चाहता हूँ की, एक बच्चा  हमेशा जिन्दा रहे. ये मेरा बचपना कभी खत्म न हो..!!
सो 21 का मैं अब लिगीली हो गया हूँ. इसीलिए और ज्यादा ख़ुशी भी है.
वो सारे राइट्स जो 21 के होने पर मिलते है. नाउ आई कैन हैव दोज टू.
उन राइट्सों में मुझे एक ही अभी याद है. देट इज, नाउ आई कैन मैरी. :D जोक्स अपार्ट!!
तो, सुबह कुछ अलग तो नहीं लग रही थी. लेकिन मुझे पता नहीं आज अलग सा महसूस हो रहा था.
एज इफ आई वाज द प्रिंस फॉर देट डे. :D
माँ ने मेरी आँखें खुलते ही मुझे विश किया. 3 साल बाद फिर से मैं, अपने जन्मदिन पे घर पर था.
"थैंक्स मोम्मी" , मैंने दुलार जताते हुए कहा.
"कम ऑन गेट अप, इट्स योर बर्थडे!! बॉय.."
"हाँ माँ, बस थोड़ी देर और सोने दो.."
फिर 8 बजे न्यूज़ पेपर ले के बैठा.
"सोना 19 महीने के रिकॉर्ड स्तर पे", मैंने माँ को पढ़ के सुनाया..
हाँ, तुझे कौन सा खरीदना है.!!
माँ, इट्स माय बर्थडे!! कुछ तो अच्छा हो..!!
"ये लो, स्वाइन फ्लू का एक/पहला केस भी सामने आया है, हल्द्वानी में"
"शुरुवात हो गयी. छे..!!" , मैंने कहा.
अगली खबर थी , स्पोर्ट्स सेक्शन में-
"भारत 5 विकेट से मैच हार गया.."
"ओह.. नो.. , माँ आज तो कुछ भी अच्छी खबर नहीं आई है."
अच्छा!! ये पढ़ तो जरा..
" भारत अंडर 19 वर्ल्डकप के सेमी फाइनल में पहुँचा.."
आई हेड साई ऑफ़ रिलीफ.
कुछ तो अच्छा हुआ!!
आई चेक्ड माय हाईक!!
इट वाज ट्रेंडिंग मैन!!! #मंजेश_का_बर्थडे
टोटल 10 कॉन्टेक्ट्स और एक ग्रुप में से, 6 ने अपनी डी.पी में मुझको जगह दी.
7 ने अपने स्टेटस में भी मुझे विश किया.!!
इवन हमारे ग्रुप का नेम "द सिक सेवेन" से बदल कर "एप्पी बर्थडे मंजू.." रखा गया.
इट वाज नाईस फीलिंग. थैंक्स फॉर देट गयिज़.
इट वाज ग्रेट! रियल कूल.. लव यू!!
तो सबसे यूनिक विश का प्राइज #अंकित को जाता है. इट वाज रियल नाईस ड्यूड!!
मुझे भी अब कुछ अच्छा सोचना पड़ेगा, तेरे लिए!!
यू मेड माय डे, #स्पेशल.
सबसे क्यूट विश का प्राइज #रिया को जाता है. :D थैंक यू..!! ;)
और #शिवानी आपको भी, थैंक्स!!
आई हेड थॉट देट, लाइक लास्ट ईयर, वी विल अगेन गो टू सूरजकुंड!!
लेकिन नहीं हो पाया.. काश..!!!
12.27 pm पे मुझे एक कॉल आता है.
बर्थडे विश करने के बाद बंदा कहता है, यार तेरी वो मूवी डाउनलोड हो गयी है.
"क्या..?? " सच्ची..?? , मैं ख़ुशी से उछल पड़ा.
कल तक जिस मूवी को देखने के लिए मैं मर रहा था, मुझे पता चला की आज, यानि 10-फेब को मिलने वाली है.
तो भुप्पी तूने मुझे एक नया जीवन दिया है.. मूवी डाउनलोड कर के.. :D :D
अब इसके बाद मुझे रात का प्लान साफ़ नज़र आ रहा था. की क्या करना है..!! ह्म्म्म...??
येह!! भुप्पी आई विल टेक देट एज माय बर्थडे प्रेजेंट!! थैंक यू!!
तो अमेजिंग विश का प्राइज तुझे ही जाता है. खुश हो जा.. :p
एंड बिलीव मी, इट वाज वर्थ इट..
"मएजे आ गया देख के.." ,"कितना क्यूट लग रहा था ये बंदा पूरी मूवी में. #रिस्पेक्ट_डी_नीरो..!!"
आई विल नेवर डिलीट इट. अभी तक चार ही मूवी ऐसी मिली है, जिसको चाहता था की ये कभी खत्म न हो..
और ये उनमें से एक है.
एंड दिस बर्थडे, आई मिस्ड बीइंग विथ यू भैया..!! आई मीन इट..!!
#शम्मी_कपूर #और_सब_कहे #ओह.. :D
और आपका सबका भी शुक्रिया, जिन्होंने मुझे विश करने के लिए टाइम निकला..
एंड आई रियली रियली मीन इट..
एवरी मैसेजस, एवरी टाइमलाइन पोस्ट एंड एवरी स्टेटस मीन्स अ लोट टू मी.!!!
थैंक्स आशीष!! यू वाज द फर्स्ट ऑन फेसबुक, टू विशिंग मी. इसलिए स्पेशल थैंक्स.
और आपका भी, जिन्होंने मुझे पर्सनली कॉल कर के विश करना बेहतर समझा.
अगर आप ये पोस्ट पढ़ रहे हो तो.
और आपको भी, जिनकी कॉल वेटिंग पे जा के बार बार डिसकनेक्ट हो जा रही थी.
आई गेस!! इट्स वाज बिजी डे!!
थैंक्स आपका भी जो विश करना चाहते थे, नहीं कर पाए.. आई अंडरस्टैंड..!!
थैंक यू, फॉर मेकिंग माय डे वंडरफुल!!
एनीवे हैप्पी बर्थडे टू #Emma_Roberts #Elizabeth_Banks & #Chloe_Grace_Moretz.
 येह! वी शेयर बर्थडेज.. #लकी_गर्ल्स..!! हाँ...!! :D :D :D
और हाँ, रात को 12.51 पे एक टेक्स्ट आता है, व्हाइल आई वाज वाचिंग देट मूवी.
मेरे सेल फ़ोन में. आई थॉट कोई होगा, जो भूल गया हो विश करना..
उसमे लिखा था..
"Dear Manjesh Kumar, your Aadhar number has been generated & will be sent by post."
मैंने उसको तीन बार पढ़ा. तब जाके यकीं आया..
इत्ती ख़ुशी!! इत्ती ख़ुशी!! इत्ती ख़ुशी!! इत्ती ख़ुशी!! इत्ती ख़ुशी!!
"हेल, येह!!! इट्स माय बर्थडे ड्यूड.." आई सेड टू माइसेल्फ.
दिन का अंत मायने रखता है न, शुरुवात कैसी भी हो..??
करेक्ट मी इफ आई एम् रॉंग..!!
 #MJ_की_कीपैड_से

Saturday, 25 June 2016

दिल्लीफरनमा पार्ट- 3 - 'द स्टार्टिंग' (The Starting)

