रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Friday, 17 July 2015

ख्वाब

हर रात एक नए  सुबह का
ख्वाब देखता हूँ,
इक दूजे को , इक दूजे के
साथ देखता हूँ,

कुछ घनी धुंध हमारे
बीच देखता हूँ,
फिर तुझे दूर जाता
और खुद को वहीँ
खड़ा देखता हूँ,
तेरी सिसकियों को भी
सुनता हूँ और खुद को
खुद के आंसुओं को
पोछते देखता हूँ,
अपनी क़दमों को
तेरी ओर धीरे से
बढ़ते  हुए देखता हूँ,
फिर तुझे और दूर,
और दूर जाते
वहीँ खड़ा देखता हूँ!
#MJ_की _कीपैड _से
#बीइंग_टेक्नोफ्रीक

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