रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

रास्ता पता है मगर..मंजिल से अनजान हूँ

Friday, 17 July 2015

कुछ भी - लम्बा हाथ

आ बैठ पास मेरे,
तेरी वो प्यारी बातें सुनूं,
संग तेरे ख्वाब कोई बुनूं,
तेरे लबों से खेलूं,
तुझे कस के,
बाहों में ले लूँ,
तेरी जुल्फों को सवारूँ,
तुझे एकटक निहारु,
की तुझमे ऐसा क्या है,
की दोस्त मेरे मुझसे
कहतें-फिरतें हैं कि
"साले बड़ा लम्बा हाथ मारा है तूने"

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