#दिल्लीफरनमा पार्ट- 3
23/July/2012
  फाइनली आज वो सुबह आ ही गया. 6.30 बजे ही आँख खुल गयी थी. थोड़ी देर और सोना चाहता था. लेकिन
एक्साइटमेंट में नहीं सो पाया. ब्रेकफास्ट करने के बाद शिवम भैया (रूम पार्टनर) ऑफिस को निकल पड़े.
और मैं भी लगभग 9.15 बजे बस स्टॉप की और चल पड़ा. कॉलेज पहुँचने पर मैंने कमल भैया को कॉल किया.
और पूछा की, एनी स्पेशल थिंग यू वुड लाइक टू टेल मी..?? बोले- "किसी से अकड़ना नहीं, किसी से दबना नहीं"
उन्होंने मुझे नानकमत्ता (खटीमा से लगभग 16 कि.मी दूर) के एक बन्दे से मिलाया. महेश नाम था उसका. ही वाज इन
इलेक्ट्रॉनिक्स. ही वाज फ्रेशर टू. आई चेक्ड नोटिस बोर्ड, देट वाज नोटिफाइंग स्टूडेंट ऑफ़ आवर कोर्स आर सपोज टू हेड टुवर्ड्स
सेमिनार रूम. सो, मैं और महेश के साथ वहीँ पहुंच गए. काफी भीड़ थी. लगभग 300 के आस-पास तो रहे होंगे बच्चे. हालांकि हॉल का
स्पेस काफी ठीक था. लेकिन तब भी भीड़ काफी महसूस हो रही थी. मैं हॉल के लेफ्ट कार्नर में जा पहुंचा. इधर महेश भी अपने
क्लासमेट्स के साथ मशगूल हो गया. मेरी क्लास का पहला बंदा जो मुझे उस दिन मिला, देट वाज अंकुर चौधरी. फिर धीरे धीरे
हमारे साथ उस दिन दो बन्दे मिल गए अपने कोर्स का, चेतन और आशीष. काफी सारी लड़कियां भी थी हॉल में. एक को मैंने
नोटिस किया, अपने गर्ल फ्रेंड्स के साथ ग्रुप में खड़ी थी. हाइट भी काफी सही थी. उसकी भी और उसके दोस्तों की.
देट वाज रागिनी (बदला हुआ नाम) बाद में पता चला की वो क्लासमेट ही है. लगभग एक घंटे के बाद हमारे कोर्स के हेड के साथ चार-
पांच फैकल्टीज आई. उन्होंने बताया की डरने की जरुरत नहीं है रैगिंग से. अगर कोई भी सीनियर परेशान करता है, तो आप हमारे पास
आइये. शी आल्सो टोल्ड अस टू वर्क हार्ड. इसके बाद सबको एक जूस और बिस्किट का पैकेट दिया गया. और फिर हम चार
मैं, अंकुर, चेतन और आशीष टाइम टेबल नोट करने निकल पड़े. बहुत डिफिकल्ट था वो काम, अगर आपको याद हो.
सारे सब्जेक्ट का शेड्यूल अलग अलग था. बहुत दौड़ भाग हुई थी उस दिन दूंढ़ते-दूंढ़ते. लगभग 1 बजे मैं घर के लिए निकल पड़ा.
मुझे बस के बारे में ज्यादा पता नहीं था, तो मैंने वही स्टॉप पे बैठे एक ताऊ से पूछा- नारायणा के लिए इधर से कौन सी बस जाती है..?
ताऊ बोला- घणी बसे हैं, सारी जावे है. (कुछ ऐसा ही कहा था हरियाणवी में, माफ़ कीजियेगा उतनी अच्छी नहीं हैं मेरी हरियाणवी. सॉरी विकास और नरेशा )
मतलब ये- की यहाँ से सारी बसें नारायणा जाती है. मैं इंतज़ार करने लगा अगली बस का. 711 नंबर की रेड बस आई, मैं चढ़ गया. बस के आटोमेटिक
दरवाज़े बंद हो चुके थे. बस चल चूकी थी. कंडक्टर की तरफ बीस का नॉट बढ़ाते हुए कहा- "भैया! एक नारायणा.."
"भई! गलत बस में चढ़ गया, ये न जाति नारायणा.."
मैं चुप हो गया. एक तो नया नया था, क्या कहता..?
बोला- "भैया रुकवा दो."
"अब अगले स्टॉप पे उतरियो, यहाँ न रुकेगी"
इधर मैं मन में ही उस बुड्ढे को गाली दे रहा था, साला कह नि सकता था की 711, 724, 588, O.M.S और  794 को छोड़कर सारी बसें जाती है.
उसको जी भर कोसने के बाद मैंने कंडक्टर से आगे का रास्ता पूछा. भाई साब! उस बुड्ढे के कारण उस जुलाई की गर्मी में ऑलमोस्ट 1 कि.मी
पैदल चलना पड़ा. फाइनली वहां से बस मिली और मैं नारायणा रिंग रोड पे उतरा. जब मुझे बाद में पता चला की मुझे एक स्टॉप पहले
उतरना था. फिर वहां से वापस पैदल चल के पहुंचा लगभग 1 कि.मी नारायणा गाँव के स्टॉप में. फिर वहां पहुँच के खुद से कहा की
"कल से तुझे, यहीं उतरना है", अच्छे से मैंने उस जगह को याद कर लिया. पता नहीं क्यू मुझे शुरुवात में नारायणा रिंग रोड को समझने में बहुत दिक्कत हुई.
और इस तरह मैं अपने रूम पर पहुंचा. थका हारा. खाना खाने के बाद मैं लुढ़क गया बिस्तर पर.
 (Tuesday- 24.July.2012)
फिर अगले दिन वही 6.30 पर उठा. पहली क्लास लैब थी, कंप्यूटर की. वहीँ मुझे चेतन और अंकुर मिले (कल वाले मेट्स).
हम वहां पहुंचे तो पता चला की लैब नही होगी, क्यूंकि अभी तक कोई थ्योरी क्लास्सेज नहीं हुई थी. वो लैब चार पीरियड्स का था, यानि
55*4=220 मिनट. तो इस बचे टाइम में हम लाइब्रेरी कार्ड बनाने चले गए. मैं लाइब्रेरी से बाहर निकल कर अपना फॉर्म भर रहा था. की तभी किसी ने
मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा- "मंजेश..??" मैं आवाज़ की तरफ मुड़ा. कुछ मेरी जैसी ही फीजिक थी उस बन्दे की. बालों में हल्का तेल लगा के
आया था. उसने खुद को इंट्रोड्यूस किया, क्यूंकि मेरी आँखें अब तक उस को नहीं पहचान पायी थी.
"मनीष... मनीष खोलिया.. खटीमा से ही हूँ मैं"
( #नाम याद रखना, काफी इम्पोर्टेन्ट किरदार है ये, इस सफरनामा का, हालांकि ये बात मुझे उस वक़्त पता नहीं था... जबसे ये बन्दा लाइफ में आया है,
बहुत उथल-पुथल मचाई है साले ने :D सॉरी भाई ;) )
 ## ( ऑलमोस्ट 15 डेज एगो इन खटीमा)
मैं पांडे जी दुकान पे बैठ के गप मार रहा था. दोपहर के यही कोई 12 बजने वाले थे, जब पाण्डेय ने एक बन्दे की तरफ इशारा करके कहा,
"उस लड़के ने भी तेरे कॉलेज में एडमिशन लिया है. अपने इंग्लिश मीडियम का था"
मैंने उसकी तरफ देखा, ज्यादा ध्यान नहीं दिया, चेहरे पर. सोचा कि कौन सा मेरे कोर्स का होगा.. हमारी नज़रें भी मिली.
तो हम एक ही स्कूल से 12th पासआउट थे. फिर भी मैं उसको नहीं जानता था, क्यूंकि वो CBSE से था, और  मैं, Uttarakhand Board
से था.
(Tuesday- 24.July.2012)
 "यार, तेरे को मैंने वही पाण्डेय की दूकान पे देखा था, तेरी बस ये मूछें याद रही मुझे, और अभी उसी को देख के गेस किया..", मनीष बोला.
मैं मुस्कुराया. आफ्टर देट केजुअल मीटिंग, वी एक्सचेंज्ड आवर कांटेक्ट नंबर. वो जनक सिनेमा में रह रहा था.सागरपुर से एक स्टॉप के बाद.
अकेला. सिंगल रूम ले कर.
उस दिन बस मोनिका सूरी की मैथ्स की क्लास हुई. फिर मैं घर के लिए निकल पड़ा. बस से स्टॉप में उतरने के बाद रास्ते में एक किलो आम भी खरीदा.
सोचा, शायद इसे खाने के बहाने ही घर को याद कर लूँगा. हालाँकि उसका टेस्ट उतना अच्छा नहीं था. आई स्टिल रेमेम्बेर देट टेस्ट.
 मैंने पा को अगली सुबह फ़ोन कर के बताया की मैंने दूध और ब्रेड खाया है. मुझे लगा की उनको अच्छा लगेगा सुन के, की कुछ तो खा रहा है न..
लेकिन नहीं, गुस्सा हो गए वो. बोले - अगर दिल्ली में 3 साल काटने है तुझे, तो बेटा तू ये सब खा के बिल्कुल नहीं रह सकता.
एक और सीख मिली उस दिन. बोले - ज्यादा नहीं, कम-से-कम 3-4 रोटी बना लिया कर. कितना टाइम लगता है.! और दाल भी जब जल्दी बन
जाती है, तो वही क्यूँ नहीं बना लेता.
दिल्ली आने से पहले घर वालों से मैंने कुछ क्विक डिश (जो जल्दी से बन जाए लाइक- मैग्गी) सीख के आया था. उनमें से मैग्गी
के अलावा दाल का तड़का बनाना भी था. इसके अलावा कुकर में चावल बना लेता था. रोटी नहीं आती थी. रोटी में कभी श्रीलंका तो कभी
पाकिस्तान का नक्शा बन जाता. माँ से पूछता रहता की आप अच्छी/ताज़ी सब्जियों और ख़राब सब्जियों की पहचान कैसे करते हो..?
वो बताती- लौकी में नाख़ून गड़ाया कर, भींडी को बीच से तोड़ कर देखा कर, लाल और टाइट टमाटर अच्छे होते है. फूल गोभी में उसके
तनें को देख लिया कर, जिसमें तना छोटे से छोटा हो और फूल कुछ बड़ा हो...
  यहाँ कॉलेज मैं हम लोग को p1 क्लास ही नहीं मिल पा रहा था. पता नहीं कहाँ होगा, सब यह सोच रहे थे.. जबकि वो था
आँखों के सामने ही. अगले दिन मैं पहली बार कॉलेज के एल.पी यानी लवर्स पॉइंट पर पहुंचा अपने वो तीन दोस्तों के साथ. वहां हम लोग पहली
बार मलखान उर्फ़ मेड्डी, विनय और उसके दोस्तों से मिले. पता चला की उन सब की ईयर बैक आई थी. सब हरियाणा के बन्दे थे.
हालांकि अभी क्लासेज ठीक से स्टार्ट भी नहीं हुई थी. फिर भी बच्चे तो लगभग पूरे आ रहे थे. एक था- ओम. डार्क काम्प्लेक्सअन था उसका. साथ में
हरदम वो क्रिकेट किट लिए घूमता था. उससे तो नहीं पर किसी से सुनने में आया की वो छपरा (बिहार) का है. आई नोटिस्ड काफी इजी गोइंग बंदा था.
काफी दोस्त बन गए थे, तब तक उसके. एक छोटी हाइट का लड़का था, सर पर वो कपड़े की राउंड टोपी लगाये फिरता था. बड़ा ही #अजीब लगता था, दिखने में.
राहुल (बदला हुआ नाम) तुझे पता है कि मैंने सही #वर्ड का यूज़ नहीं किया. :D अजीब सी हरकतें करता. क्लास में हर वक़्त चहलकदमी करता रहता.
सुनने में आया की उसने क्लास की एक लगभग उसी की हाइट की लड़की श्रेया (बदला हुआ नाम) को प्रोपोज किया एंड दे वेंट फॉर मूवी टू.
पता नहीं कौन था, मेरे कान भरने वाला. :D मैं इधर इन तीनों दोस्तों के बीच ही रहता. उन्हीं के साथ कभी कैंटीन, कभी लाइब्रेरी तो कभी एल.पी
पे टाइम पास करता. अंकुर और आशीष से मेरी अच्छी बनने लगी थी, लेकिन वो तीसरा वाला चेतन बड़ा ही अन्नोयिंग था. ठेठ हरियानिवी बोलता.
मैं उसे समझ नहीं पता, भाई बोल क्या गया यो..? अंकुर मेरठ का था. और आशीष भी हरियाणा का था, लेकिन वो हिंदी में ही बात कर लेता था.
वो चेतन था तो बड़े तेज़ दिमाग का. फिजिक्स के लैब में हम चारों ने अपना ग्रुप बनाया.
  इधर रूम पर मैं, दिन में, कभी पढ़ लिया करता था, मोस्टली टी.वी ही देख के टाइम काटा करता था. और फिर जब पॉवर कट होता था,
तो वही बालकनी में बैठ जाता. स्कूल में बच्चों को कराटे खेलता देखता. कभी-कभी हवा भी मेरे चेहरे से खेल जाती, और मैं मुस्कुरा देता. इधर मनीष से भी
अक्सर फ़ोन पर या कॉलेज में बात होने लगी. मैं जरा अनकम्फर्ट फील करने लगा था, वहां शिवम भैया (रूम पार्टनर) के साथ. मेय बी कॉज ऑफ़
 ऐज डीफ्फ्रेंस. 30 जुलाई(मंडे) को जब स्टार्टिंग की लैब नहीं हुई, तो मैंने सोचा की क्यूँ न मनीष का रूम देख लिया जाए. जैसा की उसने कई बार मुझे बोला
की रूम पर आने को. स्टॉप से 711 पकड़ी. टिकट ले कर सबसे आगे चला गया, ड्राईवर के पास. पूछा मैंने कैसे पहुंचना है- जनक सिनेमा..?
उसने मुझे बताया. सागरपुर उतरने के बाद मैं पैदल ही लोगों से पूछते-पूछते वहां पहुँच गया. थोड़ी देर बाद मनीष आया मुझे रिसीव करने. लगभग 10 मिनट
के कीचड़ भरे रास्ते और नाले को पार करने के बाद हम उसके रूम पहुंचे. जैसा की उसने बताया था, सिंगल ही कमरा था. आई नोटिस्ड देयर- एक छोटा वाला गैस
था किनारे रखा, अंडे की क्रेट कोने में पड़ी थी, ढेर सारी मैग्गी. ढेर सारी एप्पी फ़िज़ की खाली पड़ी बोतलें, नीचे लगा बिस्तर, सामान और बहुत कुछ अस्त-व्यस्त था.
फर्स्ट फ्लोर पर था रूम. थोड़े देर बाद हम दोनों वहां से कॉलेज के निकल गए.
रात को पा से बात करके मैंने ये डीसाइड कर लिया था कि मैं अब मनीष के साथ रहूँगा. फिर अगले दिन शाम के लगभग 5 बजे तक मैं अपना सामान ले कर
आ गया यहाँ जनक सिनेमा. जब भैया को बताया था की मैं जा रहा हूँ, देन आई डीड नॉट सी एनी हैप्पीनेस इन हीज आईज. उस रात हम दोनों रात के
लगभग 1.30  बजे तक बातें करते करते सोये. तो इस तरह मैं वहां आ गया, जहाँ मैंने दिल्ली के तीनों साल बिताये.
तीनों साल तक एक ही स्टॉप से बसें चढ़ता, उतरता.. स्ट्रेंज.. हाँ..??
  टू बी कंटिन्यूड....
 (हालांकि फोटो कुछ धुंधली और तीसरे सेमेस्टर की है, थोड़ा एडजस्ट कर लीजियेगा :D . मैं अपने फेमस एंग्री
बर्ड की टी-शर्ट में, साथ में आशीष)
:- #MJ_की_कीपैड_से
 आपके कमेंट्स सादर आमंत्रित है...

