रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Friday, 17 July 2015

“तेरा मेरा साथ”

किसी ने मुझसे पुछा,
तेरा सबसे “हसीन” वक़्त 
कौन सा था..??
मै कुछ सोचने लगा
,
 फिर चेहरा
 खिल सा गया था ..
क्यूँकि मै तब भी,
 उसके साथ था ..
जब उसके हाथों में,

 मेरा हाथ था ..
सड़के उनकी, गलियाँ उनकी,

 और मोहला भी उन्ही का था..
जब हवायें,

 मध्यम मध्यम सी चल रही थी ..
जब शायद शाम भी,

 ढल रही थी..
जब उनके गिरे जुल्फों को

 मैंने सवारा था…
हाय ... उसकी स्माइल 

सुभानल्लाह ..क्या नज़ारा था..
कदम उसके भी चल नहीं रहे थे..
कदम मेरे भी बढ़ नहीं रहे थे..
चंद पलों के सफ़र में

 हमने घंटो लगाया था..
हम बस चलते जा रहे थे..
चाँद को देख के

 ना जाने क्यूँ
 मुझे गुरुर सा हुआ था..
क्यूँकि तू ही तो

 वो वजह थी..
तब ना कोई मंजिल थी 

ना कोई ठिकाना था ..
मैंने उसकी आँखों में

देख के पुछा कुछ कहना है..???
बोली ... 

“ ये जो पल है, कभी खत्म ना हो..”
और..????
“ये जो हमारा प्यार है, कभी कम ना हो..”
और..????
“ज़िन्दगी में तुम्हारे कोई गम ना हो..”
और..????
और क्या... 

क्या मैं ही बोलू..??? तुम भी कुछ कहो..
मैं....?? (हसते हुए ) अच्छा जी..
“तुम्हारी ये जो दो प्यारी-प्यारी आँखें है ,कभी नम ना हो..”
अच्छा....???(शर्माते हुए..) और..????
“वक़्त का तुम पर कोई सितम ना हो..”
और..????
“मुझ बिन तुम ,और तुम बिन हम ना हो..”
(कुछ देर क लिए ख़ामोशी छा गयी.. )
बोली.. 

“ क्या दोबारा कभी इन गलियों ,इन सड़कों में आना होगा..???”
मैंने कहा ...

 “जिंदगी में कुछ चीजें एक बार ही मिलती है..”
क्या..??
“BABY Doll सोने दी ..”
हँस के बोली और..????
“तेरा मेरे साथ ..”
#MJ_की_कीपैड_से....

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