Monday, 20 June 2016

'रिकी' एट वाॅकिंग

#रिकी_बॉस
आज कल ये जनाब मोर्निंग वाक पर जाने लगे हैं. मैं हैरान हो गया इसके लैपटॉप में एक विडियो देख कर.
नेम्ड एज- The Absolute Fastest Way To Lose Belly Fat.
कभी उसी जगह पे मैंने  How To Gain Weight In 15 Days के नाम की विडियो फाइल भी देखी थी.
सो मैंने पूछ ही डाला उसके पेट की तरफ की इशारा करके- क्या हाल है अब इसके..?
बोला- बड़ा बेहाल हूँ. बस अभी उस हाल तक नहीं पहुंचना है जब मुझे शूज लेस को बाँधने के लिए, मुझे बैठना न पड़े.
बैठे हुए में, शर्ट के बीच के बटन को खोलने की जरुरत न पड़े. और मुझे अपने पैर के अंगूठे का व्यू मिलता रहे.
"बस कर भई, रुलाएगा क्या..? और अब तू तो दौड़ने भी जा रहा है ना..?"
"हाँ, जा तो रहा हूँ.."
"तो.. कैसा चल रहा है.. वहां.., एनीथिंग स्पेशल..?"
"ह्म्म्म... एक बुजुर्ग हैं, लगभग 80 के ऊपर तो जरुर होंगे.. उनको रोज़ देखता हूँ, साइकिल चलाया करते हैं सुबह- सुबह.
मैं जहाँ बैठ के योगा करता हूँ, वो भी वहीँ बैठा करते हैं. लेकिन मैं यूज़अली उनके बाद बैठता हूँ.
यानि जब मैं वहां पहुँचता हूँ, तब वो उठ के वहां से चल देता हैं.."
"हम्म..."
"एक रोज़ मैं उनके आने से पहले ही वहां बैठ कर कपालभाति (व्हाटेवर इट इज..) कर रहा था.या तो मैं जल्दी पहुँच गया था, या उस दिन
वो लेट हो गए थे. उन्होंने अपनी साइकिल रोकी, उतरे और अपनी सीट की तरफ नज़र दौड़ाई. मुझे देख उनके पैर जैसे रुक गए.
और वो वहीँ खड़े रहे. मैंने उनको वहां खड़ा देख बांकी बचे जगह पे हाथ मार के इशारा ऐसे किया जैसे कोई छोटे बच्चे को बैठने के लिए बुलाता हो.
अपनी कमर पे हाथ रखते हुए, वो मेरी और बढ़ने लगे.
हाइट करीब साढ़े चार फीट से कुछ जायदा होगी, दाहिने हाथ में गमले का टैटू बनवाया था. बांये हाथ में एक घड़ी पहनी थी.
वो आये और मेरे बगल में खाली पड़ी सीट पर बैठ गए. और इधर मैं कपालभाति  व्यस्त रहा.
" ये दाहिने पैर में ठुड्डी के नीचे ऑपरेशन कराया हैं मैंने अपोलो दिल्ली में." , उन्होंने ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा.
आई नोडेड.
"3 महीना रहा मैं वहां. दामाद वहां कैप्टेन (आर्मी)  हैं. वहीँ बहु ने भी बड़ी सेवा करी.."
आई नोडेड.
"यहीं, खटीमा में रतूड़ी में दिखाया था, उसने ऑपरेशन किया, साले! ने ठग लिया. कुछ आराम तो हुआ नहीं!"
आई नोडेड, अगेन.
" ओपोलो में, वहां एक डॉक्टर ने मुझे सुबह साइकिल चलाने या पैदल चलने को कहा. बिहार का था वो.. पांडेय!!
बहुत अच्छा था वो."
मैं मुस्कराया. "अभी कैसी हालत है, आपकी..", मैंने पूछा.
"हाँ, आराम तो है.."
कह के चुप हो गए, फिर वो चल दिए, उठ के वहां से.
**डे आफ्टर नेक्स्ट डे**
"अरे आज आप पैदल ही चल रहे है..? साइकिल को क्या हुआ..?", मैंने पूछा.
"ये दामाद लाया है, दिल्ली से..", बड़ा लम्बा से कुछ सॉक्स जैसा था, उसको दिखाते हुए उन्होंने कहा.
"अच्छा.. तो इसमें कुछ आराम है.. कुछ..?", मैंने पूछा.
"हाँ, आराम  हो जाएगा.. , इसका ऑपरेशन कराया था...", फिर वो वही पुराना अपोलो हॉस्पिटल वाली कहानी बताने लगे.
"अभी इसी बीच 5.30 लाख का हेल्थ इंश्योरंस तुड़वाया के वहां ऑपरेशन करवाया.."
आई नोडेड.
कुछ देर बैठे और वो चल दिए.
##
"फिर..?". मैंने कहा.
"मतलब देख न, आप तब नहीं मरते हैं, जब आप मरना चाहते हैं. बल्कि अब तब मरते हैं जब आप जीना छोड़ देते हैं.", रिकी सेज.
इसलिए लिव लाइक, देयर इज नो टुमारो!!
HAPPY INTERNATIONAL YOGA DAY!

Saturday, 18 June 2016

मन्टुनमा रिव्यु (Mantunma's Review) by Manjesh Jha

# मन्टुनमा_रिव्यु
हालांकि मैं खुद को इस काबिल नहीं मानता की मैं इसको रिव्यु दे सकू! लेकिन फिर भी ये बताना तो जरुरी है.
की कैसा रहा मन्टुनमा के साथ मेरा 96 पन्नों का सफ़र!
"क्योंकि उसके नाम के पीछे 'मा' लगा है, इसीलिए वो गँवार है अनपढ़ है. जिस दिन ये हट गया, ये गँवार, जाहिल और अनपढ़ का तमगा भी हट जाएगा"
*
मेरे हिसाब से ये किताब उनको बहुत ज्यादा पसंद आएगी जो लगभग 15-20 सालों से अपने घर (यानी बिहार जो की इसकी पृष्ठभूमि भी है) से दूर रह
रहे हैं, और जिनके अन्दर उनकी जन्मभूमि आज भी बसती है. और वो भी जो बिहार की बोली में छिपी मासूमियत को मिस करते है.
हालाँकि शयाद ये किताब और हमारे नायक मन्टुनमा को ठीक से समझने में उनको थोड़ी परेशानी तो जरुर होगी, जो इस पृष्ठभूमि से सम्बन्ध
नहीं रखते. उनको ये शब्द "चभक्का लगाना", "अलबला जाना" या "ढ़उसा" शायद कुछ अटपटे लगें. लेकिन यकीं मानिए इनकी खूबसूरती
इन्हीं शब्दों के ही साथ है.
मन्टुनमा का लघु परिचय मेरे शब्दों में ( हालांकि शब्द अब भी उनके ही है )
मन्टुनमा दिवाली के बाद वाले दिन में दिवाली मनाता है. धान के सीजन में अलसाए हुए खेतों की मेड़ पर बैठकर नबका चूड़ा और शक्कर का आनंद
लेता है. जमीन को, उ माय मानता है, और माय को भी छोड़कर जाता है कोई भला, भले ही वो यहाँ (गाँव में) दो जून की रोटी का मुश्किल से जुगाड़ कर पाए.
भोज करने के लिए वो तीन-चार कोश तो वो पैदल ही चल लेता है. मेला उसको बहुत पसंद है, काहे की मेला में उसने दुकानदार से बात कर लिया है
कि 1 घंटा तक दुकान के सामने "10 रूपए पाव जिलेबी" चिल्लाएगा तो बदले में एक पाव जिलेबी उसको इनाम में मिलेगा.
मुट्ठी भर बुनिया ( बूंदी वाली मिठाई) के लिए वो चिल्ला चिल्ला कर भगत सिंह -अमर रहे, चाचा नेहरु -अमर रहे के नारे लगा सकता है.
मन्टुनमा के घर में बिजली नहीं है, हाँ रोशनी का काम सड़क की स्ट्रीट लाइट से चल जाता है, जो उनके घर का भेपर लैंप,टेबल लैंप, झूमर और
मेन लाइट का काम करता है. मन्टुनमा की नज़रें समाज के साथ राजनीति में भी गड़ी रहती है.
मन्टुनमा के पास साइकिल तक नहीं है, फिर भी बिसकरमा डे बड़े चाव से मनाता है.
हालाँकि मैं पहले से ही 'मन्टुनमा' का दीवाना हूँ, लेकिन ये किताब उन सारी कहानियों का संग्रह है. शायद बहुत बार पढने वाला हूँ.
और क्या पता शायद ये जरिया भी बन जाए, हम परदेशियों के लिए अपने जन्मभूमि से जुड़े रहने का.
*p.s- किताब शुरू करने के दौरान जो आपके चहरे पर एक मुस्कान तैर जाती है, ये किताब उस मुस्कान की अंत तक बरक़रार रखने में कामयाब होती है!
कुछ जगह आप ठहाका भी मार सकते हैं.
"बहुत खूब मन्टुनमा!!"

Friday, 17 June 2016

दिल्लीफरनमा पार्ट - 2 'वेलकम टू दिल्ली' (Welcome To Delhi')

#दिल्लीफरनमा_पार्ट - 2
सो अब सीन कुछ ऐसा था कि आई वाज एक्सेप्टेड इन डी.यू.
कॉलेज 23 जुलाई से स्टार्ट होने वाले थे. काफी टाइम था बचा इधर कुछ सपनों को देखने के लिए, कुछ प्लानिंग्स के लिए.
सबसे पहले सोचा आराम से पी.जी. मैं रहूँगा. कभी कभी ख्याल आता की चाचा के साथ रह लूँगा. की तभी मुझे
किसी ने स्ज्जेस्ट किया की , ड्यूड किसी रिश्तेदार के यहाँ मत रुक, जिनकी फैमिली है..! गन्दा सीन हो सकता है.
उस वक़्त नहीं समझ आया की व्हाट कुड पोस्सिब्ली गो रॉंग..? लेकिन अब समझ आ गया कि किसी
परिवार वाले रिश्तेदार के साथ न रहने के फायदे क्या-क्या हो सकते हैं, और नुकसान भी..!!
दुसरे ख्यालों में ये भी था, कि जा कर गिटार के लेसंस लूँगा, देन आई विल बाय अ गिटार टू वनडे! वहां जा के आई विल स्टार्ट गिविंग
ट्यूशन, एक्स्ट्रा कैश मिल जायेंगे, यू नो, अपने शौक पूरे करने के लिए. हर एक सेमेस्टर में नयी
गर्लफ्रेंड बनाऊंगा. :D लड़कियों से दोस्ती कर के उनके लंच शेयर करूँगा. और सबसे फनी- "यार! यूनिवर्सिटी टॉप कर दूंगा.
फाड़ दूंगा देख लियो..!!" :D :D और हाँ, जैसा मेरा इंटरेस्ट था, म्यूजिक में. सो आई विल वर्क ऑन इट टू.. मेय बी आई विल जॉइन
सम काइंडा म्यूजिक और कल्चरल सोसाइटी इन कॉलेज..!!
धीरे-धीरे दिन पास आ रहे थे, वहां जाने के. एक नयी जिन्दगी शुरू होने वाली थी. मैं खुश तो रहता ही था, लेकिन इन
दिनों थोडा नर्वस रहता था. ओवियस्ली पहली बार घर से बाहर रहने को जा रहा था.  अब तक रहने का कोई जुगाड़ नहीं था , यही कोई 7-8
दिन रह गए होंगे. तब ख्याल आया, यार कुछ जुगाड़ करना चाहिए रहने के लिए. मैंने पा से कहा- "पा, पी.जी. वुड बी फाइन आई गेस..!!"
मैं उनको जताना चाहता था की मैं सर्वाइव कर लूँगा इवन पी.जी में भी. लेकिन मैं अन्दर से खुश था की अगर ऐसा हो गया तो अच्छा रहेगा
काफी टाइम बच जाएगा पढने के लिए. हंसिये मत, स्टार्टिंग का जोश था वो, हाँ तो उस समय पढने का ही ख्याल आया, गौर कीजियेगा
बचे हुए टाइम में..!! :p लेकिन नहीं, मेरी दाल नहीं गली. पा ने अपना फैसला सुनाया- "तू खुद खाना बना के रहेगा..!! क्या दिक्कत है
उसमें..? खुद बनाएगा, अच्छा ही बनाएगा. और अगर अच्छा बनाएगा तो अच्छा ही खायेगा. तू उधर अच्छे से रहेगा-खायेगा, तो यहाँ हम लोग चैन
से सो सकेंगे. नहीं तो हमेशा चिंता लगे रहेगी. एक तो तेरा शरीर ऐसा है कि..."
मैं चुप था, बस कह दिया.. ठीक है..!! नहीं आई वाज'न्ट हैप्पी एट देट मोमेंट. बट इफ यू आस्क मी नाउ, आई वुड टेल- देट वाज ग्रेट स्टेप!
मैंने अपने बड़े भैया को कॉल किया, जैसा की वो मुझसे पहले दिल्ली में रह चुके थे, तो उनके कांटेक्ट में होंगे कई बन्दे!
यू नो, हु कैन फाइंड मी अ प्लेस टू स्टे! मैंने बता दिया की मेरा कॉलेज धौलाकुआं में है, सो इट वुड बी ग्रेट इफ यू फाइंड सम प्लेस नियर बाय.
दो-तीन के बाद उनको कॉल आता है कि, ड्यूड! देयर इज प्लेस 'नारायणा' , व्हिच इज आल्सो नियर टू योर कॉलेज. एक ही बंदा है वो, हु इज वर्किंग टू.
और हाँ  वो भी बिहार का है. आई गेस! इट विल बी फाइन..विल नॉट इट..?
ही गेव मी हिज कांटेक्ट नंबर. पा न उससे मैथली (भाषा) में ही बात करना ठीक समझा. सब ठीक ही चल रहा था. सो अब रुक्सत का पल आ गया था.
रात को ही मैं बस से निकला. पा ही आये थे, स्टैंड तक छोड़ने. काफी कुछ था उनकी आँखों में. उम्मीदें, आशाएं, गर्व, प्यार और चिंता भी. मैं शायद रो देता.
लेकिन, नहीं रोया मैं..!! लड़का ही था. जैसा हमें बचपन में कहा जाता है- 'लड़के नहीं रोते हैं, बच्चे.!!' कुछ ऐसा ही हुआ.
मैं उनको कहना चाहता था- "पा, आई विल डू माय बेस्ट". लेकिन वो भी अनकहा रह गया. हिम्मत नहीं कर सका.
बस सुबह आनंद विहार पहुँच गयी. मैं उतरा, मेट्रो स्टेशन गया. नहीं, इट वाजन्ट माय फर्स्ट राइड. आई हेड डन बिफोर. ब्लू लाइन के ही
शादीपुर मेट्रो का टोकन लिया. वहां कुछ यही 40 मिनट बाद मैं उतर गया. एज आई वाज इंस्ट्रकटेड बाय माय अपकमिंग रूम पार्टनर.
फिर भी श्योर होने के लिए, आई आस्कड द डायरेक्शन टू अ गर्ल. देयर वाज डीटीसी बस स्टैंड. वहां पहुंचा. शायद 753 रूट की बस थी.
मैंने पूछा- अंकल! पायल सिनेमा जायेगी..? एंड ही नोडेड. कुछ सेकंड बाद मैंने खुद को और मेरे पिठ्ठू बैग, एक छोटा ब्रीफ़केस, (जिसमें
मोस्टली किताबें रखी थी) , और एक बैग (जिसमें बिस्तर और कपड़े थे ) को अन्दर पाया.
"कितने का टिकट लगेगा..?", मैंने पूछा.
"5 का", आई वाज सप्राइज्ड विथ हिज आंसर. सोचा- बस! 5 रु..??
( देट वाज माय फर्स्ट टाइम टू इन डीटीसी )
उसने मेरी और टिकट बढ़ाया.
"अंकल! बता दीजियेगा जब स्टॉप आ जाए.." कह कर मैं सामान को गेट पर से हटाने लगा.
अभी मुझे बस में 5 मिनट भी नहीं हुए थे, जब उसी ने कहा-
"पायल सिनेमा वाले उतर जाओ, स्टॉप आ गया भई!!"
मैं अपना तीनों सामान ले कर उतरा.  वहां रिक्शे वाले से गुरुद्वारा के बारे में पूछा..
वो कुछ बता तो रहा था. लेकिन मैंने सोचा आई शुड कॉल हीम.
तो भैया जो की मेरे अपकमिंग रूम मेट होने वाले थे, शिवम नाम था उनका.. उन्होंने कहा की फ़ोन रिक्शे वाले को दो, मैं उसे समझा देता हूँ.
तो फिर एक मिनट बाद मैं रास्ते में था. और यहाँ किसी अजनबी की तरह अपने चारों ओर देख रहा था. चीजों को याद रखने की कोशिश कर रहा था.
स्टॉप से पीछे की ओर पहला लेफ्ट, देन एक टंकी के पास से लेफ्ट.. देन..
मैं ये भी सोच रहा था, कि कैसे होंगे वो शिवम भैया! कैसा रहेगा मेरा सफ़र..??
ज्यादा दूर तो नहीं था शायद! एक बोर्ड के पास एक आदमी को खड़ा देखा मैंने, बोर्ड के ऊपर किसी गाँव का नाम था.
"लो भैया, हम आ गए, जहाँ फ़ोन पे उन्होंने छोड़ने को कहा.."
टी-शर्ट और शॉर्ट्स में, चेहरे पर बिहार वाली मासूमियत लिए उस आदमी को मैंने अपनी ओर बढ़ते देखा.
"शिवम भैया...??", मैंने पूछा.
"हाँ."
"नमस्ते!" देन वी शूक्ड आवर हैंड्स टू. मैंने रिक्शे वाले को 30रु दिए. और वो मुड़ गया वापस.
गली ज्यादा चौड़ी नहीं थी, उन्होंने मेरे ब्रीफ़केस को अपने हाथों में लिए. अच्छा लगा मुझे!
हम बढ़ते गए, और गलियाँ और पतली होती गयी. ज्यादा दूर नहीं था, वहां से. फिर कुछ देर बाद मैं खुद को एक बड़ी से 6 स्टोरी बिल्डिंग को देखते
हुए पाया.
"कौन सा फ्लोर है भैया अपना ..?" मैंने पुछा.
"4th" , उन्होंने कहा.
रास्ते में बातें शुरू हो गयी थी हमारे बीच. सफ़र कैसा रहा, उन्होंने पुछा था मुझसे.
48 सीढियां चढ़ने के बाद, हम एक लॉक्ड डोर के सामने रुक गए.
"लो, आ गया." उन्होंने कहा. हम दोनों रूम के अन्दर घुसे.
एक सिंगल बेड, जिसमें दो बन्दे सो सकते थे. बेड के आगे छोटा सा टीवी. टीवी के पास छोटा सा म्यूजिक सिस्टम. और हाँ, वहां भी फोग्ग चल रहा था.
:D दो-तीन फोग्ग के कैन थे. एक बेड के बाद उतने ही साइज़ का बेड लग सकता था, इतनी स्पेस बची थी. आगे छोटा सा किचन था.
जिसमें दो आदमी खड़े होकर आराम से खाना बना सकते थे. रूम बैचलर के हिसाब से काफी साफ़ था. चीज़ें लगभग अपनी जगह पर थी.
सबसे कूल चीज़ वहां की बालकनी थी. हाइट काफी ठीक थी. उसको लोहे के रॉड से फेंस किया गया था, जिस्पें काला पेंट चढ़ा था.
वहां एक स्टूल लगा था. जिसपे बैठ के घूमा जा सकता था. यानी वो घूमने वाली स्टूल था, बिना व्हील्स के. पास में ही वहां एक स्कूल भी था.
जिसका ग्राउंड काफी छोटा था. पास में ही वाशिंग मशीन था. हालत से वो ख़राब ही लग रहा था. किचन में कोने पे एक सिंक लगा था.
दो प्लेटफार्म वाला गैस था. और शायद सिलेंडर वो छोटा वाला ही यूज़ कर रहे थे.
शिवाजी (डी.यू.) से ही उन्होंने अपना ग्रेजुएशन किया था, कॉमर्स से. किसी प्राइवेट बैंक में मेनेजर थे.
अच्छा लगा मुझे अपना नया घर. वो 10 के आसपास ऑफिस को निकल गए. इधर मैंने ब्रेकफास्ट कर सबको फ़ोन कर दिया.
मम्मी,पा और दादा जी से फ़ोन पे बात कर के मैंने टीवी ऑन किया. लेकिन नींद आ रही थी, तो मुझे सोने जाना पड़ा.
लगभग शाम को मै 4-5 जगा. उठ के हाथ मैं पानी की बोटल लेकर मैं उस स्टूल पे जा बैठा. उस स्कूल में कराटे की क्लास्सेज चल
रही थी. मुझे अच्छा लग रहा था, वहां बैठना. एक शान्ति थी उस पल में. रात को भैया आये. वी कुक्ड आवर डिनर.
उन्होंने मुझसे पुछा- खाना बना लेते हो, नीकू..?
हाँ, इसी नाम से बुलाने लगे मुझे! अच्छा लग रहा था उनसे ये नाम सुनना..
"नहीं भैया, ज्यादा कुछ नहीं. खिचड़ी बना लेता हूँ, चाय बना लेता हूँ, बनी रोटी पे घी लगा लेता हूँ तवे पर और हाँ मैग्गी भी."
वो हँस पड़े. "और रोटी-चावल..?"
"चावल तो बना लेता हूँ, लेकिन रोटी बनानी नहीं आती."
"चल कोई न, सीखा दूंगा मैं."
"चाय पीता है..?"
"नहीं भैया, इन्फेक्ट घर पर कोई नहीं पीता है"
"अच्छा...?"
"हाँ.."
हमने खाना लगाया. भैया ने टीवी ऑन किया. और स्टार प्लस लगाया..
कोई डेली सोप आ रहा था. नाम याद नहीं मुझे.
मुझे हंसी आ रही थी.. आखिर पहला बंदा जो मिला था, डेली सोप देखने वाला.
आई मीन नया होता है कुछ.. यहाँ के सीरियल्स में..? वही लव अफेयर, फिर शादी, फिर सास बहु, फिर लीड एक्टर का याद्दास्त जाना,
फिर पुनर्जन्म, फिर प्लास्टिक सर्जरी, फिर उनके बच्चे, और फिर वही कहानी... :D :D
और फिर हम सो गए. डे आफ्टर नेक्स्ट डे, मेरा कॉलेज स्टार्ट होने वाला था.. आई वाज एक्साइटेड एंड लिटिल नर्वस टू..
टू बी कंटिन्यूड......
 (हालांकि इसमें फोटो पहले सेमेस्टर की है, लेकिन इसमें मैं नहीं शामिल हूँ. लेफ्ट से ओम, रिया और विकाश, मेरे क्लासमेटस)
 आपके कमेंट्स सादर आमंत्रित है....
:- #MJ_की_कीपैड_से

Wednesday, 15 June 2016

दिल्लीफरनमा पार्ट- 1 'एक्सेप्टेड! हेल येह!!' ('Accepted! Hell Yeah!!')

#दिल्लीफरनमा पार्ट- 1
जैसा की नाम कहता है- दिल्ली का सफरनामा.
तो मैं इस पोस्ट में अपने "सफ़र दिल्ली का" आपके साथ बांटने जा रहा हूँ.
शायद इसके बाद भी इसकी अन्य श्रृंखला आ सकती है. क्यूंकि एक ही पोस्ट में 3 साल को संभाल लेना
मेरे बस की न है, और शायद आपके लिए भी उबाऊ हो जाए.
मेरे एक जान पहचान के भैया थे- इशू नाम था उनका. मतलब अब भी है. लेकिन बहुत समय से उनके संपर्क में नहीं हूँ.
उन्होंने लखनऊ से बी.टेक किया था, तब मैं शायद 11th में रहा हूँगा. जब उन्होंने बताया कि मौका मिले तो, किसी मेट्रो सिटी में जा कर
पढना. तुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. यही बात मेरे मन में घर कर गयी.
तो जब पापा ने पूछा की आगे क्या करना चाहते हो..?? 12th के एग्जाम से पहले ही. तो मैंने यही बात पा से कही. पा ने मुझसे मजाक
में ही पुछा - "मेट्रो सिटी का मतलब क्या होता है, जिसमें मेट्रो ट्रेन चलती हैं क्या वो..?"
मैं हल्का सा मुस्कुराया. "नहीं, जिसकी पापुलेशन 10 लाख से ज्यादा होती है." बदले में वो भी मुस्कुराए! मैं पास हो चूका था उनकी इस कठिन परीक्षा में.
हमारे स्कूल से ही हमारे दो सीनियर कमल पन्त और आशुतोष भट्ट दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले चुके थे. तो हम लोग भी कहीं न कहीं
सपने देखने लगे थे की, क्या पता... शायद... हमारा भी...
जैसा पढ़ा था, उसी के हिसाब से रिजल्ट भी आया. इंजिनियरिंग में मेरी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, अगर सच पूछो तो.. वो तो घर वालों के कारण
ही मैंने EEE का फॉर्म भर दिया था. रिजल्ट भी कुछ वैसा ही रहा, जैसा एग्जाम गया था. बकवास!!
आई डायल्ड नंबर ऑफ़ कमल भैया. उनको बताया मैंने अपने रिजल्ट के बारे में. एंड ही सेड ,"येह! यू विल गेट थ्रू इट." सो आई एनरोल्ड माइसेल्फ, सच कहूँ
तो ये काम भी उस कमल भैया ने ही किया था. आफ्टर आल ही वाज द मैन विथ एक्सपीरियंस. सारी फॉर्मलेटीज पूरी कर दी मैंने बांकी.
पहली कट ऑफ जब जारी हुई तो मैं चार्ली साइबर कैफ़े पहुंचा. आई चेक्ड आल एंड अगेन डायल्ड टू कमल. मैंने बताया उनको पूरा.
एंड आई आस्कड इफ आई विल गेट थ्रू!! ??
ही सेड -" हाँ भाई तुझे सबमें मिल जाएगा. जिस-जिस कोर्स के लिए तूने अप्लाई किया था."
बहुत खुश था मैं. फाइनली आई वाज एक्सेप्टेड!!
"तो मैं कब निकलू एडमिशन के लिए..??, मैंने तभी पूछ लिया.
"आज ही निकल ले... लेकिन तू वहां रुकेगा कहाँ पे.."
"चाचा रहते हैं,  गाजियाबाद में... वहां से कैसे पहुंचना है..?"
"देख.. तुझे आनंद विहार से 543 नंबर की बस मिलेगी, ध्यान से देख लेना बस का नंबर.."
"ठीक है.. 543!!"
"उससे कहना धौलाकुआं की टिकट देने को.."
"क.. कितने का टिकट बनेगा..और कितना दूर है वो... धौलाकुआं..?"
"ज्यादा नहीं.. बस 25रु का टिकट मिलेगा, टिकट कंडक्टर के पास ही बैठ जाना.
उससे कह देना आत्माराम कॉलेज उतरना है, वो उतर देगा. और लगभग डेढ़-दो घंटे तो लग ही जायेंगे"
"ठीक है, भैया, आप कब जा रहे हो दिल्ली..?" आई वांटेड टू नो इफ ही कैन हेल्प मी अहेड, ड्यूरिंग दिस प्रोसेस..
"अभी तो आया ही हूँ भाई, तू चिंता न कर, मैं फ़ोन पे अवेलेबल रहूँगा." शायद मेरी चिंता को भांप गए थे.
मैंने पा को बताया सब कुछ.!! उनके चेहरे पे  थोड़े रिलैक्स्ड वाले एक्सप्रेशन आ गए थे.
जब मैं क्लास 5th में था, तभी से मैंने अकेले जर्नी करना शुरू कर दिया था. पा वांटेड मी टू स्टार्ट टेकिंग रेस्पोंसबिलिटी.
ज्यादा दूर तक तो नहीं, लेकिन हाँ, रुद्रपुर (जो कि लगभग 70km कि दूरी पर था) तक तो आना जाना शुरू हो गया था.
और  जब मैं पहली बार मैंने ऑलमोस्ट 1000km ट्रेवल किया, तब मैं 9th स्टैण्डर्ड में था.
इसीलिए पा के साथ एडमिशन के लिए जाने का सवाल तो बनता ही नहीं था. उसी रात को ही मैं दिल्ली के लिए बस से निकला.
25-जून-2012 को पहली कटऑफ रिलीज किया गया था, और 26 को मैं दिल्ली पहुँच चूका था. चाचा-चाची घर पर
नहीं थे. घर पर बस मेरे चचेरे भाई -बहन मौजूद थे. सुबह लगभग 9 बजे मैं आनंदविहार ISBT पहुँच गया था.
सबसे पहली जिस बस पर मैं चढ़ा, इट वाज 534 टू महरौली. मैंने जल्दी मैं उसको 543 समझ कर अन्दर घुस गया. लेकिन बाद मैं जब पता चला
तो मैं नीचे उतर कर उसको दूंढ़ने में लग गया. ज्यादा मसक्कत नहीं करनी पड़ी. कंडक्टर के बगल वाली सीट में ही बैठा.
वैसा ही किया जैसा मुझे बताया गया था. रस्ते भर में, मैं उसको याद दिलाता रहा की , भाई मुझे वहां उतरवा देना.
यही कोई 3-4 पूछ डाला- भैया, अब कितना दूर रहता है..? रस्ते में AIIMS भी दिखा था. सब कुछ पहली बार ही था.
ट्रैफिक ने उतना परेशान नहीं किया. लेकिन मुझे फिर भी सफ़र बड़ा लम्बा लग रहा था. फाइनली लगभग 11.15 बजे के आसपास
जब कंडक्टर ने कहा, ले भाई आ गया तेरा स्टॉप..!!. थोडा नर्वस हो गया था, सुन के! मैंने उतरते हुए उसको एक बार मुड़ के देखा, बड़ा खुश नज़र आ रहा था..  शायद परेशान करके रख दिया होगा..
कॉलेज का 'गेट' वाजन्ट टू इम्प्रेस्सिव. आई स्टील रेमेम्बेर दोज फेंसज/बाउंड्री. लेकिन फिर भी अच्छा लगा रहा था.
अन्दर पहुंचा, काफी चहल-पहल थी. मेन कॉरिडोर का शटर लगा था. बाहर गार्ड्स लगे थे. वहां से सिर्फ स्टूडेंट्स को अन्दर जाने की इज्ज़ाज़त थी.
मैंने पता किया, हमारे कोर्स का रूम कौन सा था..? एंड दे पॉइंटेड टुवर्ड्स रूम नंबर 8. ज्यादा क्राउड तो नहीं था.फिर भी यही कोई 20-35
बच्चे बैठे होंगे. मैं अन्दर गया. पता किया क्या क्या प्रोसीजर है, फॉर्म भरने के.. आई वाज रियली स्प्राइज्ड व्हेन देयर अ ए टीचर सेड टू मी..
"शिक्षा भारती से इंटर किया है तुमने..??"
मैंने हाँ में जवाब दिया. और पुछा की आप कैसे जानते हैं..??
"पुराने कुछ बच्चे है, वहीँ से", मैंने सोचा ये पक्का कमल या आशुतोष की बात कर रहे होंगे.
"ओह..",  (बाद में लैब के दौरान, मैंने बाद में रियलाइज किया कि वो फिजिक्स लैब के टीचर थे.)
देन ही आस्कड लूकिंग एट माय मार्कशीट..
"यार, प्रैक्टिकल में तो तुम्हें पूरे 30 मिले हैं, लेकिन थ्योरी में 63 ही बस..?" , वो फिजिक्स के नंबरों की बात कर रहे थे.
फिर वो समय ध्यान मैं आने लगा.. जब मैं क्लास 12 में फिजिक्स के प्रैक्टिकल में एग्जामिनर के सामने खड़ा था.. और वो सवाल पे सवाल पूछ जा रहे थे..
की तभी पालिवाल सर ने उनको कहा- "नर्वसाओ मत यार..! क्लास में तो तुम अच्छे से सारे आंसर बताते हो.. "
इसपें मैं कुछ और फ़्लैश बेक में चला गया, जब कल्याण सर ने कहा था..
"कि डियर ये मैटर नहीं करता की आपका प्रैक्टिकल (वाय-वा) कैसा जाएगा, बल्कि वहां पे, ये मायने रखता की आपका सब्जेक्ट टीचर ये कह दे कि
'भई! क्लास में तो तुम अच्छे हो..' , बस आधे से ज्यादा आपका काम वहीँ हो जाता है.
"ठीक है!! अब जल्दी से इसे भर के सबमिट करो..", 
"ओके!", मैं उधर ख्यालों से बाहर आया, और मुस्कुरा कर कहा.
मिड रोअ की फोर्थ सीट पे मैं जा बैठा. और शुरू कर दिया फॉर्म को भरना. काफी दौड़-भाग हुई, कॉलेज से सत्यनिकेतन , सत्यनिकेतन से फिर कॉलेज.
रूम से ऑफिस, तो कभी रूम से कंप्यूटर लैब. दो डाक्यूमेंट्स अब भी अधूरे थे. उसके लिए उन्होंने एप्लीकेशन लिखवाया. डेएम इट!
मैं वही क्लास में बैठा था, की जब वो आई कॉलेज की मेरी पहली होने वाली दोस्त. उसको कुछ प्रॉब्लम हो रही थी, फॉर्म भरने में.
तो मैंने उसे बताया. आई हेल्पड हर. एंड शी सेड थैंक यू टू..!! श्वेता वाजपेयी नाम था उसका. शी वाज इन इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री डिपार्टमेंट
और मैं तो कंप्यूटर साइंस का बंदा था. एनीवे.. नीचे कैंटीन के पास बैडमिंटन कोर्ट पे टेंट लगाया गया था. काफी भीड़ थी वहां. कॉज वहीं
पे पेमेंट एंड अदर फोर्मैलिटीज होनी थी. मेरा काम उस एक दिन में नहीं हो पाया. करीब 3.30 पे मैं वहां से निकला.
अब मुझे इसके बाद बस पेमेंट करना था. और ऑफिस 10 बजे सुबह खुलता है, पता लगा लिया था मैंने.
काफी थक गया था.. इतनी भाग-दौड़ के बाद. शाम को घर पहुँच के मुझे इत्ती ख़ुशी मिली, मानो जैसे मुझे स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर की ट्राफी मिलने
वाली हो.
अगले दिन सुबह ही मैं 8.30 बजे निकल पड़ा कॉलेज पे. वही बस . वही रूट. और कमाल तो देखिये वही उतरा मैं. :D
मैंन फॉर्म ले कर मैं फीस सबमिशन की लाइन में लग गया. और लगभग 1 घंटे बाद , आई वाज डन.. सो रीलिव्ड....
1.30 तक मैं घर पहुँच गया. यानी पहले कटऑफ के दुसरे दिन ही मैंने एडमिशन प्रोसीजर पूरी कर ली, लेकिन फिर भी मुझे 4th
रोल नंबर मिला. यानी रोल न. - 104. और ये तो मुझे बाद में पता चला की मुझसे पहले 3 बन्दे एडमिशन करा चुके थे.
इतनी जल्दी एडमिशन करवाने के लिए तीनों साल दोस्त चिढाते रहे.
"साले! एडमिशन करवाने की इत्ती जल्दी क्या थी..? पहले दिन ही आके बैठ गया था क्या...??"
   टू बी कंटिन्यूड....
(हालांकि तस्वीर दुसरे सेमेस्टर की है.. लेफ्ट से  विवेक, मैं, मनीष और संदीप)
आपके कमेंट्स सादर आमंत्रित है...
:- #MJ_की_कीपैड_से

Monday, 6 June 2016

गाम गोलमा- Village Golma (About This Blog)

#गाम_गोलमा
नाउ दिस इज गोना बी माय न्यू ब्लॉग'स नेम.
इससे पहले जो था "डायरी ऑफ़ मंजेश झा", वाज नॉट क्वाइट इंट्रेस्टिंग, वाज इट..?
इसीलिए मैंने सोचा कुछ अलग होना चाहिए, कुछ क्रिएटिव. सो आई केम अप विथ दिस.
शायद आप इस बात से परिचित हो की मेरे गाँव का नाम गोलमा है.
अगर आप यूजअली वहां नहीं रहते हें, कभी एक आध बार दिख जाते हैं.
तो वहां के बुजुर्ग को अक्सर ये जानने की इक्छा सताती है,
की ये भई! नया आदमी कौन दिख रहा है उनके गाँव में..?
तो वो पूछ ही लेते हैं..??
कुन "गाम" भेलअ तोहर..?? यानी "'आप कौन से गाँव से है..??"
एंड माय आंसर यूज टू बी लाइक .." गोलमा"
सो व्हाई नॉट खटीमा..??
इफ यू आस्क मी डू आई लव खटीमा..?
आई डोंट नो, आई गेस , आई वोंट बी एबल टू आंसर इट, इन अ वर्ड.. लाइक "यस" और "नो"..
येस! आई लव बीइंग हेयर! इट्स ऑलमोस्ट सेवेनटीन इयर्स वी स्पेंट हेयर. आई नो ऑलमोस्ट एवेरी स्ट्रीट, एवेरी लेन
एंड एवरी रोड ऑफ़ इट..
यहीं से तो मैंने पढना सीखा. दोस्ती- यारी सब यहीं पर तो हैं. यहीं पे मुझे अपना पहला लव लैटर मिला.
पहली रिलेशनशिप , इत्ते सारे क्रश एंड आल..
सब कुछ यहीं पे तो किया. वो खिंडा की स्पेशल चोवमिन हो या राम गुलाम के समोशे. वो पार्क के झूले हो
या वहां पे बोट राइडिंग.वो दशहरा सब कुछ.
लेकिन एक बात है न, की आप जिसके पास नहीं रहते, आप को उसकी कमी खलती है.
तो ऐसा ही कुछ है, मेरा, मेरे गाँव से. आई लव बीइंग देयर.
आखिर आई वाज बोर्न देयर. शायद इसीलिए!! एक जुड़ाव लगता है मुझे, गाँव की मिटटी से.
वहां के खेतों से,हरियाली से. मंदिरों से, वहां के राश्तों से.
देट इज व्हाई आई थॉट इट शुड बी "गोलमा" इंस्टेड ऑफ़ "खटीमा."
सो नाउ यू गोना और यू हैवे टू सर्च दिस..
www.gaamgolma.blogspot.com

लड़की का लाइन देना

#लड़की_का_लाइन_देना
#व्यंग्य #मजाक
भाई साब ने फ़ोन उठाया! हमारे फिजिक्स के टीचर की मिमिक्री करते हुए मैंने पुछा-
"क्या चल रहा है.?"
वो तपाक से बोल पड़े- "ट्रेन चल रहा है".
उनके जवाब से मैं थोड़ा संभाला, मुझे लगा वो कहेंगे- "फोग्ग चल रहा है"
हालांकि मैं उनको तब भी बताना चाहता था, की भैया ट्रेन चल "रही है". लेकिन मैंने भी न ज्यादा
सीरियस होते हुए उनके मजाक को मजाक में ही लिया.
पुछा, "कहाँ जा रहे हैं अभी ट्रेन से..?"
बोले- "दिल्ली अब दूर नहीं, और साउथ एक्स वहां से..!!"
अच्छा! ट्रेन का नाम सुनते ही ख्याल आया, "ट्रेन में मिली" टाइटल से एक कहानी पढ़ी थी मैंने,
तो पूछ डाला..
"डीड यू गेट एनी नाईस कंपनी/गर्ल..??"
ही सेड- "यप!"
"इज शी ब्यूटीफुल..?"
हाउ यू नो देट इज, "शी"....? (शी पे ज्यादा जोर देते हुए कहा)
मैं हंसा. "बस ऐसे ही. आई गेस्ड!"
"टेल मी, इज शी ब्यूटीफुल एनफ फॉर यू..?" (मैंने दोबारा पूछा)
"आई विल टेल यू ऑल, लेटर. वी आर नॉट टॉकिंग ऑन दिस टॉपिक राईट नाउ."
भई, जब आप सेकंड ऐ.सी. में बैठे हो, तो हिंदी से तो दूर-दूर तक नाता नहीं रहता है. कुछ तो क्लास शो करना पड़ता है न!,
और फिर जब सामने लड़की बैठी हो, फिर तो बनता है इंग्लिश में बात करना.
"भैया प्लीज बताइए न, आई रियली वाना नो.."
थोड़ा फस्ट्रेटड होते हुए उन्होंने धीरे से कहा," फर्स्टली, योर फर्स्ट क्वेश्चन वाज रॉंग.."
आई ट्राइड टू रेमेम्बेर. व्हाट वाज द फर्स्ट क्वेश्चन.
"सो, शी इज नॉट गर्ल..??"
"आहां.."
"ओकीज!!! सो शी इज इन मिड, लाइक 40-50+..?"
"नोप!"
"OMG! यू मीन शी इज एवेरी मेन'स फेंटेसी...??"
आई वेटेड फॉर हिज आंसर
आफ्टर व्हाइल, ब्रेकिंग हीज पॉज ही सेड..
"नाउ! यू आर टॉकिंग"
"यू आर सो लकी B!, यू मेंट शी इज न्यूली मैरिड एंड इन लेट ट्वेन्टीज..??
"देट्स राईट.."
आई वाज रियली एक्साइटेड, यू नो व्हाट. इट्स एवेरी मेंस फेंटेसी टू बी विथ वुमेन हु इज लिटिल ओल्डर देन यू.
"तो.. लाइन दे रही है क्या आपको..?", आई आस्कड.
वो हँसे. "रिकी, आई विल टेल यू लेटर..एवरीथिंग.. ईच डिटेल्स.."
"नहीं, मुझे अभी जानना है."
"ह्म्म्म..." उन्होंने कहा.
"ओह ग्रेट..!! नाउ रिपीट आफ्टर मी, सो शी कैन हियर इट.."
"व्हाट..??"
"हाँ, वो लाइन दे रही है..!!", आई सेड एंड लाफ्ड आउट लाउड.
"पागल है क्या..?" , ही ऑलमोस्ट फ्रिक्ड आउट.
"ड्यूड, रिपीट आफ्टर मी, ट्रस्ट मी इट विल बी फन"
उनके हँसने की आवाज़ मैं सुन रहा था..
वो कुछ कहते इससे पहले ही कॉल डिसकनेक्ट हो गया.
कॉल ड्राप! और मेय बी नेटवर्क इशू..
मैं सोचने लगा, "यार! ये पता कैसे चलता है, की लड़की लाइन दे रही है..?"
मुझे तो कभी किसी ने लाइन नहीं दिया अब तक..
फिर याद आने लगा.. वो पुरानी बातें.. जब...
क्लास में हर वक़्त तो मालिनी मुझे देखा करती थी..
अर्चना, तो देख के सीटी भी मारा करती थी..
राधा, पता नहीं हमेशा देख के शर्मा क्यू जाती थी..
सुलोचना, तो कभी कभी हँस हँस के मजाक भी कर लिया करती थी..
सुनैना और आरती तो देख के एक आँख बंद कर लेती थी.. ऐसे..ऐसे..
चांदनी, पता नहीं क्यू चलते चलते मेरे हाथ में अपना हाथ टच कर लेती थी..
भारती, पता नहीं क्यू अपने हाथों को अपने होठों के सामने ला कर फूँक मारा करती थी..
और ये सुनीता, पता नहीं क्यू  इतना चिपकती थी..
प्रियम्बदा, पता नहीं क्यू मेरे पी.जे को इतना एन्जॉय करती थी.. ,"यू आर वेरी फनी रिकी"
मेरे बगल वाली सीट पर बैठने के लिए सीमा पता नहीं क्यू सबसे लड़ती रहती थी... लड़ाकू कहीं की..!!
और ये पीछे वाली सीट पर बैठ के संयोगिता पता नहीं क्यू मेरे जूते अपने पैरों से उतरा करती थी..
रंजिता, पता नहीं क्यू अक्सर फ़ोन के बताया करती थी, "रिकी! मेरे घर पे अभी कोई नहीं है.."
रचिता, पता नहीं क्यू स्कूटी पे अपने मुझे हमेशा लिफ्ट ऑफर किया करती थी.
( दो मिनट का रास्ता नहीं था मेरे घर का, ऊपर से इतने सारे स्पीड ब्रेकर.. उफ्फ्फ...)
रागनी, पता नहीं क्यू मुझे हमेशा काफी पिलाने को जिद करती थी.. वो भी CCD में..
(A lot can happen, over a cup of coffee)
मेरे आईसक्रीम से आधा हिस्सा तो ऐश्वर्या ही मांग कर ही खा लेती थी... भूक्खड़ कहीं की..
और ये स्वस्तिका को पता नही क्या होता था, अक्सर अपने दोनों होठों को एक दुसरे पर चढ़ा कर देखा करती थी..
सबसे वीयर्ड! ये अवंतिका, पता नहीं क्यू हमेशा "खा जाऊं तेरे को, खा जाऊं तेरे को" कहा करती थी..
(मैं कोई बटर स्कॉच फ्लेवर की आइसक्रीम था क्या..!! हाँ नि तो..)
और ये रजनी, पता नहीं क्यू हमेशा रुमाल ला के दिया करती थी..
(मेरे पास था अपना.. फिर भी..!!)
और ये अर्ची, राहुल से चिपक के मुझे क्यू देखा करती थी..
पता नहीं क्यू,अनुखी, देख के अजीब सी आवाजें निकाला करती थी..
लेकिन मेरा दिल तो उसको हमेशा देखा करता था.. वो स्वरागिनी थी न.. हाँ..वही..
उसने भी कभी लाइन ही नही दिया..
छे: ये जीना भी कोई जीना है, एक भी लड़की नहीं है. और अभी तक नहीं आया समझ की
"ये लड़कियां लाइन कैसे देती है..??"
अगर पता चल जाता न, तो... उम्म्म्म...ह्म्म्म... मजेए आ जाते...
{ अपनी सुरक्षा की दृष्टि से मैंने सभी लडकियों के नाम बदल दिया है, यकीं मानिए "1001 नेम्स ऑफ़ बेबी गर्ल" की साईट खोल कर
बैठा हूँ, लेकिन अगर फिर भी इस पर कोई आपत्ति है, तो मुंह में ठंडा पानी भर के कुल्ला कर लीजिये और सो जाइये, पारा बहुत चढ़ा है, और वैसे भी
इन्टरनेट पर हमेशा गर्मी बढ़ी रहती है.}
( लास्ट लाइन भानु भैया से ले कर यहाँ चिपकाई गयी है)
P.S- अजी, ये मजाक ही है, हँस के भूल जाइए.!!

टूटी कुण्डी

#कुछ_भी
#कुण्डी_टूटी_थी
घर से दिन में निकला मैं,
शॉपिंग करने के बहाने
की कानों में आवाज़ आई
"रुक जा ओ दिल दीवाने.."
मैं थोड़ा घबराया,
कुछ सकपकाया..
फिर दोबारा
रुके हुए क़दमों को
तेज़ी से बढ़ाया.
कि फिर आई आवाज़
"छम्मक छल्लो! जरा धीरे चलो.."
आवाज़ की तरफ मैंने
अपने कानों को घुमाया,
कुछ 3-4 घरों वाली वो खिड़की थी,
मैंने कुछ और गौर किया
अजी, ये तो कोई लड़की थी.
मैं ख़ुशी से उछल पड़ा.
बोला पास जाके-
मोतरमा! अपने रोका,
लो मैंने रुक पड़ा..
फिर थोड़ी सी ख़ामोशी छाई,
फिर एक आवाज़ आई
"तू के बाड़ा..?"
मैंने थोड़ा सर खुजलाया,
मोतरमा! आप जो कह रही है,
मुझे कुछ समझ नहीं आया.!!
बेशर्म! कौन है तू..?
मैं ज़रा चोंका!!
अजी! मैं कैसे बेशरम..?
अपने ही तो मुझे टोका,
और मेरे चलते क़दमों को रोका..
अपनी बातों पे,
 अब तक तू अड़ा है!
भाग यहाँ से,
ये बाथरूम है मेरा,
कान लागाये क्यों खड़ा है.
ओह तेरी! ये कैसा
हो रहा था मुझसे अपराध..
मैं इधर
कौन सा आया अपने आप?
"रुक जा ओ दिल दीवाने.."
का क्यों कर रही थी 
आप जाप..??
वो बोली- आई ऍम सॉरी!
कर दो मुझे माफ़.
ये पानी बड़ा ठंडा है!
मेरी कोई गलती नहीं थी,
टूटा मेरा बाथरूम का कुंडा है.
अगर नहीं गाती कोई गाना,
तो आ सकता था,
अन्दर कोई बेगाना.
अजी कोई नहीं
आप बाथरूम में कुण्डी लगवाइए
हो वक़्त, तो कभी
अपने लाइव कॉन्सर्ट में हमें भी बुलाइए.
तब तक जाता हूँ मैं
है थोड़ा मुझे आग सेंकना.
वो बोली - कमबख्त!
भागता है यहाँ से या
शुरू करू ऊपर तेरे पानी फेंकना..?
:D
#MJ_की_कीपैड_से